माना
निश्चित है रात का ढलना,
और निश्चित है भोर का आना
पर इस निश्चित के आस में
कितना उचित है यूँ
हाथ पर हाथ धर बैठना?
यूँ ही नही अंधेरा हार जाता है,
यूँ ही नही सवेरा नूर लाता है।
फिर उमंग की प्यास में,
फिर सुबह की आस में
रात भर जुगनुओं को लड़ना पड़ता है,
अँधेरे को मिटाने हेतु
सूरज को भी जलना पड़ता है।
#आँचल
बहुत सुंदर विचार को उद्घाटित करती रचना प्रिय आंचल। सच में प्रकृति को भी नियम कायम रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है तो इंसान क्यों इससे बचकर मंजिल को पाना चाहता है। हार्दिक शुभकामनाएं और प्यार।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteठीक कहा आँचल जी आपने।
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDeletebirthday countdown quotes
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