थकी थकी सी नज़र है
और सुस्त साँसों का सफ़र है
पल प्रतिपल बढ़ते तम का डर है
अचला पर ये कैसा बेबसी का असर है
मुरझा गयी उसपर सजी सब कलिया
रौंद गया कोई उसकी महकती बगिया
आज ढल सा गया है उसका निखरा रूप
जाने कहाँ खो गया उसका सुंदर स्वरूप
कभी बन ठन कर इतराती थी
पंछी संग चचहाती थी
कुदरत संग खिलखिलाती थी
बस सँवर कर खुशियों को गुनगुनाती थी
आज तो जैसे लुट गयी है
अश्कों का अँखियों में सागर भरी है
रोगी बुढ़िया सी बिखरी पड़ी है
देख दर्द उसका कुदरत भी तड़प गयी है
फ़िर भी चुप है वो जिसके कर्मों का ये वर है
देखकर भी बदहाली मनु की अंधी नज़र है
उसी की गुस्ताखियो का ये भयावह मंज़र है
अचला पर ये कैसा बेबसी का असर है
जुल्म को सहकर ये धरती विह्वल है
अचला पर ये कैसा बेबसी का असर है
#आँचल
और सुस्त साँसों का सफ़र है
पल प्रतिपल बढ़ते तम का डर है
अचला पर ये कैसा बेबसी का असर है
मुरझा गयी उसपर सजी सब कलिया
रौंद गया कोई उसकी महकती बगिया
आज ढल सा गया है उसका निखरा रूप
जाने कहाँ खो गया उसका सुंदर स्वरूप
कभी बन ठन कर इतराती थी
पंछी संग चचहाती थी
कुदरत संग खिलखिलाती थी
बस सँवर कर खुशियों को गुनगुनाती थी
आज तो जैसे लुट गयी है
अश्कों का अँखियों में सागर भरी है
रोगी बुढ़िया सी बिखरी पड़ी है
देख दर्द उसका कुदरत भी तड़प गयी है
फ़िर भी चुप है वो जिसके कर्मों का ये वर है
देखकर भी बदहाली मनु की अंधी नज़र है
उसी की गुस्ताखियो का ये भयावह मंज़र है
अचला पर ये कैसा बेबसी का असर है
जुल्म को सहकर ये धरती विह्वल है
अचला पर ये कैसा बेबसी का असर है
#आँचल
वाह!!! बहुत खूब
ReplyDeleteसत्य का दर्पण दिखाती सुन्दर अभिव्यक्ति
अति आभार दीदी जी प्रति उत्तर में देरी के लिए क्षमा
Delete👏👏👏👏👏👏👏कड़वा सत्य उदबोधन शब्दों मैं है पीर नारी प्रथ्वी एक हो गई कौन किसको बधाये धीर !
ReplyDeleteखूब समझा आपने हमारे शब्दों को हार्दिक आभार उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए दीदी जी
Deleteप्रति उत्तर में देरी के लिए क्षमा
Deleteशुभ दिवस
धरा का वास्तविक दर्द बयां करती कविता..👏👌
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया दीदी जी
Deleteशानदार आंचल जी बेहतरीन भावों का सुंदर संगम दर्द जैसे स्वयं शब्द बन गये ।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुंदर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद दीदी जी आपको पसंद आयी सार्थक हो गयी प्रति उत्तर में देरी के लिए क्षमा शुभ दिवस
Delete