बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Monday 23 March 2020

कोई ललित छंद मैं सुनाऊँ कैसे?



कोई ललित छंद मैं सुनाऊँ कैसे?
राग अनुराग का गाऊँ कैसे?-2

आँगन पड़ी दरार है,
बँटता मेरा परिवार है,
झूठी धरम की रार है,
कैसा ये व्याभिचार है!
तम कर रहा अधिकार है,
बुझने लगी मशाल है,
सत की मशालों को पुनः जलाऊँ कैसे?
राग अनुराग का गाऊँ कैसे?

कोई ललित छंद मैं सुनाऊँ कैसे?
राग अनुराग का गाऊँ कैसे?

आँगन मेरे विषाद है,
प्रीतिवियोग शाप है,
कोई अधमरी सी लाश है,
मानवता जिसका नाम है,
करुणा थी जिसकी प्रेयसी,
रण में धरम के चल बसी,
उस प्रेयसी को अब यहाँ बुलाऊँ कैसे?
राग अनुराग का गाऊँ कैसे?

कोई ललित छंद मैं सुनाऊँ कैसे?
राग अनुराग का गाऊँ कैसे?

आँगन बिछी बिसात है,
शकुनी की दोहरी चाल है,
लगी दाँव पर जो मात है,
बेटों की ये सौगात है,
भटके वतन के लाल हैं,
निश्चित धरम की मात है,
गरिमा धरम की अब यहाँ बचाऊँ कैसे?
राग अनुराग का गाऊँ कैसे?

कोई ललित छंद मैं सुनाऊँ कैसे?
राग अनुराग का गाऊँ कैसे?

#आँचल 

Wednesday 11 March 2020

" अक्षय गौरव ई-पत्रिका " का जुलाई - दिसम्बर 2019 संयुक्त अंक आ चुका है।

देर आयी पर दुरुस्त आयी  " अक्षय गौरव ई-पत्रिका " का जुलाई - दिसम्बर  2019 संयुक्त अंक आ चुका है। पत्रिका का हार्दिक स्वागत करते हुए हम संपादकीय मंडल को हार्दिक बधाई प्रेषित करते हैं और सभी चयनित रचनाओं के रचनाकारों को भी ढेरों शुभकामनाएँ देते हैं। पत्रिका के साहित्य समर्पित भाव को तो हम सदा ही नमन करते आए हैं। साथ ही संपादक मंडल के कर्मनिष्ठ भाव और लगन को भी मेरा सादर प्रणाम 🙏। सभी की मेहनत का यह शुभ परिणाम है। जहाँ भाव समर्पण का होता है वहाँ नारायण भी परीक्षा लेने से नही चूकते। बस कुछ ऐसा ही हुआ था जो पत्रिका समय पर ना आ सकी किंतु हमारे प्रिय पाठकों का पत्रिका के प्रति जो स्नेह है उसे देखते हुए पत्रिका को शीघ्र लाने हेतु हमारे आदरणीय रवीन्द्र सर ने पुनः इस पर काम किया। आदरणीय सर की इसके पीछे लगी मेहनत किसी से छुपी नहीं है अतः आदरणीय सर की सराहना तो बनती है।
अब पाठकों का इंतज़ार खत्म हुआ। अक्षय गौरव ई - पत्रिका  विभिन्न रसों और अलंकारों से सुसज्जित होकर,भिन्न विधाओं के संग प्रस्तुत है। आप सभी सुधी पाठकगण इसे पढ़िए,इसका आनंद लीजिए और अपनी शुभकामनाएँ दीजिए।


पत्रिका पढ़ने हेतु 

अक्षय गौरव ई - पत्रिका 


आइए अब आपका परिचय पत्रिका के कर्मनिष्ठ संपादक मंडल से भी करवाते हैं।

संपादक मंडल: अक्षय गौरव पत्रिका

संरक्षक

डॉ. फखरे आलम खान

वरिष्ठ संपादकीय सलाहकार

प्रोफ़ेसर गोपेश मोहन जैसवाल

संपादकीय सलाहकार

न्यायविद डॉ.चन्द्रभाल सुकुमार

प्रधान संपादक

विश्वमोहन

संपादक

रवीन्द्र सिंह यादव

संयोजक

ध्रुव सिंह 'एकलव्य'

संपादकीय टीम: पद्य खंड

संपादक- साधना वैद

वरिष्ठ उप संपादक -

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

उप संपादक -

अनीता लागुरी 'अनु'

संपादकीय टीम: गद्य खंड

संपादक-

विभा रानी श्रीवास्तव 'दंतमुक्ता'

वरिष्ठ उप संपादक-

सुधा सिंह 'व्याघ्र'

उप संपादक -

शीरीं तस्कीन

संपादकीय टीम: बाल-साहित्य

संपादक -

रेणुबाला

वरिष्ठ उप संपादक -

पम्मी सिंह 'तृप्ति'

उप संपादक -

आँचल पाण्डेय

साहित्यिक गतिविधियाँ

संपादक : मीना भारद्वाज

तकनीकी विशेषज्ञ -

राजेंद्र सिंह विष्ट

आदरणीय रवीन्द्र सर और आदरणीय ध्रुव सर को विशेष बधाई और साथ ही आभार भी अनेक बाधाओं को पार कर पत्रिका को शीघ्र पाठकों तक पहुँचाने हेतु ।
सादर प्रणाम 🙏
-आँचल

Tuesday 3 March 2020

जो जागा वो सूरज बनता है



सूरज चाचा एक बात बताओ 
क्या लगे नींद नही तुमको प्यारी?
तुम सुबह सवेरे जग जाते हो,
जग जाती है दुनिया सारी।

क्या छड़ी है कोई पास तुम्हारे
जिससे डरते चांद और तारे?
नभ में खेल रहे थे सारे 
देख तुम्हें भागे बेचारे।

दो पल भी तुमसे देर ना होती!
क्या घड़ी भी तुमसे पूछ के चलती?
हरी- भरी यह सुंदर धरती 
क्यों देख तुम्हें इतना हर्षाती?

चीं-चीं करती चिड़िया जागी,
पेड़ पे बैठी कोयल गाती,
गीत सुनाकर मुझे जगाती,
स्वप्न लोक से मुझे बुलाती।

मैं रानी गुड़िया बन घूम रहीं थी,
मीठे सपने देख रही थी,
जो माँ-बाबा के नाम को रोशन कर दे 
वो तारे अंबर से माँग रही थी।

तभी तुम्हारी किरणों ने आकर 
सपने मेरे तोड़ दिए,
जो तारे माँगे थे अंबर से,
वो अंबर में ही छोड़ दिए।

हा हा हा हा,हा हा हा हा,
पेट पकड़ हँसे सूरज चाचा,
बोले मन तेरा भोला कितना?
क्या सोकर पूरा होता कोई सपना?

अब सोचो जो  एक दिन ना आता मैं,
अंबर से दूर कहीं सो जाता मैं,
अंधियारा जग में छा जाता,
रंग सुंदर धरती का खो जाता।

जो देख रहे यह फूल खिले,
मँडराते इनपर कितने भँवरे!
बेचारे सब मुरझा जाते,
क्या तब भँवरे रस चखने आते?

ये चीं चीं करती चिड़िया रानी 
क्या दाना लाने जा पाती?
भूख से रोते बच्चों का अपने 
पेट कहाँ से भर पाती?

सपनों सी सुंदर इस धरती का 
एक दिन में रूप बदल जाता,
ना कोयल गीत सुना पाती,
ना मयूरा नाच दिखा पाता।

इसीलिए तो प्यारे बच्चों 
मैं ठीक समय पर आता हूँ,
संग आशा की किरणें लाता हूँ,
अँधेरे को दूर भगाता हूँ।

जगाता हूँ तुम सबको,
आगे बढ़ने की राह दिखाता हूँ,
धरती को रंग सुंदर देकर,
अपने सपने पूरा करता हूँ।

ना सोता हूँ,बस जागा हूँ,
यह पाठ तुम्हें भी पढ़ाता हूँ।
जो सोता वो सब खोता है 
जो जागा वो सूरज बनता है।

दमकता है इतना कि 
सारे जग को रोशन करता है,
नतमस्तक होकर जग सारा 
अभिनंदन उसका करता है।

#आँचल 

भोले भले हो



भोले, भले हो,नादान हो,
बच्चों तुम्ही तो भगवान हो। -2

मन में तुम्हारे कोई मैल नही है,
छल का तुम्हारा खेल नही है,
दिल में तुम्हारे जो अच्छाई है,
कहते उसी को सच्चाई है।
कोमल कली हो,फुलवारी हो,
आशा के तुम सब पुरवाई हो।

भोले,भले हो........

नज़रें तुम्हारी कोई भेद ना जाने,
जग में किसी को गैर ना माने,
पल में जो रूठो तो पल में ही मानो,
बैर ना जानो बस प्रेम ही बाँटो।
लड़कपन की सुंदर परछाई हो,
खुशियों भरी वो अलमारी हो।

भोले,भले हो..........

उलझे सवालों की तुम दास्तान,
जवाबों में ढूंढों नया सा जहाँ,
अंबर में तैरो,सागर में उड़ लो,
ज़मीं पे सितारों की कक्षा लगा लो।
इंद्रधनुष की रंगदानी हो,
नई दुनिया जो रंग दे वो पिचकारी हो।

भोले,भले हो..........

भोले,भले हो,नादन हो,
बच्चों तुम्ही तो भगवान हो।

#आँचल