एक जोगन बनी एक दिवानी बनी,
मदन मनोहर को चाहने लगी।
एक गिरधर गिरधर जपने लगी,
एक कान्हा कान्हा बुलाने लगी
एक वीणा की धुन पे गाने लगी,
एक बंसी की धुन पे थिरकने लगी
एक जग की रीत ठुकराने लगी,
एक प्रेम की रीत निभाने लगी
एक संतों की वाणी कहने लगी,
एक संतों की वाणी बनने लगी
एक अश्रु प्रीत के बहाने लगी,
एक अश्रु बिछोह के छिपाने लगी
एक श्याम दरस को तरसने लगी,
एक कृष्ण विरह को सहने लगी
महलों में दोनों पली बड़ी श्याम रंग में रंगने लगीं
एक मीरा भयी एक राधा भयी
मदन मनोहर को चाहने लगी
एक जोगन बनी एक दिवानी बनी,
मदन मनोहर को चाहने लगी
-आँचल
बहुत खूब प्रिय आंचल | क्या खूब लिखा तुमने !! मीरा और राधा का प्रेम कृष्ण मुरारी के लिए अलग -अलग भावों से भरा था | एक जीत कर हारी तो दूसरी ने खुद को हार कर अपनी प्रेम तपस्या सफल की | तुम्हारे यश और सफलता की कामना करती हूँ | खूब लिखों और खुश रहो | मेरा प्यार |
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