बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Monday, 24 May 2021

श्याम मोरी विरह नीर भरे।

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https://youtu.be/6YIYzWXLfao




भोर-कलश से छलके तरणी,

ओढ़ी चूनर,थामे आस की गगरी,

पग पनघट की ओर बढ़े,

श्याम मोरी विरह नीर भरे।


अश्रु हैं माल, शृंगार नयन का,

शूल सुसज्जित डगर प्रणय का,

अधर पे चिर-विषाद लिए,

श्याम मोरी विरह नीर भरे।


मीत-निठुर की मैं अभिसारिका,

बाट निहारूँ, संग चंद्र-तारिका,

उमर की साँझ ढले,

श्याम मोरी विरह नीर भरे।


#आँचल 



8 comments:

  1. बहुत बहुत सुन्दर

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    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏

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  2. बहुत सुन्दर आँचल !
    सच्चे अर्थों में तुम मीरा की शिष्या हो !

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    1. Gopesh Mohan Jaswal अरे!😀
      ये तो बहुत बड़ी बात कह दी आपने सर। मीराबाई की शिष्या होना भी बड़े साहस का काम है। मुझमें इतना साहस कहाँ? हम तो बस उनका गुणगान करने भर का साहस रखते हैं। आशीषतुल्य सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏

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  3. वाह बहुत ही खूबूसूरत रचना है। खूब बधाई

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    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏

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  4. Replies
    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏

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