बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Thursday 30 December 2021

इस नववर्ष एक नई रीत का शुभारंभ करते हैं।

नमस्कार 🙏 
नववर्ष के स्वागत की तैयारियाँ शीर्ष पर हैं और आप सभी के मन में यह विचार होगा कि हम अपने प्रियजनों को भेंट स्वरूप क्या दें?
..... तो मेरा एक छोटा-सा सुझाव है कि क्यों न हम सब नववर्ष पर अपने मित्रों एवं प्रियजनों को शुभकामनाओं के संग पुस्तक भेंट करने की रीत का शुभारंभ करें। कुछ अच्छी पुस्तकें जिसमें आपके मित्रों को रुचि हो उन्हें ग्रीटिंग कार्ड, चॉकलेट आदि के स्थान पर अधिक भाएगी साथ ही इन पुस्तकों को भी अपना उचित महत्व प्राप्त होगा। आज पुस्तक लिखने वालों की भीड़ है किंतु पढ़ने वाले मुठ्ठीभर अतः यह अब अतिआवश्यक है कि हम लोगों का ध्यान स्मार्टफोन से हटाकर इन पुस्तकों की ओर आकर्षित करें। 
अब पुस्तकों का महत्व क्या है यह बताने की तो कोई आवश्यकता है नही क्योंकी हम सभी जानते हैं कि ये हमारी संस्कृती का हिस्सा हैं, मित्र भी हैं और मार्गदर्शक भी।इनमें ऐतिहासिक तथ्य भी है और वैज्ञानिक सत्य भी, भाव भी है और रहस्य भी और सबसे उत्तम स्वभाव इन पुस्तकों का यह है कि इनका संग करने में समय कभी भी व्यर्थ नही होता अपितु जीवन को अर्थ मिल जाता है 
तो अब आप स्वयं विचार कीजिए कि इससे उत्तम भेंट और क्या दे सकते हैं हम नववर्ष के अवसर पर।
इसी के साथ अब हम आपसे विदा लेते हैं नववर्ष की अग्रिम शुभकामनाओं के संग।
सादर प्रणाम 🙏 

#आँचल 

Tuesday 28 December 2021

लीलाधर मुस्कावे रे

 


पट-पीतांबर,अधर मनोहर 

मधुर-मधुर मुरलिया बाजे,

गल बैजंती माला राजे,

मोर-मुकुट,छलिया,घनश्यामा

बृजवासिन को चैन चुरावे,

गाए-गाए गुण ग्वाल सब झूमे,

ग्वालिन भोग ख्वावे रे,

धेनु उड़ावे धूरी घन-घन पर,

सुरवर बहुत पछतावे रे,

देखि दशा अस सुरजन की 

लीलाधर मुस्कावे रे।

#आँचल

Thursday 16 December 2021

कर क्रीड़ा कोई हरि सुंदर


कर क्रीड़ा कोई हरि सुंदर,
मन तप जावे,होवे कुंदन।
बास न हो विकार की मन में,
चंदन-धर्म सुवासित तन पे।
अधरों पर प्रभु नाम तुम्हारा,
दो नैनन को तुम्ही सहारा।
भव-सिंधु माया का घेरा,
चरण-शरण हरि मिले किनारा।
चरण-शरण हरि मिले किनारा।

#आँचल 

Tuesday 14 December 2021

राह न ताको सुख के सुमन की 
ये कलियाँ कभी खिलती नही हैं,
बाट न जोहो दुख के गमन की 
ये गलियाँ कभी चलती नही हैं,
बहती है नदिया,दो किनारों-सम संग सुख-दुख चलते हैं,
चलते हैं वो ही निष्कंटक जो समदर्शी होते हैं।
#आँचल 

आज पर अधिकार

'कल' अनंत है,
जो बीत गया वह भी 
और जो आनेवाला है वह भी
'आज' का अंत है,
इसलिये इसका अधिक महत्व है,
'कल' पर कल का अधिकार है 
और कल का ही रहेगा,
'आज' पर अबतक किसी का अधिकार नही,
इसलिए इसपर अपना अधिकार कीजिए,
और आज ही 'आज' के बीतने से पहले
आज के तय सब कार्य कीजिए,
अन्यथा 'आज' बीत जाएगा 
और कार्य रह जाएगा
और 'आज' पर 'कल' का अधिकार हो जाएगा।
#आँचल