बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Tuesday 8 November 2022

यह कविता की बंजर शाला

 


कोरे पृष्ठों पर अंकित होती 

प्रेम-सुमन-सी अक्षरमाला,

छंद-छंद कूके कोकिल और 

छम-छम नाचे सुंदर बाला।

वह युग कब का बीत चुका है,

यह कविता की बंजर शाला।


यह कविता की बंजर शाला।


उतर रही है हिम शिखरों से 

शुभ्र-ज्योत्सना कलकल सरिता,

डग-डग भू-जन पोषित हैं 

चखकर ज्ञान-सुधा का प्याला।

वह युग कब का बीत चुका है 

सुधा-पुंज अब उगले हाला।


यह कविता की बंजर शाला।


काट रही घनघोर तिमिर को 

दो-धारी तलवार-सी तूलिका,

हो भानुसुता-सी उतर रही है 

प्राची के उर में रश्मि-माला।

वह युग कब का बीत चुका है,

टूट गई अब रश्मि-माला।


यह कविता की बंजर शाला।


कोरे पृष्ठों पर अंकित होती 

प्रेम-सुमन-सी अक्षरमाला,

वह युग कब का.......


यह कविता की बंजर शाला।


#आँचल