बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Saturday 26 May 2018

जेठ दुपहरी कागा बोले

जेठ दुपहरी कागा बोले
सुन सूरज ए आग के गोले
जलता ये तन तप रहा बदन
क्यू फेंकता यू अंगार के ओले
काहे इतना रिसीयाए हो तुम
किसपर इतना गुस्साए हो तुम
क्या हुई किसी से तेरी लड़ाई
किसमें है इतनी हिम्मत आयी
क्या भूल हुई कुछ हम मुढी जीवों से
जो प्रचंड ताप से धरती झुलसाई
नदी नाले सब सिकुड़ गये
पोखर भी जल से बिछूड़ गये
हम प्यासे बस जल को भटक रहे
लिए सूखे कंठों को तड़प रहे
जो उड़े गगन पंख सहे तपन
हवा भी जैसे  अग्नि प्रहार करे
ना थल पर कोई ठंडी छाँव मिले
ना जल से सुखी कोई गाँव मिले
इस जेठ तपिश में सूरज भइया
बस तेरी रोषआंच और प्यास मिले
अब छोड़ दे सारा गुस्सा मेरे भाई
और बाँध के सेहरा सिर पे बदरा का
कर ले बरखा संग प्रेम सगाई
फ़िर प्रेम बौछार जो होगी भौजी की
ये जेठ सावन हो जाएगा
मन भीगा खुशी में गाएगा
और तू भी ठंडा हो जाएगा
फ़िर धरती को ना झुलसाएगा

                           #आँचल 

Saturday 19 May 2018

जीवन आधार पेड़

सर पे सूरज चढ़ चुका है
ताप मौसम का बढ़ चुका है
तर बतर तन गर्मी से
ना कटता तरु अब कुल्हाड़ी से
अब थोड़ा सा विश्राम करूँगा
पेड़ के नीचे एक नींद भरूँगा
ज्यों बैठा मै छाँव तले
आँखों में गहरी थकान भरे
कोई क्रंदन कानों में गूँज उठा
और लगा समा नाराज़ हुआ
चू चू करती जैसे कोई
नन्ही चिड़िया रोती हो
बेघर होने के डर से
रहम रहम चिल्लाती हो
शोर मचाती जैसे कोई
वानर टोली घबराई हो
इधर उधर से कूद फाँदकर
मदद की आस लगायी हो
सरपट सरपट वो भाग रही
गिलहरी भी सहमी सी लगती है
दानव दानव की गाली देकर
जाने किधर भटकती है
फुफकारता निकला फ़िर एक भुजंग
जैसे नींद में पड़ा गया हो भंग
अब तो मै भी सकपका गया
देखकर सब कुछ घबरा गया
तभी तेज़ हवा का झोंका आया
आलम बदला सा मैंने पाया
अब कहीं नही हरियाली है
पेड़ों से दुनिया खाली है
ये कैसा धरा ने रूप धरा
जीवन धरती पर घुटन भरा
नदियाँ भी जैसे प्यासी हो
सब साँसें गिनती में चलती हो
कहीं बंजर भूमि है तप रही
कहीं बाड़ में दुनिया डूब रही
कोने कोने में अकाल पड़ा
हर घर मृत्यु का काल खड़ा
देख भय से मन ये काँप गया
मै कैसे यहाँ तक पहुँच गया
क्या धरती को किसी ने श्राप दिया
ये किसने सुकून का क़त्ल किया
तभी फ़िर से जोर की चली हवा
उसी पेड़ की छाँव में मैं फ़िर से खड़ा
यकायक दिल को जो सुकून मिला
खुशी में पेड़ को चूम लिया
तभी भावविभोर हो पेड़ भी बोला
उसी ने किया ये सब कुछ इस राज़ को खोला
ये चिड़िया,वानर,भुजंग,गिलहरी
सब पनाह लेती मुझमें हर पहरी
जाने कितने जीवों  का घर बार हूँ मै
तेरी साँसों का भी आधार हूँ मै
जो दृश्य भयंकर देखा है तुमने
बिन मेरे वही मंजर पाओगे
जो काटोगे पेड़ों को ऐसे
तो जीवन को कैसे पाओगे
यही बताने तुझको समझाने
कुदरत ने था सब स्वाँग रचा
बिन पेड़ों के बिन वृक्षों के
तू कैसे लेगा साँस बता
सुनकर मै था स्तब्ध खड़ा
पर मजबूर मै भी अब बोल पड़ा
तुम से ही मेरी रोजी रोटी
तुम से ही पूँजी होती है
जो ना काटूँगा एक दिन तुझको
तो बिटिया भूखी मेरी भी सोती है
और मै ही एक ज़िम्मेदार नही
कसूर बाकी सबका भी कम तो नही
मैं अकेले कैसे जीवन को बचाऊँगा
बिन काटे कैसे घर को जाऊँगा
बोला पेड़ तेरी बात है सही
पर मुश्किल का तेरे है हल भी यही
जो एक पेड़ को काटो तो दो पहले ही लगा देना
एक के बदले दो देकर धरती पर जीवन बचा लेना
तभी गर्म हवा का झोंका आया
नींद से उसने मुझे जगाया
वृक्षों से धरा ने जीवन पाया
ख्वाब ने मुझे ये राज़ बताया
अब पहले दो पेड़ लगाऊँगा
तभी काटने का हक़ भी पाऊँगा

                                    #आँचल 

Monday 14 May 2018

जन्नत सी माँ की गोद

मुक़द्दर भी उसे ठुकराता है
जो माँ को अपनी सताता है
सारे ज़माने की खुशी वो पाता है
जो माँ के गमों को रुलाता है
बरकते ज़िंदगी में उसी को नसीब है
माँ की दुआएँ जिनके रहती करीब है
ये माँ की वजह से ज़िंदगी भी शरीफ़ है
वरना बिन माँ के तो रईसी भी गरीब है
उस खुदा ने भी की है खूबसूरत कारस्तानी
जो ममता को सौपी है जहाँ की बागवानी
ये अश्क नही,है ममता की निशानी
फिक्र में बहता है माँ की आँखों से पानी
यूँ ही नही,माँ तो तक़दीर से मिलती है
नसीबवालों को जन्नत सी माँ की गोद मिलती है
रे बंदे तेरे आगे तो वो खुदा भी बदनसीब है
जन्नत में रह कर भी ना उसे एसी जन्नत मिलती है
जन्नत में रह कर भी ना उसे एसी जन्नत मिलती है

                                             #आँचल

Friday 11 May 2018

बदलती रिवायतों में इश्क के

बदलती रिवायतों में इश्क के
धड़कता है दिल बस चाहत में जिस्म के
अब गुलाबों से कहाँ होता है कोई इश्क इकरार
बस महँगे तोहफ़ों से होता है इश्क का इज़हार
इस भागती ज़िंदगी में अब कहाँ इश्क का नशा होता है
इसीलिए तो वैलेंटाइन डे जैसे बहानों का इंतजार इतना होता है
इश्क में वफाई तो जैसे कोई ख्वाब हुई
आज बेवफा सी इश्क की हर शाम हुई
बदली है सोच बदला है ज़माना
सरेआम नाचती ये इश्क आज बदनाम हुई
इसी बदनाम को पाने की कोशिशें तमाम हुई
बदलती रिवायतों में इश्क के सच्चे दिल की जान गयी
सच्चे इश्क की कहानीयाँ जाने कहाँ गुमनाम हुई

                                        #आँचल 

मेरे आँगने की चिरैया

था इंतज़ार जिस राजकुमार का
धर कर वो वेष एक शिकारी आया
वो महकते गुलाबों का नशा
और इश्क में वफ़ा का देकर झाँसा
ख्वाबों का उसने जाल बिझाया
करके इज़हार झूठी मोहोब्बत का
मेरे आँगने की चिरैया को उसने फँसाया
और ठुकराकर सरेआम उसकी मोहोब्बत
करके शिकार आबरू का वो बेवफा भागा
मैं चीखती रही चिल्लाती रही
बचाने अपनी चिरैया को तमाम कोशिशें करती रही
वो तड़पती छटपटाती अचानक से सुन्न हो गयी
आँगने से मेरे उसकी चहक गुम हो गई
बददुआ है मेरी ना पाए सुकूँ कभी वो रूह
जो बिटिया को मेरी मुझसे छीन ले गया
मेरे आँगने की चहकती चिरैया की नापाक लूट ले गया
एक माँ की लाड़ली बिटिया को वो तड़पता क्यू छोड़ गया

                                          #आँचल 

Thursday 10 May 2018

इबादतों में इश्क इकरार हुई

इंतजार में तेरे मेरी रातें सब बदनाम हुई
गुलज़ार दिनों की रौनक भी बस नज्मों पर तमाम हुई

खैर मक़्दम को तेरे रोज़ गुलाबों से महकाई फीज़ा
तेरी बेखुदी को देख महफ़िल-ए-गुलाब गम्जदा हुई

तेरे उल्फत के जो मैंने जाम पीए ख्वाबों के नशे में मैं डूब गयीं
ढल रहा है शबाब मेरा पर दिल की धड़कने जवान हुई

ये मेरी वफ़ा का आलम है जो बेपनाह इंतजार में दिल हर पल बेकरार रहा
ज़माने की गफलतों में मैं ढल गईं मेरी कहानी खुली किताब हुई

इज़हार-ए-मोहब्बत ए खुदा तेरे नाम की सरेआम की
इबादत-ए-इश्क में होकर फ़ना मेरी रूह भी बस तेरे नाम हुई

इंतजार,इज़हार,गुलाब,ख्वाब,वफ़ा,नशा
ए खुदा तुझे पाने की सरेआम कोशिशें तमाम हुई

दर दर भटकती निगाहों को खुदी में तेरा दीदार हुआ
रूह से रूह मेरी मिली कारवाँ-ए-ज़िंदगी तमाम हुई,इबादतों में इश्क इकरार हुई
इबादतों में इश्क इकरार हुई
   
                                        #आँचल

Saturday 5 May 2018

इंतजार में शबरी मइया

इंतजार में शबरी मइया
उमरिया अपनी घटाए रही हैं
चख कर एक एक बेर को मइया
भक्ति का स्वाद बढ़ाए रही हैं
इंतजार में शबरी मइया उमरिया अपनी घटाए रही हैं
राह निहारत सिकुड़ी अँखीया
कब आयेंगे प्रभु बुढ़िया की कुटिया
चुनकर काँटे फूल सजाए
स्वागत में हरी के पथ को सजाए
बस रामा रामा के गुण गाए
भजत राम सब दिन को बिताए
चढ़ भक्ति की नइया को
मइया जीवन को पार लगाए
मान गुरु की  आज्ञा शबरी
प्रभु पद पंकज को ध्यान लगाए
देख के भीलनी की भक्ति
भगवन भी आगे शीश झुकाए
राम लखन भाई की जोड़ी
कदम बढ़ाए शबरी की ओरी
जागे भाग लो शबरी के
जो जूठन खाए हरी एक भीलनी के
है अनुपम लीला प्रभु भक्ति की
जो प्रभु भी गाते है गुण शबरी के
ऐसी ही भक्ति निज मन भी समाए
इंतजार में हरी के जीवन कट जाए
जैसे पार लगी शबरी
ऐसे ही अपनी भी पार लग जाए
परम भक्तों की सूची में मइया भी
अपना नाम लिखवाए रही हैं
इंतजार में शबरी मइया
उमरिया अपनी घटाए रही हैं
चख कर एक एक बेर को मइया
भक्ति का स्वाद बढ़ाए रही हैं
इंतजार में शबरी मइया उमरिया अपनी घटाए रही हैं
                                             #आँचल

बूढ़ी आँखों का इंतजार

वो धूल की चादर ओढे जंभाई लेता पायदान
एक सीधी एक उलटी पड़ी पहरा देती चप्पल की जोड़ी
और चपड़ चपड़ बतियाते पत्तों की ढेरी
लगता जैसे खा जाए कान
खड़खड़ाती इन खिड़कियों संग खेलती आती जाती हवा
धूल सने इन कमरों को छुपकर देखते मकड़ी के जाल
और फड़फड़ाते ये बिखरे अखबार नाचें जैसे सावन के वार
मुरझाई सुखी इस तुलसी पर मातम मनाता ये सूना आँगन
और धूमिल टँगी तस्वीरों में खो गया जाने किसका बचपन
ये जूठा पड़ा चाय का कप और ऍल्बम में झाँकते ऐनक के संग
चु चु करते झूले पर लेटा इंतजार में कोई बूढ़ा तन
जाने किसके आने की आस में तड़प रहा था उसका मन
शायद बेटा था उसका जो दे गया बूढ़े को अकेलापन
और कह गया बाप से झूठे वचन
बोला कुछ दिन का बस इंतजार फ़िर तुझको भी लेकर जाऊँगा संग सारे त्योहार मनाऊँगा
फ़िर बीते साल और हर त्योहार
और बरकरार बूढ़ी आँखों का इंतजार
पर अकेलेपन ने गहरी एक चाल चली
बूढ़े की घुट कर जान गयी
एक चिट्ठी कप के पास मिली
मैं हारा करके बेटा इंतजार
अब चढ़ा दे आकर मुझ पर हार
अब भी तन को तेरा इंतजार
                                          #आँचल

Friday 4 May 2018

इंतजार उस राखी का जो बंध भी ना सकेगी


इंतजार उस राखी का जो बंध भी ना सकेगी
इंतजार उस राखी का जो बंध भी ना सकेगी
ना चमकेगी बिंदिया तेरी ना तू अब चहकेगी 
सुनी सी इस देहली पर  तेरी रंगोली ना सजेगी
इंतजार उस राखी का जो बंध भी ना सकेगी
कल तक जो सजी थी कलाई
आज ये कैसी आंधी आयी
खुली गाँठ और छूटा धागा
टूट गया रक्षा का वादा
वो आबरू तेरी लूट गया
बस बेरंग तन को छोड़ गया
और डूबे गम में वो सपने सलोने
जो देखे थे तेरे मेरे नैनो ने
सोचा था इस राखी तुझको
लाल चुनरिया ओढा दूँगा
डोली पर बिठा तुझको
तेरा राजकुमार दिला दूँगा
हाय अपंग सा बेबस मै
तेरी अर्थी को काँधा देता हूँ
जब सुन ना सका तेरी चीख़ो को
उस समय को बस मै रोता हूँ
काश करीब मै तेरे होता
तो सुन लेता तेरी पुकार
जब भी खतरो का साया होता
मै बचा लेता तुझे हरबार
इसी काश से कोसता खुद को
एक आस को मन में जगाता हूँ
इंतजार में तेरे बहना
राखी की थाल सजाता हूँ
उस मेहंदी को अब भी लाता हूँ
जो रच भी ना सकेगी
हर राखी तुझको बुलाता हूँ
पर तू आ भी ना सकेगी
इंतजार उस राखी का जो बंध भी ना सकेगी
इंतजार उस राखी का जो बंध भी ना सकेगी

                                            #आँचल