बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Thursday 5 July 2018

जहाँ होए अँधेरा



जहाँ होए अँधेरा
वही निश्चर जागे
जहाँ ज्ञान उदित
वहाँ भयसे काँपे

जहाँ व्यापे कुमति
वहाँ  रोगी पनपे
जहाँ बोए सुमति
संजीवनी  जनमे

हो फल से विमुखता
यही  कर्म योग है
हो फल आसक्त
यही कर्म दोष है

होए  मल्ल अगर
सच झूठ के बीच
बल गिरे झूठ का
होए सच की जीत

हूँ जो मूढ़ी अज्ञानी
ज्ञान को क्या गाऊँ
आँचल हरी दासी
हरी बोल दोहराऊँ

 #आँचल 

17 comments:


  1. हो फल से विमुखता
    यही कर्म योग है
    हो फल आसक्त
    यही कर्म दोष है सही भाव प्रकट किए आपने सुंदर रचना आंचल जी

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया अनुराधा जी
      सादर नमन शुभ संध्या

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  2. 👏👏👏👏👏ज्ञान ध्यान का उत्तम संगम पढ़े गुने तो दूर हो मति भ्रम ....बेहतरीन लेखन आँचल ....वाह

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद दीदी जी बस
      हमने तो कोशिश की है बाकी भ्रमित का भ्रम नारायण दूर करें यही प्रर्थना है
      सादर नमन शुभ संध्या

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  3. नीति और सन्देश का सुन्दर संगम अभिव्यक्त हुआ प्रस्तुति में। बधाई एवं शुभकामनायें।

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    1. आपकी सराहना और बधाई गुरु आशीष के समान है बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सर
      सादर नमन शुभ संध्या

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  4. बहुत सुंदर संदेशात्मक रचना।
    इन छोटी-छोटी बातों मेंं जीवन की बड़ी सीख छिपी होती है।

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    1. जी बिल्कुल सही कहा आपने दीदी जी
      आपकी टिप्पणी उत्साह बढ़ा गयी
      बहुत बहुत धन्यवाद सादर नमन शुभ संध्या

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार 07-07-2018) को "उन्हें हम प्यार करते हैं" (चर्चा अंक-3025) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सर

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  6. वाह प्रिय आंचल बहुत छोटी छोटी मूल्यवान नैतिक बाते जिन्हें आपने काव्य रूप मे बहुत ही सुंदरता से प्रस्तुत किया
    अप्रतिम अतुलनीय ।

    ज्ञान का दीप जलते ही अज्ञान रूपी अंधकार
    हमेशा के लिये अंतर्धान हो जाता है,
    प्रज्ञाका दीप कोई आंधी बूझा नही सकती

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    1. अरे दीदी जी हम अज्ञानी क्या ज्ञान दीप जलायेंगे
      हम तो बस कोशिश करते हैं की स्वयं श्री हरी ने जो ज्ञान दीप जला रखा उससे जितनी ऊर्जा जितना प्रकाश हमे मिला उसे दूसरों तक भी पहुँचा सकूँ
      आपकी इस सकारात्मक संदेश देती सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक आभार सादर नमन शुभ संध्या

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  7. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/07/77.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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    1. हमारी रचना को इस योग्य समझने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय सर 🙇

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  8. संदेशात्मक रचना।

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