विकराल है यह मौन और
विकराल इसके बोल होंगे,
झूठे तथ्यों की बारात में
जब सत्य के सब ढोल होंगे।
ये नदी के तट सभी जो
लाशों से हैं पट रहे,
कल इन्ही के नाम पर
बाजार में सब ढोंग होंगे।
कितनी लगेंगी बोलियाँ !
कितनी चलेंगी टोलियाँ!
इन टोलियों के मध्य गुँजित
क्रांति के भी बोल होंगे।
प्राणहीन जो हैं पड़े
शव उन्हें तू न समझ,
इन्ही शवों के काँधो पर
आरूढ समर के सूर्य होंगे।
चीखती हैं बस्तियाँ,
हर गाँव अश्रुपूर्ण है,
गिन लो अभी इन अश्रुओं को
कल यही तो शूल होंगे।
माना कलि का युग है ये
और झूठ का शासन घना,
पर सत्य के पदचाप से
हर तख़्त डाँवाडोल होंगे।
हो रहा फिर शंखनाद
हैं सुप्त लश्कर जागते,
जो वेदना सहकर उठी
चंडी से उसके स्वर होंगे।
इस काल में कपट है तो
उस काल में दंड होंगे,
काल के इस नृत्य के
परिणाम भी प्रचंड होंगे।
विकराल है यह मौन और
विकराल इसके बोल होंगे,
झूठे तथ्यों की बारात में
जब सत्य के सब ढोल होंगे।
#आँचल
Pic credit -पलक ( मेरी छोटी बहन )
इस काल में कपट है तो
ReplyDeleteउस काल में दंड होंगे,
काल के इस नृत्य के
परिणाम भी प्रचंड होंगे।
- वक्त के इस सांचे में तप कर/पिघल कर/ढलकर एक बेहतरीन रचना का सृजन हुआ है आपकी कलम से। ।।।।।।
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ चंचल जी।
उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 18 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीया दीदी जी। अवश्य प्रस्तुत होंगे 🙏
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय सर।🙏सादर प्रणाम
Deleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteक्रान्ति का नेतृत्व जब युवा पीढ़ी करने लगती है तो उसको सफल होने से किसी तानाशाह का पाशविक बल भी नहीं रोक सकता.
किंतु इस युवा पीढ़ी को मार्गदर्शन की हार्दिक आवश्यकता है आदरणीय सर। आपका आशीष बना रहे 🙏
Deleteउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
वाह! आँचल बहुत दमदार लिखा ।
ReplyDeleteहर बंध अपने आप में आग समेटे है।
और सच है ये कि
काल के इस नृत्य के
परिणाम भी प्रचंड़ होंगे।।
अभिनव सृजन।
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीया दीदी जी। सादर प्रणाम 🙏 शुभ रात्रि।
Delete"...
ReplyDeleteप्राणहीन जो हैं पड़े
शव उन्हें तू न समझ,
इन्ही शवों के काँधो पर
आरूढ समर के सूर्य होंगे।
..."
सही लिखा है आपने "विकराल है यह मौन"। इस मौन में भी अभी समर चल रहा है और इसके पश्चात भी यह समर जारी रहेगा।
वर्तमान परिस्थिति पर यह रचना चिंतन करने की ओर आकर्षित कर रही। योग्य रचना।
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
Deleteसमकालीन परिस्थितियों का न केवल सटीक चित्रण प्रत्युत एक चेतावनी भी।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
Deleteवेदना का अद्भुत चित्रण। प्रभावी रचना।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीया मैम। सादर प्रणाम 🙏
Deleteवाह!प्रिय आँचल ,अद्भुत सृजन ।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीया दीदी जी। सादर प्रणाम 🙏
Deleteबहुत सुंदर ! पर कोई भी चीज स्थाई नहीं होती ! समय की कूंची पुराने चित्रों पर अपने रंग फेर नए कुछ ना कुछ नया गढती ही रहती है
ReplyDeleteजी सर बिलकुल। उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
Deleteये नदी के तट सभी जो
ReplyDeleteलाशों से हैं पट रहे,
कल इन्ही के नाम पर
बाजार में सब ढोंग होंगे।
कितनी लगेंगी बोलियाँ !
कितनी चलेंगी टोलियाँ!
इन टोलियों के मध्य गुँजित
क्रांति के भी बोल होंगे।---ओहो गहनतम भावों का ये लेखन।
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
Deleteलाजवाब सृजन
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीया मैम। सादर प्रणाम 🙏
Deleteइस काल में कपट है तो
ReplyDeleteउस काल में दंड होंगे,
काल के इस नृत्य के
परिणाम भी प्रचंड होंगे।
सही कहा आपने कर्मफल तो भुगतना ही होगा कपट का दण्ड तो मिलेगा ही....
बहुत ही लाजवाब सृजन
वाह!!!
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीया मैम। सादर प्रणाम 🙏
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