बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Thursday 23 June 2022

मम्मी - डैडी की इकतीसवी विवाह वर्षगाँठ पर कुछ पंक्तियाँ अर्पित।



इकतीसवी विवाह वर्षगाँठ के सुअवसर पर मेरे प्यारे से मम्मी-डैडी को अनंत बधाई,शुभकामनाएँ और ढेर सारे प्यार संग कुछ पंक्तियाँ अर्पित हैं 🙏💕


हे शतकोटि अंबर सम ऊँचे,

विमल धरित्रि सम गुण भींचे,

हे भवभूषण,हे त्रिपुरसुंदरी,

हे मधु से मधुर आम्र मंजरी,

हम बालक भँवरा सम डोलें,

वात्सल्य-सुधा-रस का सुख भोगें,

अमृत है सौभाग्य हमारा,

भव-सिंधु में आप किनारा,

संघर्ष-सुवन में बाबा ही छाँव,

आँचल में ममता का गाँव,

इन चरणों की क्या कीरति गाँऊ?

जिन चरणों में हो हरि का ठांव 

कौन सुरेश्वर? कौन जगतपति?

आप में ही त्रिलोक,सुख,संपत्ति,

हे करुणेश्वर,क्षमा के सागर,

आप से ही भरे ज्ञान-गुण-गागर,

हम मूढ़ी,अपराध ही जाने,

सेवन-पूजन की विधि क्या जाने,

श्रद्धा से जो शीश नवाएँ,

बैकुंठपति के दर्शन पायें।


#आँचल 

Thursday 9 June 2022

सूरज चाचा को हुआ ज़ुकाम।

 


एक दिन सूरज चाचा ने थक कर ली उबासी,

वहीं-कहीं पर खेल रहे थे भोले चंदा मामा जी,

जो खुला सूर्यमुख गुफा समान,

ठंडे-ठंडे मामा बन गए मेहमान,

मुख से भीतर प्रवेश हुआ,

फिर हुआ वही जो कभी न हुआ।

सूरज चाचा को हुआ ज़ुकाम,

अम्मा उनकी हुई परेशान,

जो छींकें तो आँधी आ जाए,

नाक बहे तो बारिश,

देवगण भी सोच रहे किसने की यह साज़िश?

भाँप-बाम कुछ काम न आया 

तब अम्मा ने डॉक्टर को बुलाया,

डॉक्टर ने मोटी सुई लगाई,

जाँच-रिपोर्ट बनकर आई,

पढ़कर डॉक्टर हुए हैरान,

सूर्य के भीतर बैठा कोई शैतान!

फिर ऑपरेशन तत्क्षण हुआ,

डॉक्टर ने चांद को मुक्त किया,

ज़ुकाम सूर्य का ठीक हुआ

पर चंदा थोड़ा झुलस गया,

उजले मुख पर दाग देखकर 

चांद बड़ा पछताया,

मोटे-मोटे आँसू संग सूर्य को यह बतलाया -

"अगर थोड़ा-सा मैं देता ध्यान 

करता न तब ऐसा काम,

मुख है,गुफा नही यह बात 

अगर मैं लेता जान।"

तब सूरज चाचा ने बड़े प्रेम से 

चंदा मामा को समझाया,

"अनुभव में ही ज्ञान पले"

यह भेद उन्हें बतलाया।

माना गलती से होते हैं 

थोड़े-बहुत नुकसान,

पर इससे ही लेकर सीख 

बनते लोग महान।


#आँचल 


( प्रस्तुत चित्र का श्रेय मेरे छोटे भाई आशुतोष पाण्डेय को )

Wednesday 8 June 2022

जल रहा है देश मेरा।


 तप रहा है देश मेरा 

सूर्य के क्या ताप से?

या जल रहा है यह प्रचंड 

नफ़रतों के आग से?

हैं कौन सी ये आँधियाँ?

है काम इनका क्या यहाँ?

क्या यह प्रजा का रोष है?

या स्वाँग कोई रच रहा?

कैसा उजाला है यहाँ?

कोई छलावा है यहाँ!

इस रोशनी के गर्भ में 

षड्यंत्र कोई पल रहा।

क्या सो रहे हैं देश के 

बुद्धिजीवी लोग सब?

या जागता है वीर कोई 

ज्ञान-चक्षु खोलकर?

है धन्य-धन्य भारती की 

बंद क्यों अब आरती?

क्यों किसी कोनें में बैठी 

माँ मेरी चीत्कारती?

हे देश के तुम क्रांतिवीरों 

मौन अब साधो नही,

साधु का तुम वेश धर के 

शस्त्र अब त्यागो नही।

जान लो शकुनि के पासे 

चाल कैसी चल रहे,

कौन से उस लाक्षागृह में 

पांडव फिर से जल रहे,

जागो नगर के लोग सब 

यह खेल तुम भी देख लो,

लाज को फिर द्रौपदी की 

तार -तार होने न दो।

है कौन सी वह ' सोच '

तुम दास जिसके बन गए?

शोषण में क्या आनंद 

जो संघर्ष करना भूलते?

ए वतन के सरफरोश 

देखो झुलसता देश तेरा,

सौहाद्र-प्रेम-आदर्श संग 

भस्म होता देश मेरा,

कोई यहाँ पर लड़ रहा,

कोई वहाँ पर डर रहा,

कोई यहाँ पर बँट रहा,

कोई वहाँ पर कट रहा,

त्राहिमाम-त्राहिमाम 

यह देश मेरा कर रहा,

ए भारती के लाड़लों

क्या कोई माँ की सुन रहा?


#आँचल