बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Sunday, 27 December 2020

है फिर भी ये कैसी लगन तुमसे कान्हा?

 


वो कभी प्रेम से चूमे गए,

कभी आँसुओं में भीगे ख़त ,

वो सूखे गुलाब जिनमें 

ताज़ा है इश्क की महक,

वो तुम्हारे साथ खिंचवाई तस्वीरें 

वो नोक-झोक,वो दलीलें,

वो तुमसे रूठ के जाना 

और तेरा आकर मनाना,

वो हाथों में हाथ थाम 

मीलों टहलना,

वो तेरे फोन के इंतज़ार में 

दिनभर तड़पना,

और छुपकर तुमसे 

सारी रात बतियाना,

वो मेरी नादानियों पर 

तुम्हारा भड़कना,

परवाह में मेरी रातों को जगना,

वो कंधे पर तेरे 

मेरा सर रखकर सोना,

ये कुछ भी तो नही 

मेरे पास ओ कान्हा,

है फिर भी ये कैसी लगन तुमसे कान्हा?

है फिर भी ये कैसी लगन तुमसे कान्हा?

#आँचल 

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 29 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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  3. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-12-20) को "नया साल मंगलमय होवे" (चर्चा अंक 3930) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा


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  4. वाह कितना सुंदर। हृदयस्पर्थी रचना। बधाई। उपको नववर्ष 2021 की ढेरों शुभकामनाएं।

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  5. वाह!प्रिय आँचल ,बहुत खूबसूरत सृजन ।

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  6. बस लगन है कान्हा से...तो लगन है...इन सब की जरुरत ही कहाँ...
    बहुत सुन्दर सृजन।

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  7. मन के भावों को अच्छा कों दिया है अंत आते आते ... कान्हा का सहारा ही परम मिलन को ले जाता है ...

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  8. अति सुन्दर ... हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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