बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Tuesday 17 December 2019

ये क्षण का आक्रोश है


क्या फिर समर उद्घोष है?
ये क्षण का आक्रोश है। -२

हैं लाख सी जल रही 
अधिकारों की पोथियाँ 
और द्रौपदी भस्म हुई 
सिक गयी सियासी रोटियाँ,
जब खो बैठे धृतराष्ट विवेक 
तब मौन हुए पांडव अनेक 
क्या सकल सजगता लोप है?
ये क्षण का बस रोष है।

क्या फिर समर उद्घोष है?
ये क्षण का आक्रोश है।

है लाक्षागृह में लपट उठी,
फिर शकुनि की बिसात बिछी,
पक्षों में दोनों अधर्म खड़ा,
विदुरों का धर्म वनवास गया।
शांति का ना कोई दूत यहाँ,
कुरुक्षेत्र हुआ अंधकूप यहाँ।
क्या राष्ट्रप्रेम का शोर है?
ये क्षण का बस ढोंग है।

क्या फिर समर उद्घोष है?
ये क्षण का आक्रोश है।

हे याज्ञसेनी अब आग धरो,
जागो पांडव,हुंकार भरो,
हो प्रखर मकर की काट बनो,
दिनकर की पंक्ति याद करो,
सिंहासन पर अपना अधिकार करो,
मत सहो,अब रण को कूच करो।
क्या बाकी अब भी कोई क्लेश है?
ये क्षण क्रांति पर ओस है।

क्या फिर समर उद्घोष है?
ये क्षण का आक्रोश है।
ये क्षण का आक्रोश है.......

#आँचल 

अन्नु दीदी की कहानी "ब्रोकेन फोन के तीन रहस्य "

आप सभी आदरणीय जनों को सादर प्रणाम। आज बड़े ही हर्ष और गर्व की अनुभूति हो रही आप सबसे ये साझा करते हुए कि आदरणीया अनीता लागुरी (अन्नु ) दीदी जी की कहानी " ब्रोकेन फोन के तीन रहस्य " Amazon Kindle के pen to publish प्रतियोगिता में शामिल हो गयी है। नीचे दिए गए लिन्क् से आप सब भी दीदी जी की इस पुस्तक को डाउनलोड कर पढ़े और अपनी शुभकामनाएँ और आशीष से दीदी को अनुग्रहीत करें।
https://www.amazon.in/dp/B082R17T6R/ref=cm_sw_r_wa_apa_i_fKo9DbBXTRP5D

हमने भी कल इस रोचक कहानी का आनंद लिया। इसे पढ़कर जो हमारे विचार थे वो आगे आप सबसे साझा करती हूँ।



शिबु और विभु के ईर्द गिर्द घूमती आदरणीया अनीता दीदी जी द्वारा रचित इस कहानी ' ब्रोकेन फोन के तीन रहस्य ' ने हर भाव,रस को स्वयं में समेटकर पाठकों को निश्चित रूप से हर घटना से जोड़ लिया होगा। जहाँ अपने निजी जीवन की विषम परिस्थितियों से झूझ्ते हुए भी एक अंजान की आगे बढ़कर सहायता करने वाले विभु की नेकी मन को छूती है तो वही एक ब्रोकेन फोन में विभु के लिए छोड़े गए तीन वॉयस मेसेज के ज़रिये विभु का जीवन जीने को मजबूर शिबु  की दरियादिली और भावुकता पाठकों के हृदय में निश्चित ही स्थान बना रही होगी।

जहाँ एक ओर चायवाले चाचा और चाची का शिबु के संग सुंदर नाता अपनत्व के भाव से कहानी को सुखद बना रहा है तो वही ब्रोकेन फोन में पड़े तीनों वॉयस मेसेज कहानी को रोचक बनाते हुए पाठक के मन में जिज्ञासा उत्पन्न कर आगे पढ़ने को उत्सुक कर रहे हैं।

शिबु के अतीत का वो सुंदर किस्सा जिसमें नींबू, मिर्च संग मकई का स्वाद और सुधा संग प्रेम की मिठास है और वर्तमान का वो अजीब हिस्सा जिसमें विभु-विभु करती एक अंजान लड़की की मासूमियत और निश्छल प्रेम है जो खुद शिबु को विभु हो जाने पर मजबूर कर देती है ने बड़ी सहजता से पाठक को भी भावों में बाँध दिया।
वास्तव में हमने इसे बस पढ़ा नही बल्कि चलचित्र की भाँति आँखों के सामने घटते देखा है अतः हम यह कह सकते हैं कि इस कहानी का हर पाठक इसमें निहित भावों को जीते हुए इससे जुड़ गया होगा और यही इस कहानी की सार्थकता है।

आदरणीया अनीता दीदी जी अपनी  रचनाओं में संवेदनाओं का बड़ी सहजता और सुंदरता से प्रयोग करते हुए मानवीय मूल्यों को स्थापित करना बखूबी जानती हैं। इस कहानी ' ब्रोकेन फोन के तीन रहस्य ' में भी एक ब्रोकेन फोन से जुड़े दो किरदार विभु और शिबु को निमित्त बनाकर मानव चरित्र के सुंदर गुण प्रेम और करुणा की सुंदर झलक देते हुए अपने लेखिका होने के धर्म का बखूबी निर्वाह किया है।

बतौर लेखिका आदरणीया अनीता दीदी जी जहाँ विभु की माँ के रूप में एक माँ और पत्नी की अपने बेटे और पति के प्रति चिंता और हर परिस्थिति में घर-परिवार को संभाल कर रख सकने की एक नारी की सार्थक क्षमता को दर्शाती हैं। तो वहीं  आधुनिक युग में फेसबुक वगेरह पर हो जाने वाले प्रेम प्रसंग का भी सुंदर वर्णन कर रही हैं।

बड़े करीने से जब तीसरे वॉयस मेसेज में एक बच्चे की अपने सड़क दुर्घटना में घायल पिता के प्रति व्याकुलता  को प्रस्तुत किया तब मनुज्ता के गिरते स्तर को प्रस्तुत करते हुए यह भी दर्शाया कि किस तरह आज लोग सहायता के लिए आगे आने से हिचकिचाते हैं किंतु किसी को परेशानी में देख मोबाइल उठा वीडियो बनाने लगते हैं। वही दूसरी ओर कुछ अंग्रेजी शब्दों और गूगल सर्च का जिक्र आधुनिक युग के पाठकों के लिए कहानी को और भी रोचक बना रहा।

कहानी के शीर्षक मात्र से इसे पढ़ने की उत्सुकता बढ़ गयी थी और जैसे जैसे कहानी पढ़ते गए जिज्ञासा बढ़ती गयी। जितना सुंदर कहानी का आरंभ उतना ही रोचक इसका अंत भी है। यदि देखा जाए तो इस कहानी में मुख्य भूमिका में 'ब्रोकेन फोन ' ही है जिसने एक दिन में ही शिबु को विभु की ज़िंदगी सौंप दी।

इस कहानी अब हम और क्या ही सराहना करें? बस आदरणीया दीदी जी की कल्पना शक्ति और दीदी जी के कलम की रचनात्मकता को नमन कर सकती हूँ। साथ ही इस सुंदर और रोचक कहानी हेतु आदरणीया दीदी जी को ढेरों शुभकामनाओं संग हार्दिक बधाई देती हूँ।
सादर प्रणाम 🙏
- आँचल