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https://youtu.be/6YIYzWXLfao
भोर-कलश से छलके तरणी,
ओढ़ी चूनर,थामे आस की गगरी,
पग पनघट की ओर बढ़े,
श्याम मोरी विरह नीर भरे।
अश्रु हैं माल, शृंगार नयन का,
शूल सुसज्जित डगर प्रणय का,
अधर पे चिर-विषाद लिए,
श्याम मोरी विरह नीर भरे।
मीत-निठुर की मैं अभिसारिका,
बाट निहारूँ, संग चंद्र-तारिका,
उमर की साँझ ढले,
श्याम मोरी विरह नीर भरे।
#आँचल
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
Deleteबहुत सुन्दर आँचल !
ReplyDeleteसच्चे अर्थों में तुम मीरा की शिष्या हो !
Gopesh Mohan Jaswal अरे!😀
Deleteये तो बहुत बड़ी बात कह दी आपने सर। मीराबाई की शिष्या होना भी बड़े साहस का काम है। मुझमें इतना साहस कहाँ? हम तो बस उनका गुणगान करने भर का साहस रखते हैं। आशीषतुल्य सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
वाह बहुत ही खूबूसूरत रचना है। खूब बधाई
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
Deleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
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