बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Tuesday, 26 March 2019

शब्द शक्ति



शब्द सम कोई रिपु ना दूजा
शब्द सम ना मीत
तू चाहे तो तेरा दास बने
तू चाहे तो तेरा ईश
भाव है इसकी संगिनी
बिन भाव ना इसकी रीत
जैसे इसके भाव हो
वैसे इसकी नीत
तोल मोल कर जो बोले
हो उसकी जय जयकार
बिन तोले जो बोले
उसके बिगड़े सारे काज
दुर्भावों में जिसके शब्द रमे
ना पाता वो सत्कार
जिसके शब्द शब्द में प्रेम घुले
वो करता जग पर राज
पर शब्द भाव के फेर में
तब होता महाकल्याण
जब हर शब्द 'हरी' नाम हो
संग भाव भक्ति का अपरम्पार
और स्वंय जगदीश अकुला उठे
मिलने को तुझसे एक बार
तेरी शब्द शक्ति पर बैकुंठ तजे
और आ पहुँचें तेरे द्वार
#आँचल 

13 comments:

  1. सब शब्दों का खेल है। खूबसरत रचना 👌

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  2. सब शब्दों का खेल है। खूबसरत रचना 👌

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  3. शब्द ही अर्थ या अनर्थ बनाते हैं ।।। सुन्दर भाव लिए रचना। बहुत-बहुत बधाई ।

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  4. वाह!बहुत सुंदर ।

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  5. Very specific & tremendous lines which are describing the power of "Words" through words.

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  6. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" l में लिंक की गई है। https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/04/115.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  7. क्या बात है वाहह्हह प्रिय आँचल..शब्द की महिमा अत्यंत सुंदर👍

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  8. बहुत खरी और सही प्रिय आंचल सुंदर अभिव्यक्ति।

    शब्द मन की अंतर ध्वनि है
    ना बिना बिचारे बोल
    ऊंच नीच कुछ कह बैठा तो
    सारी खूलेगी पोल।।

    सोच के बोल तोल मोल के बोल।

    कुसुम कोठारी।

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