आत्म रंजन

बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Friday 16 February 2024

मूल ' मैं ' की तलाश में

एक मैं हूँ 
और मेरे कितने सारे 'मैं'
जो मुझमें हर क्षण बनते और बिगड़ते हैं 
और रोज़ मुझ ही से लड़ते हैं 
कुछ बिल्कुल मुझसे लगते हैं 
और कुछ मुझसे अलग 
जिनको मैं पहचान ही नही पाती 
इन अनेक 'मैं' में से 
मैं कौन हूँ यह कभी जान नही पाती
पर झूझती हूँ रोज़ इतने सारे 'मैं ' के साथ 
मूल 'मैं' की तलाश में।

#आँचल 

Thursday 15 February 2024

संसारों के सृजन में गुम होता आदमी

इस एक संसार में रहकर 
अनेक संसार को जानने की कोशिश
और उन अनेक संसारों के प्रतिसंसार को देखने की कोशिश में रत आदमी 
रच देता है फिर एक संसार 
और उस संसार में फिर अनेक संसारों की रचना में लग जाते हैं कई और आदमी 
और फिर यूँ ही एक संसार में रहकर अनेक संसार को जानने की कोशिश अनवरत चलती ही रहती है 
पर नाकाम हो जाती है कहीं खुद के संसार तक पहुँचने की कोशिश 
और गुम हो जाता है कहीं वह आदमी संसारों की भीड़ में रचते हुए फिर एक नया संसार।
#आँचल 

Sunday 1 October 2023

पिता की भूमिका में एक भाई

एक पुरुष अपने सर्वोत्तम रूप में होता है 
जब वह एक पिता की भूमिका में होता है,
भूख,प्यास,थकान से कुछ ऊपर होता है,
अपनी संतान के जीवन में सुख के हर रंग भरने को 
विपरीत परिस्थितियों में भी तत्पर रहता है।
कल देखा है मैंने एक ऐसे ही पुरुष को 
जिसके माथे पर ढुलकी गंग-स्वेद बिंदु 
दमकती चिंताओं का अभिषेक कर रहीं थी
और बता रही थी सबको कि
वात्सल्य का भाव जगत में सबसे सुंदर होता है,
पिता की भूमिका में एक भाई 
पिता से बढ़कर होता है।

#आँचल

Saturday 30 September 2023

षड्यंत्रों के आगे भविष्य के सूरज को डूबे देखा है,
फैले हुए इन हाथों में लुक-छुप करती रेखा है,
इन नन्ही-नन्ही आँखों में रंगों को 
मरते देखा है,
क्यों माँओं को भी इनके इनका स्वप्न मारते देखा है।
#आँचल 


Saturday 9 September 2023

देहवास का मिला है श्राप

सोच रही हूँ क्यों
निश्छल,निष्पाप आत्माओं को 
देहवास का मिला है श्राप?
विकारों की मलिनता,
छल,प्रपंच और भीरूता
ढोंग भरा अनुराग!
हाय!मनु-संग है संताप
किस अपराध का है यह त्रास?
देहवास का मिला है श्राप।
#आँचल

Monday 4 September 2023

मैं सजनी बनी श्याम पिया की

 


मैं सजनी बनी श्याम पिया की

अद्भुत कर शृंगार चली

मैं सजनी बनी श्याम पिया की।

प्रीत-डगर पे चलते-चलते 

झाँझर रीत की तोड़ चली

छूट गई माया कंचन की 

वैराग्य की चूनर ओढ़ चली

पंच-रत्न की सजा के वेदी 

सप्त-भुवन को लाँघ चली 

मैं सजनी बनी श्याम पिया की 

अद्भुत कर शृंगार चली।


#आँचल