बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Saturday, 28 April 2018

कलजुग अस्तित्व


हे सर्वव्यापी सर्वेश्वर
क्यू लोप हुआ तू धरती पर
कभी था कण कण में तेरा घर
अब बस कलजुग वजूद हर घर
और धर्म,पुण्य सब पाप हुआ
अधर्मासुर का राज हुआ
यहाँ सत्य,ईमान सब नाश हुआ
और दया,प्रेम का विनाश हुआ
काम,लोभ का माप बढ़ा
बंटवारे पे रोता बाप खड़ा
कोई रौंद गया आँचल ममता का
लूट गया काजल रमणी का
हरपल कुदरत का काल हुआ
गंगा,तुलसी का घुट कर बुरा हाल हुआ
और दानव ने मनु को गोद लिया
फ़िर तम का मनु सिरताज बना
तब हनन धर्म अस्तित्व हुआ
घोर कलजुग अस्तित्व से घिरी धरा
ये भूमि असुरों का लोक हुआ
मनुदानव से हर देव डरा
पापी के पाप का भरा घड़ा
और धरती पर हाहाकार मचा
अब जग ने बस तेरा नाम जपा
हे नाथ बस तेरा नाम जपा
                          #आँचल

8 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (30-04-2017) को "अस्तित्व हमारा" (चर्चा अंक-2956) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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    1. जी बहुत धन्यवाद राधा जी
      सुप्रभात
      शुभ दिवस 🙇

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  2. बहुत शानदार रचना।बेहद उम्दा भाव।

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    1. हार्दिक आभार दीदी जी आपके इस उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए
      सुप्रभात
      शुभ दिवस

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    1. अति आभार शुभ दिवस

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    1. हार्दिक आभार अन्नु दीदी

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