बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Friday 19 August 2022

मैं अमरता की नहीं कोई प्यास लेकर आई हूँ




मैं अमरता की नहीं कोई प्यास लेकर आई हूँ,

मोक्ष की,वरदान की न चाह लेकर आई हूँ,

मैं समर्पण भावना से,नेह के उल्लास से,

प्रीत की गागर लिए सागर के द्वार आई हूँ।


मैं अमरता की नहीं......


नृत्य-नूपुर राधिका के मैं न बाँधे आई हूँ,

मैं नहीं मीरा की वीणा साथ लेकर आई हूँ,

मैं नहीं हूँ सूर जो अंतर में तुझको पा सकूँ,

धूल हूँ,चरणों की तेरे धूल होने आई हूँ।


मैं अमरता की नहीं......


रंग है,न रूप है,न संग में कोई कोष है 

मोह है,न क्षोभ है,न जग से कोई रोष है,

दोष है मेरा कि मैं उजली सुबह न हो सकी,

यामिनी से द्वंद्व में पर हार के न आई हूँ।


मैं अमरता की नहीं.....


संकल्प की अभिसारिका,कर्तव्य हेतु आई हूँ,

परिणय की अग्नि-शिखा को पार कर के आई हूँ,

ओढ़कर चूनर वैरागी प्रणय पथ पर आई हूँ,

शून्य हूँ, महाशून्य में अब लीन होने आई हूँ।


मैं अमरता की नहीं कोई प्यास लेकर आई हूँ,

मोक्ष की,वरदान की न चाह लेकर आई हूँ,


मैं अमरता की नहीं......


#आँचल 

Thursday 18 August 2022

मैं खंडित-अखंड भारत हूँ

 


मैं भारत थी,

अखंड भारत।

मेरी विविधता थी 

मेरे गर्व का कारण,

मेरी संतान करती थी 

सहृदयता को धारण,

कर्म जिसका पथ था 

और था सत्य का बल 

प्रेम-सौहार्द संग

था जो निश्छल। 

अनेक होकर भी एक,

एकता का सूत्र प्यारा था।


मैं आज भी 

भारत हूँ,

खंडित-अखंड भारत।

निरपराध मैं 

अपनी ही संतान द्वारा 

दंडित अखंड भारत।

ज़ात-धर्म पर मुझे बाँटा गया,

राग-द्वेष से पाटा गया,

मेरी गोद में खेलती अबोध संतान

को मौत के घाट उतारा गया!

मैं स्तब्ध खड़ी देखती रही

मेरी संतान की निर्ममता,

मेरे टुकड़े कर चिल्लाया गया-

"संकल्प हमारा देश की अखंडता।"


#आँचल 

Monday 15 August 2022

स्वतंत्रता दिवस की पचहत्तरवीं वर्षगाँठ


 

नमस्कार 🙏 

आज स्वतंत्रता दिवस की पचहत्तरवीं वर्षगाँठ के अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।


प्रार्थना है कि यह आज़ादी जो हमें प्राप्त है,जिसका हम जश्न मना रहे हैं वह सदा बनी रहे। हम अपनी सांप्रदायिक मानसिकता का त्याग करते हुए, बैरभाव का नाश करते हुए एक साथ देश के आर्थिक एवं बौद्धिक विकास हेतु प्रयासरत रहें। हमारा प्रत्येक कर्म स्वार्थ-साधना से ऊपर उठकर राष्ट्रसाधना  में समर्पित हो। अपनी उपलब्धियों पर अपनी पीठ थपथपाते वक़्त हम यह न भूलें कि अभी बहुत कुछ है जो प्राप्त करना शेष है। प्रत्येक देशवासी के सर पर छत, तन पर वस्त्र और थाल में रोटी पहुँचाना शेष है। 

..... और एसी प्रार्थना हम ईश्वर से नहीं देशवासियों से करते हैं क्योंकी  यह सब हम देशवासियों के कर्मनिष्ठ हाथों से ही संभव है। हमें चाहिए कि हम अपनी जन-जन में भेद करनेवाली ओछी मानसिकता की दासता से मुक्त हों,जन-कल्याण की भावना को अपने अंतर में समाहित करें और विकास के पथ पर अग्रसर होते हुए विश्वभर में देश की कीर्ति पताका फहरा दें। बस यही हमारी देशसेवा कहलाएगी।


जय हिंद 🙏



Tuesday 9 August 2022

गरजते मेघ


"अरी ओ कमली!थरिया परस जल्दी, भूख से प्राण जाने को हैं। दुई निवाले मुँह म जाएँ त पेट की आग कछु शांत हो। जल्दी कर तब तक हम पैर-हाथ धोई के आवत हई।"
भरमदास डिस्टेम्पर की काई लगी बाल्टी में भरे पानी से पैर-हाथ धोते हुए पत्नी कमला देवी से बोले।

कमला देवी ने अपनी बड़ी बिटिया को चिल्लाते हुए पुकारा-
"अरी ओ रनिया कहाँ मर गई री! देख,बादल गरजत हैं; जा, बाँस पर से कपड़े उतार ला, सूख ग होई।"

भरमदास ने भोजन के लिए लकड़ी के पटरे पर बैठते हुए कमला देवी से कुछ गंभीर स्वर में कहा- 
"अरी कमली!ई गरजते मेघ न बरसेंगे। चुनाव म कितना गरजे रहे सब, बरसे भला? अब भोजन परस जल्दी।" 

कमला देवी ने रोटी सेंकते हुए फिर अपनी बड़ी बेटी को पुकारा-
"रनिया हो, बहरे से लछमी, गोलू और गुड्डु को भी बुला ला।"
 
रानी अपने छोटे भाई-बहन के साथ भीतर आई तो हाथ में बेलन लिए हुए कमला देवी ने अपनी दोनों बेटियों को निर्देश देते हुए कहा- "रनिया तू भोजन परस, लछमी मेटा में से पानी निकाल कर रखेगी सबके आगे।"

रानी थाली में गुड़, नमक और चार रोटियाँ सजाकर अपने बाबा के आगे रख आई।भरमदास ने थाली देख कुछ निराश स्वर में कमला देवी से पूछा- "दाल-सब्ज़ी नाही रही का?" 

कमला देवी ने कुछ झुँझलाते हुए जवाब दिया- "इतना महँगाई म तोहार सौ-दुई सौ क मजूरी रोज़ का रोज़ ख़रच होई जाए त ई घर कईसे चले भला? मकान-मलकिन आए रहिन, चार महीना का किराया बाक़ी बा।
अब त पहिले कमरा क किराया जुटे तब दाल-सब्ज़ी  बने।" 

निराशा और कमला देवी के ताने से भरमदास का पेट भर गया। भरमदास ने रानी को दो रोटियाँ वापस करते हुए कमला देवी के ताने का जवाब देते हुए कहा- "पेट त भरी ग।"

इसपर कमला देवी ने कहा- "अब तोहे सूखी रोटी परसत हमार जी नाही जलत का? हमहू का करी? महँगाई क हिसाब से तोहार मजूरी कछु ठीक-ठाक मिले त दाल-सब्ज़ी  का हम अमृत परस देब।"

महँगाई को कठघरे में खड़ा करते हुए अपनी सफ़ाई में दिए गए कमला देवी के इस बयान पर व्यंग्य मुस्कान भरते हुए भरमदास बोल पड़े- "तू का परस्बू? पंद्रह अगस्त तक त ख़ुदै अमृत बरसत बा।" 
"ए गोलुआ!काल एक ठे तिरंगा ख़रीद के दूआरे फहरा दे। प्रभु की लीला होई त हमरो घर अमृत बरसे। ई सूखी रोटी नाही तब त मालपुआ  खाब हम। " 
गोलू को यह आदेश देने के बाद भरमदास सूखी रोटी चबाते हुए मालपुआ के मीठे स्वप्न में खो गए।

#आँचल

Thursday 4 August 2022

विश्वमोहिनी की अमृत - गगरी


कुछ इठलाती,कुछ बलखाती,

गगरी अमृत की छलकाती 

वह विश्वमोहिनी, विश्वसुंदरी  

रूप से अपने भरमाती 

तब विश्वगुरु भी बहक - बहक 

सुध - बुध अपनी सब बिसराते 

और गरल - सुधा का भेद भूल 

जब गरल सुधा - सम पी जाते,

तब इठलाती कुछ बलखाती 

वह विश्वमोहिनी विश्वगुरु को 

छलकर शोक में मुसकाती।


#आँचल