शब्द सम कोई रिपु ना दूजा
शब्द सम ना मीत
तू चाहे तो तेरा दास बने
तू चाहे तो तेरा ईश
भाव है इसकी संगिनी
बिन भाव ना इसकी रीत
जैसे इसके भाव हो
वैसे इसकी नीत
तोल मोल कर जो बोले
हो उसकी जय जयकार
बिन तोले जो बोले
उसके बिगड़े सारे काज
दुर्भावों में जिसके शब्द रमे
ना पाता वो सत्कार
जिसके शब्द शब्द में प्रेम घुले
वो करता जग पर राज
पर शब्द भाव के फेर में
तब होता महाकल्याण
जब हर शब्द 'हरी' नाम हो
संग भाव भक्ति का अपरम्पार
और स्वंय जगदीश अकुला उठे
मिलने को तुझसे एक बार
तेरी शब्द शक्ति पर बैकुंठ तजे
और आ पहुँचें तेरे द्वार
#आँचल
सुन्दर
ReplyDeleteसब शब्दों का खेल है। खूबसरत रचना 👌
ReplyDeleteसब शब्दों का खेल है। खूबसरत रचना 👌
ReplyDeleteशब्द ही अर्थ या अनर्थ बनाते हैं ।।। सुन्दर भाव लिए रचना। बहुत-बहुत बधाई ।
ReplyDeleteवाह!बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteवाह ....
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteVery specific & tremendous lines which are describing the power of "Words" through words.
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" l में लिंक की गई है। https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/04/115.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteक्या बात है वाहह्हह प्रिय आँचल..शब्द की महिमा अत्यंत सुंदर👍
ReplyDeleteबहुत खरी और सही प्रिय आंचल सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteशब्द मन की अंतर ध्वनि है
ना बिना बिचारे बोल
ऊंच नीच कुछ कह बैठा तो
सारी खूलेगी पोल।।
सोच के बोल तोल मोल के बोल।
कुसुम कोठारी।
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,,,,,खूबसरत रचना
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