बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Monday 18 November 2019

जो मौन है वो बुद्ध है


करम गति को चल रहा
परम गति को बढ़ रहा
कुसंगति को तज रहा
सुसंगति से सज रहा
वो लुब्ध,क्षुब्ध मुक्त है
प्रबुद्ध है वो शुद्ध है
चैतन्य का स्वरूप है
जो मौन है वो बुद्ध है
जो मौन है वो बुद्ध है

मंथन मति का कर रहा
भंजन रुचि का हो रहा
मकर प्रथा से लड़ रहा
प्रखर प्रभा को बढ़ रहा
वो अचल सकल से दृष्ट है
अंतः करुण प्रभुत्व है
आनंद का स्वरूप है
जो मौन है वो बुद्ध है
जो मौन है वो बुद्ध है

#आँचल 

Saturday 16 November 2019

जीवंत बनारस


बनारस वो स्थान है जहाँ भगवत प्राप्ति अर्थात् भक्ति,ज्ञान,वैराग्य,त्याग की प्राप्ति होती है। इसके घाट घाट में ज्ञान की अमृत धारा बहती है और गली गली में भक्ति की गूँज। यहाँ जीवन की मस्ती का रस भी है और यही जीवन कश्ती का तट भी है। यहाँ हर मोड़ पर एक शिवाला और हर कदम पर एक पान वाला मिल ही जाएगा। बनारस के हर कण की एक कहानी है। ये जितना पुराना है उतना ही नया है,जितना अल्हड़ है उतना ही सुसंस्कृत भी। ये स्वंय एक इतिहास है,सुंदर वर्तमान है और उज्ज्वल भविष्य भी। कला और साहित्य की पृष्ठ भूमि है ये और सियासत का मैदान भी। यहाँ की चाय चर्चा में रहती और गाय भौकाल में। ये स्वंय गुरु है शायद इसलिए यहाँ कोई चेला नही बस मेला है निर्मलता का,निरंतरता का,रीत,गीत संगीत का शक्ति का,भक्ति का और मुक्ति का। इसका अजब रंग,ढंग इसकी थाती है तो काशी विश्वनाथ और बी.एच.यू. इसकी ख्याति। ये सैलानियों का हुजूम है तो संध्या आरती की धूम। ये बुद्ध सा प्रबुद्ध है शुद्ध है और स्वंय में जीवंत है इसलिए जो यहाँ आता है वो यहाँ घूमता नही है वो इसे महसूस करते हुए इसे जीता है और स्वंय के भीतर इसे बसाता है और इसका आदी हो जाता है।
#आँचल


चित्र - साभार 'बनारसी मस्ती' फेसबुक पेज 

Thursday 14 November 2019

अच्छाई का इनाम



लाल रंग का ऊनी स्वेटर पहन आज शारदा खूब खुशी से इधर उधर झूम रही है। बहुत समय बाद उसे आज नया स्वेटर जो मिला है। दरसल शारदा की माँ लता लोगों के घर खाना बनाने का काम करती है तो जो कुछ उसे रोज़ी मिलती है वो शारदा की स्कूल फीस और घर खर्च में लग जाती है। लता बचत कम होने के कारण लोगों के घर से जो पुराने पहने हुए कपड़े मिलते उसी को नया बता शारदा को दे देती और शारदा भी नए -पुराने में अंतर जानते हुए भी माँ की मजबूरी समझ उसी में खुश हो जाती। इसबार बचत कुछ ठीक होने के कारण लता बाजार से ऊन ले आयी जिससे शारदा की दादी जी ने बड़े प्यार से एक लाल सुंदर स्वेटर बुना और उसपर एक पीली चिड़िया का चित्र और शारदा का नाम भी लिख दिया।शारदा भाग कर दादी जी के पास गई और उनके गले लगकर उन्हें धन्यवाद करते हुए कहा,"दादी जी आज तो मैं ये स्वेटर बिल्कुल नही उतारूँगी और यही पहनकर अपने दोस्तों के साथ खेलने जाऊँगी और उन सबको दिखाऊँगी कि आपने मेरे लिए कितना सुंदर स्वेटर बुना है।"ऐसा कहकर शारदा दादी जी की गोदी से उतरी  और भागकर अपने दोस्तों के साथ खेलने चली गयी। 

शाम को जब शारदा घर लौट रही थी तो उसने ठंड में ठिठुरते हुए अपनी ही उम्र के एक बच्चे को देखा जिसने बस एक फटी सी सूती शर्ट पहन रखी थी और ठंड से बचने के लिए उसके पास कोई भी गरम कपड़ा नही था। शारदा का कोमल मन उस बच्चे की चिंता में डूब गया और वह सोचने लगी कि अगर इसे तुरंत कुछ गरम पहनने को नही मिला तो इतनी ठंड में इसकी तबीयत बिगड़ जायेगी और ठिठुरते हुए अगर ये मर.... नही नही। ऐसा सोच शारदा ने इधर उधर देखा फिर ध्यान अपने लाल स्वेटर पर गया तो शारदा पल भर के लिए रुकी पर फिर बिना कुछ सोचे अपना वही नया स्वेटर जिसे पहन वो खुशी से झूम रही थी उतारकर हलकी सी मुसकान के साथ उस बच्चे को दे दिया और घर लौट आयी।

जब लता ने शारदा को बिना स्वेटर घर आते देखा तो पूछने लगी,"शारदा तुम्हारा नया स्वेटर कहाँ गया? तुम तो वही पहनकर खेलने गयी थी ना?" माँ के प्रश्नों को सुनती शारदा इस डर से चुप खड़ी थी   कि शायद माँ सच जानकार बहुत नाराज़ होंगी पर जब लता ने दुबारा पूछा तो दादी जी ने प्यार से शारदा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,"बिटिया जो भी सच है वो बोलो,सच कहने से कभी मत डरना।" दादी जी की बात मानकर शारदा ने हिम्मत से माँ को सब सच बताया और माफ़ी माँगते हुए कहने लगी," मैं जानती हूँ माँ आप मुझसे बहुत नाराज़ हो, कितनी मेहनत के बाद आप मेरे लिए ऊन लेकर आयी होगी और मैंने.... पर माँ उस बच्चे को मेरे स्वेटर की ज्य्दा ज़रूरत थी। मेरे पास तो और भी पुराने गरम कपड़े पड़े हैं पर उसके पास कुछ भी नही था।" 

शारदा की बातें सुन लता की आँखों से गर्व आँसू बन छलकने लगे। लता शारदा के गालों पर हाथ रख कहने लगी,"पगली हो तुम, अपनी प्यारी बच्ची पर भला मैं क्यू नाराज़ होने लगीं? हाँ अगर तुम सच ना कहती तो शायद मैं नाराज़ हो जातीं।" 
बस फिर लता ने शारदा को गले लगाते हुए कहा,"मुझे गर्व है तुम पर और आज तो तुम्हें तुम्हारी इस अच्छाई का इनाम भी मिलेगा।" इतना कहकर लता फटाफट रसोईघर में गई और शारदा की मनपसंद खीर बनाने लगी।

Monday 4 November 2019

कौआ जी और तोता जी




छत पर बैठे थे कौआ जी 
और कमरा छत का खुला हुआ
जी कौआ जी का डोल गया 
भीतर चुपके से प्रवेश हुआ   
जो देखा भीतर कोई नही 
तो मस्ती थोड़ी सूझ गयी 
इधर उधर गर्दन मटकाते 
फुदक फुदक कर कमरा नापें 
सामानों पर चोंच को मारें  
पंखे पर झूलें,धूम मचायें
दर्पण में देख देख इतरायें 
ज़ोर से गाए काँए काँए 
तभी पिंजरे से बोले तोता जी 
चुप करिए काले कौआ जी 
क्यू इतना चिल्लाते हैं
बेसुरा कितना गाते हैं
रंग आपका काला कितना 
क्या इस पर इतराना इतना 
देखिए मुझे मैं हरा भरा 
सुंदर कितना दिखता हूँ 
मिर्ची जो रोज़ मैं खाता हूँ 
मिट्ठू मिट्ठू गाता हूँ 
कुछ रुक कर बोले कौआ जी 
हे प्यारे तोता भइया जी 
आप होकर सुंदर पिंजरे में बैठे 
मैं मस्त गगन में उड़ता हूँ 
सच है सुर मेरा बहुत बुरा 
पर गीत खुशी के गाता हूँ 
हूँ काला पर दिलवाला हूँ 
इसीलिए इतराता हूँ 
यूँ कह दो चोंच पिंजरे पर मारे
तो तोता जी आज़ाद हुए 
करो क्षमा हे कौआ भइया जी 
हम तो कितने नादान रहे 
रूप,रंग के चक्कर में 
मन की सुंदरता भूल गये 
तो हँस कर बोले कौआ जी 
भूलिए भूल को भइया जी 
अब प्रेम से दोनों गले लगें
और आसमान में फूर्र उड़े 
#आँचल