बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Thursday, 6 May 2021

सुनहरा बक्सा

 


गौरी खुशी से उछलते-कूदते-चिल्लाते हुए आती है -" माँ... बाबा... माँ... बाबा... देखो आज फिर मुझे फर्स्ट प्राइज़ मिला। " 

"अरे वाह! मेरी गुड़िया ने फिर से फर्स्ट प्राइज़ जीता!" गौरी के बाबा उसे गोद में उठाते हुए बोलते हैं। गौरी की माँ उसके माथे को चूमते हुए गर्व से बोलती है -" मुझे तो पहले ही पता था कि मेरी बेटी का कथक में कोई मुकाबला नही कर सकता।"

" बिलकुल, देखना गौरी की माँ एक दिन हमारी बेटी पूरे विश्व में हमारा खूब नाम रोशन करेगी और ऐसे ढेरों पुरस्कार हमारी गुड़िया के नाम होंगे। हमारी गौरी विश्व की सर्वश्रेष्ठ शास्त्रीय नृतकी कहलाएगी।"गौरी के बाबा अपनी गुड़िया के भविष्य के सुनहरे सपने सजाते हुए बोलते हैं।


" बाबा मैं इस ट्रॉफी को भी अपने उसी सुनहरे बक्से में रखूँगी जिसमें मैंने अपनी गुड़िया,अपने घुंघरू और बाकी प्राइज़ रखे हैं।" गौरी अपने बाबा की गोद से उतरते हुए बोलती है और भागते हुए अपने सुनहरे बक्से को खोलने जाती है कि तभी कोई आवाज़ लगाता है - " बहु चाय बनी या नही अबतक?" 


गौरी अपने बचपन की उन सुनहरी यादों से बाहर आते हुए बोलती है - " बस ला रही हूँ माँजी।" हड़बड़ाते हुए उस सुनहरे बक्से को बंद करती है, और नम आँखों से उसपर ताला लगाते हुए बोलती है -" मैंने तो शादी के दो महीने बाद ही अपने हर सपने,हर इच्छाओं को इस बक्से में बंदकर,इसपर ताला लगाकर यहाँ इस स्टोर रुम में पटक दिया था। पर जाने क्यों जब भी यहाँ आती हूँ तो इसे खोले बिना नही रह पाती।" 

तभी गौरी का बेटा उसे आवाज़ लगाता है - " माँ जल्दी नाश्ता दो,कॉलेज के लिए लेट हो रहा हूँ।"

" हाँ बस लाती हूँ बेटा। " अपने बेटे को जवाब देते हुए गौरी बक्से पर लगे ताले की चाभी को देखती है और कुढ़ते हुए बोलती है - " सारा दोष इस चाभी का है। " और गौरी उस चाभी को स्टोर रुम की खिड़की से बाहर फेंकते हुए स्टोर रुम से बाहर आ जाती है।


#आँचल 


4 comments:

  1. कितने सपने और कितनी प्रतिभाएँ यूँ ही दबी है अनकही रह जाती है।
    शायद सारा दोष, हमारी शिक्षा व्यवस्था का है।
    सुंदर लेखन हेतु बधाई आँचल जी।।।।।

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  2. बहुत मार्मिक कहानी !
    काश कि गौरी एक बार अपने संकोच को और अपने ओढ़े हुए दायित्वों को खिड़की से बाहर फ़ेंक सकती.

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  3. हम हर कहानी के अंत में हम कुछ सुखद ही ढूंढते हैं पर अक्सर नहीं होता या कहूं कि यह केवल फिल्मों में ही होता है तो यह झूठ नहीं होगा।
    वाकई मर्म स्पर्शी कहानी है।

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  4. आँचल दी न जाने ऐसी कितनी और गौरी है, जिनके सपने बक्से में बंद हो जाते है। बहुत मार्मिक कहानी।

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