बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Saturday 8 May 2021

धर्म नष्ट!

 


" कहाँ चली सवेरे-सवेरे इतना तैयार होकर? आज तो छुट्टी है कॉलेज की। "  जाप की माला फेरते हुए शुचि की दादी जी शुचि से पूछती हैं।

"दादी वो आफ़रीन के घर ईद की सेवई खाने।"

"क्या कहा? सेवई खाने! वो भी दूसरे धर्म वालों के घर। अरे पागल धर्म नष्ट करेगी क्या अपना?"

बस दादी का इतना कहना था कि शुचि के अंदर की क्रांतिकारी जाग उठी और दादी के विचारों का विरोध करने कूद पड़ी जंग के मैदान में।

" धर्म नष्ट? क्या मतलब दादी? क्या अपनी दोस्त के घर सेवई खाने से धर्म नष्ट हो जाएगा मेरा? क्या धर्म इतना कमज़ोर होता है? और ये दूसरे धर्म वाले कौन है? आप ने ही तो गीता में पढ़कर मुझे बताया था कि ईश्वर एक हैं और कण-कण में हैं। तो जिन्हें आप दूसरे धर्म वाले कह रही उनमें भी ईश्वर होंगे। तो उनके यहाँ सेवई खाने से मेरा धर्म कैसे नष्ट होगा? और..." 

"बस-बस "

दादी शुचि की ओर से आते हुए तर्क-संगत सवालों के बाणों को रोकती हैं और  फिर अपने अस्त्र-शस्त्र निकाल कर शुचि पर वार करती हैं -

" कुछ ज़्यादा ही पढ़-लिख गई हो तुम,इतना कि सारी मर्यादा और आदर भूलकर अब मुझसे कुतर्क करने बैठी हो।"

" कुतर्क नही दादी वास्तविकता है।"

"चुप " दादी आगबबूला होते हुए शुचि को कुछ भी आगे बोलने से चुप करा देती हैं और अपना वार जारी रखती हैं। 

" कहा था मैंने तुम्हारे माँ-बाबा से कि लड़की है ज़्यादा मत पढ़ाओ नही तो दिमाग खराब हो जाएगा इसका पर कोई मेरी सुनता कहाँ है अब देखो वही हुआ। "

" दादी मेरे दिमाग में नही समाज के विचारों में खराबी है।" शुचि फिर बोलती है पर दादी अपने बड़े होने के अधिकार से हाथ दिखाकर फिर शुचि को चुप करा देती हैं कि तभी दरवाज़े पर दस्तक होती है,शुचि दरवाज़ा खोलती है -

" जी मैं हामिद। आपने लड्डू गोपाल के पालने का आर्डर दिया था वही लाया हूँ।"

बस यह सुनकर तो शुचि को जैसे ब्रह्मास्त्र चलाने का अवसर मिल गया। 

" माफ़ कीजिएगा पर आप पालना वापस ले जाइए क्योंकी आपके लाए पालने में झूलकर तो दादी के लड्डू गोपाल का धर्म नष्ट हो जाएगा।"

बस शुचि का इतना कहना था कि दादी तमतमा कर उठीं और रसोई घर से ही सबकुछ सुन रही इस धर्म युद्ध की एकलौती साक्षी अपनी बहु को आवाज़ लगाती हैं। शुचि की माँ बाहर आती हैं और शुचि को डाँटते हुए सख़्त आदेश देती हैं -" शुचि अपने कमरे में जाओ।"


#आँचल 

3 comments:

  1. जी अद्भुत! "दादी का रोज धर्म पर अपनी पोती को ज्ञान देना...और वही दादी का लड़कियों का ना पढने की सलाह देना"....इन दोनों पहलुओं को एकसाथ प्रस्तुत करके आप इस संवाद के माध्यम से गहन विचार करने के लिए बाध्य कर रही हैं।
    अगर हम धर्म की बात कर रहे हैं तो उसमें किन्तु परन्तु बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। यह आपने बखूबी बताया।
    यह एक बेहतरीन संवाद का नमूना है।

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  2. बहुत रोचकता से दो पीढ़ियों के बीच में धर्म के बारे में व्याप्त अंतर को दादी पोती के संवाद के जरिए बखूबी अभिव्यक्त किया है प्रिय आँचल। अच्छा लिख रही हों। हार्दिक शुभकामनाएं और प्यार 🙏💐💐🌷🌷

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