घिर घिर आओ कारे बदरवा
छाओ घटा घनघोर
छाओ घटा घनघोर
लागे अगन जिया में बयार के
बिरहिनी धरा को मूर्छा छायी
ताकत रस्ता पूछे नहरिया
कउने चक्कर घन ने सुध बिसराई
बिरहिनी धरा को मूर्छा छायी
ताकत रस्ता पूछे नहरिया
कउने चक्कर घन ने सुध बिसराई
भटके ईहाँ ऊहाँ प्यास से
चिरई कउआ रहे अकुलाई
झुलसत तरुवर सूखत पोखर
संग चातक मिल करत दुहाई
चिरई कउआ रहे अकुलाई
झुलसत तरुवर सूखत पोखर
संग चातक मिल करत दुहाई
घिर घिर आओ कारे बदरवा
छाओ घटा घनघोर
छाओ घटा घनघोर
भीगे तन मन भीगे सब जन
भीगे इक इक पात डार की
कूके कोयल गावे पपीहा
संग मल्हारी हो गरजन मेघ की
भीगे इक इक पात डार की
कूके कोयल गावे पपीहा
संग मल्हारी हो गरजन मेघ की
ठुमकत मयूरा मनुहार करे
ताल देत लड़कपन की ताली
कृषि मन में उत्साह जगे
जो भीजे धरा की हरियर साड़ी
ताल देत लड़कपन की ताली
कृषि मन में उत्साह जगे
जो भीजे धरा की हरियर साड़ी
घिर घिर आओ कारे बदरवा
छाओ घटा घनघोर
छाओ घटा घनघोर
हो मिलन फुहार बयार का पावन
गीली माटी की गंध उठे सौंधी सौंधी
झमझम कर बाराती बौछारें आए
मंडप में टर्राते बैठे मेंढक मेंढकी
गीली माटी की गंध उठे सौंधी सौंधी
झमझम कर बाराती बौछारें आए
मंडप में टर्राते बैठे मेंढक मेंढकी
पड़ जाए झूला अमवा की डार पर
झूलन को आए सब सखी सहेली
सावन का रस्ता देखें सुहागिन
रचाने को हाथों में तीज की मेहंदी
झूलन को आए सब सखी सहेली
सावन का रस्ता देखें सुहागिन
रचाने को हाथों में तीज की मेहंदी
घिर घिर आओ कारे बदरवा
छाओ घटा घनघोर
घनघोर बरस नव जीवन लाओ
यही बिनती सब ओर
घिर घिर आओ कारे बदरवा
छाओ घटा घनघोर
छाओ घटा घनघोर
घनघोर बरस नव जीवन लाओ
यही बिनती सब ओर
घिर घिर आओ कारे बदरवा
छाओ घटा घनघोर
#आँचल
घनघोर बरस नव जीवन लाओ
ReplyDeleteयही बिनती सब ओर
घिर घिर आओ कारे बदरवा
छाओ घटा घनघोर...
👌👌👌👌Worth reading. Excellent writing style
thank you so much Sir for your words
Deletevery good night 🙇
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (09-07-2018) को "देखना इस अंजुमन को" (चर्चा अंक-3027) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आदरणीय राधा जी हार्दिक आभार हमारी रचना को इस योग्य समझने के लिए
Deleteबहुत मनभावन और सरस गीत आंचलिक रंग में। बधाई और आभार!!!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सर बस आपकी रचनाओं से प्रेरित होकर हमने भी छोटा सा प्रयास किया था आपको पसंद आयी सार्थक हो गयी
Deleteसादर नमन शुभ रात्रि 🙇
आँचलिकता की चाशनी में पगी रसमय मनमोहक रचना है आपकी आँचल जी जो बरसात के सम्पूर्ण चित्र को जीवंत करती है। क़ाबिल-ए-तारीफ़ है आपका सृजन। लिखते रहिये। बधाई एवं शुभकामनायें।
ReplyDeleteआदरणीय सर आपने तो हमारी साधारण सी रचना की इतनी सराहना कर इसका खूब मान बढ़ा दिया।और आपकी टिप्पणी ने हमारे उत्साह को भी खूब बढ़ाया इसके लिए हार्दिक आभार।
Deleteआपकी शुभकामनाएँ और शुभ आशीष आगे भी बनी रहे इसी कामना के साथ सादर नमन सुप्रभात शुभ दिवस 🙇
निमंत्रण विशेष : हम चाहते हैं आदरणीय रोली अभिलाषा जी को उनके प्रथम पुस्तक ''बदलते रिश्तों का समीकरण'' के प्रकाशन हेतु आपसभी लोकतंत्र संवाद मंच पर 'सोमवार' ०९ जुलाई २०१८ को अपने आगमन के साथ उन्हें प्रोत्साहन व स्नेह प्रदान करें। सादर 'एकलव्य' https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteजी हम उपस्थित रहेंगे हार्दिक आभार 🙇
Deleteलोक गीत सी मनोहर सुंदर गायन शैली की अप्रतिम अभिराम प्रस्तुती आंचल बहुत मनभावन रचना पुरे पावस के सभी चिन्हों को काव्यात्मक ढंग से उकेरा है आपने ।
ReplyDeleteवाह रचना ।
हमने तो बस प्रयास किया है दीदी जी बाकी आप सबका स्नेह आशीष है।
Deleteआपकी मनमोहक टिप्पणी और उत्साहवर्धक सराहना के लिए हृदयतल से आभारी हैं हम।
सादर नमन सुप्रभात शुभ दिवस 🙇
भीगे तन मन भीगे सब जन
ReplyDeleteभीगे इक इक पात डार की
अप्रतिम पंक्तियाँ
पड़ जाए झूला अमवा की डार पर
ReplyDeleteझूलन को आए सब सखी सहेली
सावन का रस्ता देखें सुहागिन
रचाने को हाथों में तीज की मेहंदी बेहतरीन रचना
बहुत सुंदर
ReplyDeleteहो मिलन फुहार बयार का पावन
ReplyDeleteगीली माटी की गंध उठे सौंधी सौंधी
झमझम कर बाराती बौछारें आए
मंडप में टर्राते बैठे मेंढक मेंढकी!!!!
बहुत ही मधुर काव्य प्रिय आंचल !! आपके लेखन में निरंतर निखार बहुत ही सुखद है | सस्नेह |