बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Friday, 28 May 2021

मुद्दासृजन की रणनीति

 

भारत एक प्रगतिशील देश है। आप अर्थव्यवस्था और विकास जैसे संवेदनशील मुद्दों को उठाकर इसकी प्रगति पर प्रश्नचिह्न कैसे लगा सकते हैं?


माना तालाबंदी के दौर में बाज़ार कुछ ठंडे पड़ गए हैं किंतु शासन ने ' मुद्दासृजन ' की रणनीति को अपनाते हुए मुद्दों के बाज़ार की गर्मी इतनी बढ़ा रखी है कि संतुलन बरकरार रहेगा। यह मुद्दे प्राकृतिक नही हैं। इन्हें राजनीति की फ़ैक्टरी से आयात किया जाता है और सोशल मीडिया और मीडिया इसकी मार्केटिंग में ज़ोर-शोर से जुड़े रहते हैं।


इस फ़ैक्टरी द्वारा भाँति-भाँति के मुद्दों का सृजन किया जाता है। इनमें से कुछ का आनंद आप सुबह-शाम की चाय की चुस्कीयों के साथ ले सकते हैं और कुछ कई बार आपे से बाहर हो जाते हैं जिनके परिणाम अक्सर घातक होते हैं।

..... खैर। बड़े-बड़े देशों में एसी छोटी-छोटी बातें होती रहती हैं। 


अब मुद्दा यह है कि इन मुद्दों का सृजन क्यों हुआ? तो कारण कुछ इस प्रकार है कि पहले तो ये मुद्दे आपकी सेवा में लाए ही इसलिए गए कि यह आपको चिंता में डालने वाले वास्तविक मुद्दों से भटकाते हुए आपको पॉजिटिव रखने का प्रयास करें। आवश्यकता पड़ने पर यह आपको थपकी देकर सुला भी सकते हैं। अब यूँ आपको पॉजिटिव रखने के पीछे इनका मक्सद आपकी फिक्र करना नही अपितु आपके प्रकोप से अपनी रक्षा करना है।


निश्चित ही अब आप इसका अर्थ जनना चाहेंगे साथ ही यह भी कि इन मुद्दों की कार्यप्रणाली क्या है?


दरअसल यह मुद्दे आपके विवेक का हरण करने का सामर्थ्य रखते हैं। जैसे ही आप इन मुद्दों के वश में आते हैं यह एक मदारी की भाँति आपको अपने इशारों पर नचाते हैं और आप नाच भी लेते हैं। यही नही आप स्वयं के लिए ताली भी बजाते हैं और दर्शक बने अन्य देशों को आप पर हँसने का भरपूर अवसर भी प्रदान करते हैं।


किंतु जैसे ही कोई घटना/दुर्घटना आपको झकझोरती है आप तत्क्षण इन मुद्दों के पाश से मुक्त हो जाते हैं। अब आपका विवेक आपको वास्तविकता का बोध कराता है। आपके कान अस्पतालों की आत्मकथा सुनते हैं और आपकी आँखें विकास की असली कहानी देखती हैं। आपके नातेदार प्राणवायु के लिए झूझ रहे होते हैं और गंगा किनारे का मंजर आपको द्रवित कर देता है।


आपको शीघ्र यह अहसास होता है कि आप ठगे गए हैं, आपका शोषण किया जा रहा है और आप उग्र भाव से शासन-प्रशासन को घेरने लगते हैं।


अब स्थिति को समझते हुए आत्मरक्षा के अभिप्राय से आपको शांत करने हेतु मुद्दों की डिमांड और सप्लाइ दोनों बढ़ जाती है। बाजार में कुछ नए मुद्दे आते हैं और कुछ पुराने मुद्दों को नए रंग-रूप में ढालकर प्रस्तुत किया जाता है जैसे - विपक्षी दल के घर में अकस्मात् हमला बोलना, गौमूत्र और एलौपेथिक के मध्य घमासान को हवा देना, केसबुक और टरटर जैसे एप से शर्तें मनवाने के बहाने तालाबंदी से प्रेरित होते हुए आपके मुँह पर भी ताला लगाने की धमकी देना, एक शांत टापू को यूँ छेड़ना कि वो आंदोलन पर उतर आए और धर्म-मज़हब वाले मुद्दों की बिक्री तो चल ही रही है धड़ाधड़।


अब मुद्दों के बाज़ार की यह चमक पुनः आपको भटकाती है। आप अपनी सारी पीड़ा सारा दुख भूलते हुए इतने बेसुध हो जाते हैं कि जिन्हें आपकी चरणसेवा करनी चाहिए आप उन्हीं के पैर दबाते हैं।


अब देखना यह है कि मुद्दासृजन की यह रणनीति आपको कबतक यूँ बेसुध रखती है और कौन सी वह अप्रिय घटना होगी जो  पुनः आपको वास्तविक मुद्दों की सुध कराती है।


#आँचल 

4 comments:

  1. बहुत सुंदर सराहनीय

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  2. अब मुद्दों के बाज़ार की यह चमक पुनः आपको भटकाती है। आप अपनी सारी पीड़ा सारा दुख भूलते हुए इतने बेसुध हो जाते हैं कि जिन्हें आपकी चरणसेवा करनी चाहिए आप उन्हीं के पैर दबाते हैं।

    वाह!!!
    क्या खूब खाका खी़चा है आपने ...सही में मुद्दे ही मुद्दे ...इतने मुद्दे कि किस मुद्दे पर बात करें..चलो शान्त होकर हर मुद्दे की चर्चा अखबारों और न्यूज चैनलों पर चुपचाप सुनते जायें पढते जायें
    आखिर हम किसके साथ हैं यह फैसला हमारे बस में ही नहीं क्योंकि यहाँ तो चित्त भी मेरी तो पट भी मेरी....
    बहुत ही लाजवाब सृजन।

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  3. वर्तमान की राजनितिक सामाजिक परिस्थिति का आंकलन करती हुई पोस्ट है ... बहुत सुन्दर पोस्ट ...

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