" अरे कंजूस सारा घी क्या अपने लिए बचा रखा है? थोड़ा घी और डाल हलवे में।" धनानंद अपने रसोइये पर बिगड़ते हुए कहते हैं।
" नही मालिक घी तो इतना डाला है कि घर के बाहर तक हलवे की खुशबू जा रही है। "धनानंद का रसोइया कुछ घबराते हुए बोला।
"अच्छा! तो मतलब मेरी ही नाक खराब है।"
" नही मालिक एसी बात नही है "
" ऐसा-वैसा छोड़ और चुपचाप थोड़ा और घी डाल और मेवे भी बढ़ा।"
धनानंद के धमकाने पर रोसोईया हलवे में घी और मेवे की मात्रा बढ़ाता है तो धनानंद प्रसन्नतापूर्वक बोलते हैं - " आहा! अब स्वाद आएगा। अरे सेठ धनानंद के रसोई में कुछ पके तो उसकी खुशबू घर के बाहर तक नही स्वर्ग तक पहुँचनी चाहिए जिससे देवताओं के मुँह में भी पानी आ जाए।"
"... और वे देवता हलवा सहित तुम्हें स्वर्गलोक में बुला लें।" धनानंद के मित्र सदानंद रसोई घर के भीतर आते हुए कुछ नाराज़ स्वर में बोलते हैं।
" यार तू दोस्त है या दुश्मन? कैसी बातें कर रहा?" धनानंद गरमागरम हलवा चखते हुए पूछते हैं पर हलवा मुँह में डालते ही धनानंद अपने रसोइये पर फिर बिगड़ते हैं -" चीनी क्या अपने लिए बचाकर रखी है? कितना फीका है हलवा, मीठा थोड़ा और डालो। "
इसपर सदानंद जवाब देते हुए कहते हैं -" तुम तो खुद ही अपने दुश्मन हो किसी दूसरे को दुश्मनी निभाने की क्या आवश्यकता? "
" क्या मतलब?"
" मतलब यह की ' अति ' सदा ' दुर्गति ' की ओर ले जाती है।"
"अरे भाई हमने कौन सी अति कर दी? "
" व्यापार हो या आहार हर चीज़ में तुम्हारी यह 'थोड़ा और ' की आदत को पूरा गाँव जानता है।अभी भी समय है धनानंद इस बात को समझो कि हर चीज़ अपनी हद में अच्छी होती है। यदि अभी तुमने अपनी यह आदत नही सुधारी तो भुगतोगे।"
सदानंद अपने मित्र को समझाते हैं पर धनानंद हलवे के आनंद में अपने मित्र की सलाह को अनसुना कर देते हैं और कुछ महीनों बाद वैसा ही होता है जैसा सदानंद ने कहा था। धनानंद की अति ने उनकी दुर्गति कर दी। उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया। डॉक्टरों ने कड़वी दवाइयों के साथ खाने- पीने में परहेज़ और व्यायाम की सलाह दी।
खैर इस दुर्गति से उनकी अति करने की आदत नही छूटी बस अब अंतर इतना था कि अब धनानंद रसोई घर में जाते तो अपने रसोइये को फटकारते हुए कहते -
" अरे यमदूत इतना तेल-घी डालकर मुझे मार डालेगा क्या?थोड़ा और कम डाल, एकदम न के बराबर।"
" जी मालिक।"
" घी की ज़रा भी खुशबू मेरी नाक तक न पहुँचे।"
"जी मालिक।"
"जी - जी न कर,काम पर ध्यान दे तबतक मैं थोड़ा और व्यायाम कर आता हूँ।"
#आँचल
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 09 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteअति हर चीज की बुरी होती है। बहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteअति सर्वत्र वर्जयेत! सुंदर संदेश।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर संदेशपरक सृजन।
ReplyDeleteवाह! "थोड़ा और" का तो आपने बहुत बेहतरीन ढंग से व्याख्या की हैं।
ReplyDeleteहर चीज़ की अति बुरी होती है ।
ReplyDelete😂😂😂😂 अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे। स्वादलोलुप घनानंद के अतिवादी स्वाद की रोचक कथा। आखिर समझ आयढ___ कि__अति सर्वत्र वर्जयेत!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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