बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Wednesday 28 September 2022

रात बैठी दीये मैं जलाती रही

 (यहाँ 'मैं' अर्थात लेखनी)


रात बैठी दीये मैं जलाती रही,

इस अमावस से रार निभाती रही,

बुझ चुकीं न्याय की जब मशालें सभी, 

एक जुगनू से आस लगाती रही।


रात बैठी.........


चढ़ चुके थे हिंडोले विषय जब सभी,

सज चुके मानवी जब खिलौने सभी,

मेला झूठ का ठग ने लिया जब सजा,

मैं भी सत्य का ढोल बजाने लगी।


रात बैठी........


दामिनी नैन अंजन लगाने लगी,

रागिनी राग भैरव गाने लगी,

यामिनी से गले लग खिली जब कली,

मैं भी दिनकर को ढाँढ़स बँधाने लगी।


रात बैठी........


आँख से बहते पानी से छलने लगे,

लोग अंतिम कहानी पे हँसने लगे,

जब हिमालय भी थककर बिखरने लगा,

मैं भी पत्थर-सी सरिता बहाने लगी।


रात बैठी........


#आँचल 

Friday 16 September 2022

चोला झूठ का सच को ओढ़ा दीजिए

कुछ आँखों में शर्म बाक़ी हो 
तो उतार फेंकिए,
बिकी स्याही से काग़ज़ को
सजा लीजिए,
हाँ,लिख दीजिए नया छंद कोई,
फिर लाखों में उसको नीलाम कीजिए।
राजा के दुर्गुण का बखान कीजिए,
भर-भर झोली फिर इनाम लीजिए,
लाशों के ढेर छुपा दीजिए 
अरे,नर्क को  स्वर्ग बता दीजिए!
बीज नफ़रत के बोए,लहलहाने लगे 
गली-सड़कों पे लहू यूँ बहाने लगे,
कहीं पेड़ों पर लटकी मिली बेटियाँ,
कहीं गुंडे भी गोली बरसाने लगे,
ऐसी बातों से नज़रें चुरा लीजिए।
जब कर्तव्यों की उड़ने लगीं धज्जियाँ
तब लिखना न "जलने लगीं बस्तियाँ",
और "आपस में भिड़ने लगीं जातियाँ"
इन बातों पर थोड़ा बस ध्यान दीजिए,
जलती बस्ती पर रोटी बना लीजिए,
आग को मज़हबी हवा दीजिए,
दोषियों की स्तुति-वंदना कीजिए,
अरे लिखिए,न ख़ुद से गिला कीजिए,
गुरु बन कर सभी को दिशा दीजिए,
धर्म क़लम का ऐसा निभा लीजिए
चोला झूठ का सच को ओढ़ा दीजिए।