बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Thursday 30 January 2020

एक रोटी चार टुकड़े


एक रोटी चार टुकड़े बाँटकर खाते रहे,
हम तो अपना पेट यूँ ही काटकर जीते रहे।

ए गुले गुलज़ार तेरी थाल में बोटी सजी,
मांस अपना दे के तेरा पेट पालते रहे।

है सितम का घात दुगना,आग भी ठंडी पड़ी,
ओढ़कर खुद को ही हमने सर्द से है जंग लड़ी।

ताप लो तुम हाथ अपने,कौडे की लपटें उठी,
तेरी ख़िदमत को ही तो झोपड़ी मेरी जली।

आँसुओं में डूबती है बस्तियाँ ईमान की,
जल चुकी हैं पोथियाँ जबसे धर्म की,ज्ञान की।

ए गुले गुलज़ार तेरे सिर पे जो पगड़ी सजी,
दांव पर रख के वतन को सोने की कलगी लगी।

दीन भी क्या दीन जाने? रूह तक गिरवी पड़ी,
साज़िशों की आँधियों में सरज़मीन जिसकी लुटी।

खेलते हो खेल तुम जो तख़्त की गर्दिश है ये,
बिक रही हैं लाशें जो,गफ़लत में हम बैठे नही।

#आँचल 

Friday 24 January 2020

क्या सोता भारत जाग रहा है?



धधक उठी ज्वाला नभ उर में,
हाहाकार मचा कलरव में,
विपुल समर को घन अब रण में,
उठी चित्कार सुनो मनवन में,
थे तृण हरित,सब शूल हुए हैं,
त्राहि त्राहि कर धूल उड़े है,
पतित हुई अब मानसी गंगा,
सत्य,धर्म का झूठा धंधा,

अरुणा का किसने रूप हरा है?
भोर तिमिर संग खेल रहा है!!-2
क्या सोता भारत जाग रहा है?-2

तुंग हिमालय भी दहला है,
दिल्ली का दिल फिर बहला है,
हुड़दंग बंग में खूब मचा है,
लखनपुरी में भी लोचा है,
दूषित हुई बयार सदन की,
रोषित हुई पुकार रुदन की,
सूर-शौर्य का बिक गया तमगा,
कलम गा रहा झूठ की प्रभुता,

युग का कैसा ये दौर खड़ा है?
जागृति का खूब स्वाँग रचा है!!-2
क्या सोता भारत जाग रहा है?-2

घने धुंध की घनी कृपा है,
नीति का आशय धुंधला है,
धर धरना बैठी गरिमा है,
सिंहासन की सब महिमा है,
ठगी खड़ी कठ पर जनता है,
चूल्हे पर जल रही चिता है,
राजनीति की रोटी सिक गयी,
नेताओं की दाल भी गल गयी,

सब खोकर भी कोई सोता है?
सूर्य पतन का जाग चुका है!!-2
क्या सोता भारत जाग रहा है?-2

#आँचल 

Monday 6 January 2020

शेर-ओ-अदब का ये शहर



जो ढूँढ़ते हो अदब,तहज़ीब अगर
तो अवध की गलियों में आ जाना
और चाहते हो गर मुस्कुराना तो
दिल -ए-लखनऊ से दिल लगाना।

महका खज़ाना,है यही लज्जतों का ठिकाना,
कभी खस्ता,कचौड़ी तो कभी कबाबी उल्फताना।
डालोगे शामियाना,यही ज़मीन लिखाओगे,
राम आसरे की मलाई गिलौरी और कहाँ पाओगे?

जलते नही चराग यहाँ,रोशन हुआ करते हैं,
अनपड़ भी फब्तियो से लाजवाब किया करते हैं,
ये शहर-ए-अदब है जनाब,बेगपाती इसकी जुबां है,
बातों बातों में यहाँ लोग नज़्में पढ़ा करते हैं।

निगहबान बंदिशों के आसमां बाँधने का दम रखते हैं,
ताल पर तोड़ बंदिश चपल पाँव से बंदगी करते हैं,
शेर -ओ-अदब की ये गलियाँ ,यहाँ सभी फ़नकार हैं,
आप मिसरे कहने की जुर्रत करिए,गिरह हम बाँधते हैं।

रगें रंगीन हैं इसकी,यूँ रोशन बाज़ार हैं,
चौक की कशीदाकारी,अमीनाबाद गुलज़ार है।
दरों-दीवार से इसके बयाँ होता इतिहास है,
लखन की ये ज़मीन,विरासतों पर नवाबी छाप है।

यहाँ तलवार-ए-साज़ पर क्रांति की पाजेब बजती है,
मौलाना - पंडित की याराना महफ़िल जमती है,
यहाँ दिलों में मोहब्बत,मुरव्वत बेशुमार रखते हैं,
यूँ हीं नही जुबां पे पहले आप,पहले आप रखते हैं।

#आँचल