Monday, 26 December 2022
स्वाभिमान की भूख
Thursday, 1 December 2022
सावधान!
Tuesday, 8 November 2022
यह कविता की बंजर शाला
कोरे पृष्ठों पर अंकित होती
प्रेम-सुमन-सी अक्षरमाला,
छंद-छंद कूके कोकिल और
छम-छम नाचे सुंदर बाला।
वह युग कब का बीत चुका है,
यह कविता की बंजर शाला।
यह कविता की बंजर शाला।
उतर रही है हिम शिखरों से
शुभ्र-ज्योत्सना कलकल सरिता,
डग-डग भू-जन पोषित हैं
चखकर ज्ञान-सुधा का प्याला।
वह युग कब का बीत चुका है
सुधा-पुंज अब उगले हाला।
यह कविता की बंजर शाला।
काट रही घनघोर तिमिर को
दो-धारी तलवार-सी तूलिका,
हो भानुसुता-सी उतर रही है
प्राची के उर में रश्मि-माला।
वह युग कब का बीत चुका है,
टूट गई अब रश्मि-माला।
यह कविता की बंजर शाला।
कोरे पृष्ठों पर अंकित होती
प्रेम-सुमन-सी अक्षरमाला,
वह युग कब का.......
यह कविता की बंजर शाला।
#आँचल
Wednesday, 19 October 2022
मौन का ढोंग!
Thursday, 13 October 2022
माई तेरी काजल-सी ढिबरी को राखुँ
ओ माई तेरी काजल-सी ढिबरी को राखुँ,
जाग-जाग रतियाँ में सुबह सजाऊँ ।
ओ माई तेरी.....
ओ मैली ये चदरिया! कैसे छुड़ाऊँ?
छींट पड़े नफ़रत के कैसे मिटाऊँ?
हाय रामा! हारी,हारी,मैं हारी,
धो-धो चदरिया दागी मोरी साड़ी।
माई दागी साड़ी को कैसे छुपाऊँ?
जाग-जाग रतियाँ में .....
ओ लाँघी जो देहरी तो घर कैसे जाऊँ?
अटक-अटक भटकी,डग कैसे पाऊँ?
हाय रामा! हारी,हारी,मैं हारी,
ढो-ढो धरम,करम गठरी से हारी।
माई करम गठरी अब कैसे उठाऊँ?
जाग-जाग रतियाँ में .....
ओ फूटी रे हाँडी,कैसे-क्या पकाऊँ?
भीगी रे लकड़ियाँ,ताप कैसे पाऊँ?
हाय रामा! हारी,हारी मैं,हारी,
जेब पड़ी ठंडी,आग पेट में लागी।
माई ऐसी सर्दी में जी कैसे पाऊँ?
जाग-जाग रतियाँ में.....
ओ माई तेरी काजल-सी ढिबरी को राखुँ,
जाग-जाग रतियाँ में सुबह सजाऊँ।
ओ माई तेरी.....
#आँचल
Friday, 7 October 2022
मड़ई के राम
Wednesday, 28 September 2022
रात बैठी दीये मैं जलाती रही
(यहाँ 'मैं' अर्थात लेखनी)
रात बैठी दीये मैं जलाती रही,
इस अमावस से रार निभाती रही,
बुझ चुकीं न्याय की जब मशालें सभी,
एक जुगनू से आस लगाती रही।
रात बैठी.........
चढ़ चुके थे हिंडोले विषय जब सभी,
सज चुके मानवी जब खिलौने सभी,
मेला झूठ का ठग ने लिया जब सजा,
मैं भी सत्य का ढोल बजाने लगी।
रात बैठी........
दामिनी नैन अंजन लगाने लगी,
रागिनी राग भैरव गाने लगी,
यामिनी से गले लग खिली जब कली,
मैं भी दिनकर को ढाँढ़स बँधाने लगी।
रात बैठी........
आँख से बहते पानी से छलने लगे,
लोग अंतिम कहानी पे हँसने लगे,
जब हिमालय भी थककर बिखरने लगा,
मैं भी पत्थर-सी सरिता बहाने लगी।
रात बैठी........
#आँचल
Friday, 16 September 2022
चोला झूठ का सच को ओढ़ा दीजिए
Friday, 19 August 2022
मैं अमरता की नहीं कोई प्यास लेकर आई हूँ
मोक्ष की,वरदान की न चाह लेकर आई हूँ,
मैं समर्पण भावना से,नेह के उल्लास से,
प्रीत की गागर लिए सागर के द्वार आई हूँ।
मैं अमरता की नहीं......
नृत्य-नूपुर राधिका के मैं न बाँधे आई हूँ,
मैं नहीं मीरा की वीणा साथ लेकर आई हूँ,
मैं नहीं हूँ सूर जो अंतर में तुझको पा सकूँ,
धूल हूँ,चरणों की तेरे धूल होने आई हूँ।
मैं अमरता की नहीं......
रंग है,न रूप है,न संग में कोई कोष है
मोह है,न क्षोभ है,न जग से कोई रोष है,
दोष है मेरा कि मैं उजली सुबह न हो सकी,
यामिनी से द्वंद्व में पर हार के न आई हूँ।
मैं अमरता की नहीं.....
संकल्प की अभिसारिका,कर्तव्य हेतु आई हूँ,
परिणय की अग्नि-शिखा को पार कर के आई हूँ,
ओढ़कर चूनर वैरागी प्रणय पथ पर आई हूँ,
शून्य हूँ, महाशून्य में अब लीन होने आई हूँ।
मैं अमरता की नहीं कोई प्यास लेकर आई हूँ,
मोक्ष की,वरदान की न चाह लेकर आई हूँ,
मैं अमरता की नहीं......
#आँचल
Thursday, 18 August 2022
मैं खंडित-अखंड भारत हूँ
मैं भारत थी,
अखंड भारत।
मेरी विविधता थी
मेरे गर्व का कारण,
मेरी संतान करती थी
सहृदयता को धारण,
कर्म जिसका पथ था
और था सत्य का बल
प्रेम-सौहार्द संग
था जो निश्छल।
अनेक होकर भी एक,
एकता का सूत्र प्यारा था।
मैं आज भी
भारत हूँ,
खंडित-अखंड भारत।
निरपराध मैं
अपनी ही संतान द्वारा
दंडित अखंड भारत।
ज़ात-धर्म पर मुझे बाँटा गया,
राग-द्वेष से पाटा गया,
मेरी गोद में खेलती अबोध संतान
को मौत के घाट उतारा गया!
मैं स्तब्ध खड़ी देखती रही
मेरी संतान की निर्ममता,
मेरे टुकड़े कर चिल्लाया गया-
"संकल्प हमारा देश की अखंडता।"
#आँचल
Monday, 15 August 2022
स्वतंत्रता दिवस की पचहत्तरवीं वर्षगाँठ
नमस्कार 🙏
आज स्वतंत्रता दिवस की पचहत्तरवीं वर्षगाँठ के अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।
प्रार्थना है कि यह आज़ादी जो हमें प्राप्त है,जिसका हम जश्न मना रहे हैं वह सदा बनी रहे। हम अपनी सांप्रदायिक मानसिकता का त्याग करते हुए, बैरभाव का नाश करते हुए एक साथ देश के आर्थिक एवं बौद्धिक विकास हेतु प्रयासरत रहें। हमारा प्रत्येक कर्म स्वार्थ-साधना से ऊपर उठकर राष्ट्रसाधना में समर्पित हो। अपनी उपलब्धियों पर अपनी पीठ थपथपाते वक़्त हम यह न भूलें कि अभी बहुत कुछ है जो प्राप्त करना शेष है। प्रत्येक देशवासी के सर पर छत, तन पर वस्त्र और थाल में रोटी पहुँचाना शेष है।
..... और एसी प्रार्थना हम ईश्वर से नहीं देशवासियों से करते हैं क्योंकी यह सब हम देशवासियों के कर्मनिष्ठ हाथों से ही संभव है। हमें चाहिए कि हम अपनी जन-जन में भेद करनेवाली ओछी मानसिकता की दासता से मुक्त हों,जन-कल्याण की भावना को अपने अंतर में समाहित करें और विकास के पथ पर अग्रसर होते हुए विश्वभर में देश की कीर्ति पताका फहरा दें। बस यही हमारी देशसेवा कहलाएगी।
जय हिंद 🙏
Tuesday, 9 August 2022
गरजते मेघ
Thursday, 4 August 2022
विश्वमोहिनी की अमृत - गगरी
गगरी अमृत की छलकाती
वह विश्वमोहिनी, विश्वसुंदरी
रूप से अपने भरमाती
तब विश्वगुरु भी बहक - बहक
सुध - बुध अपनी सब बिसराते
और गरल - सुधा का भेद भूल
जब गरल सुधा - सम पी जाते,
तब इठलाती कुछ बलखाती
वह विश्वमोहिनी विश्वगुरु को
छलकर शोक में मुसकाती।
#आँचल
Saturday, 30 July 2022
निद्रा - विहार
Tuesday, 19 July 2022
पुस्तक समीक्षा - " चीख़ती आवाज़ें " ध्रुव सिंह ' एकलव्य '
Thursday, 23 June 2022
मम्मी - डैडी की इकतीसवी विवाह वर्षगाँठ पर कुछ पंक्तियाँ अर्पित।
इकतीसवी विवाह वर्षगाँठ के सुअवसर पर मेरे प्यारे से मम्मी-डैडी को अनंत बधाई,शुभकामनाएँ और ढेर सारे प्यार संग कुछ पंक्तियाँ अर्पित हैं 🙏💕
हे शतकोटि अंबर सम ऊँचे,
विमल धरित्रि सम गुण भींचे,
हे भवभूषण,हे त्रिपुरसुंदरी,
हे मधु से मधुर आम्र मंजरी,
हम बालक भँवरा सम डोलें,
वात्सल्य-सुधा-रस का सुख भोगें,
अमृत है सौभाग्य हमारा,
भव-सिंधु में आप किनारा,
संघर्ष-सुवन में बाबा ही छाँव,
आँचल में ममता का गाँव,
इन चरणों की क्या कीरति गाँऊ?
जिन चरणों में हो हरि का ठांव
कौन सुरेश्वर? कौन जगतपति?
आप में ही त्रिलोक,सुख,संपत्ति,
हे करुणेश्वर,क्षमा के सागर,
आप से ही भरे ज्ञान-गुण-गागर,
हम मूढ़ी,अपराध ही जाने,
सेवन-पूजन की विधि क्या जाने,
श्रद्धा से जो शीश नवाएँ,
बैकुंठपति के दर्शन पायें।
#आँचल
Thursday, 9 June 2022
सूरज चाचा को हुआ ज़ुकाम।
एक दिन सूरज चाचा ने थक कर ली उबासी,
वहीं-कहीं पर खेल रहे थे भोले चंदा मामा जी,
जो खुला सूर्यमुख गुफा समान,
ठंडे-ठंडे मामा बन गए मेहमान,
मुख से भीतर प्रवेश हुआ,
फिर हुआ वही जो कभी न हुआ।
सूरज चाचा को हुआ ज़ुकाम,
अम्मा उनकी हुई परेशान,
जो छींकें तो आँधी आ जाए,
नाक बहे तो बारिश,
देवगण भी सोच रहे किसने की यह साज़िश?
भाँप-बाम कुछ काम न आया
तब अम्मा ने डॉक्टर को बुलाया,
डॉक्टर ने मोटी सुई लगाई,
जाँच-रिपोर्ट बनकर आई,
पढ़कर डॉक्टर हुए हैरान,
सूर्य के भीतर बैठा कोई शैतान!
फिर ऑपरेशन तत्क्षण हुआ,
डॉक्टर ने चांद को मुक्त किया,
ज़ुकाम सूर्य का ठीक हुआ
पर चंदा थोड़ा झुलस गया,
उजले मुख पर दाग देखकर
चांद बड़ा पछताया,
मोटे-मोटे आँसू संग सूर्य को यह बतलाया -
"अगर थोड़ा-सा मैं देता ध्यान
करता न तब ऐसा काम,
मुख है,गुफा नही यह बात
अगर मैं लेता जान।"
तब सूरज चाचा ने बड़े प्रेम से
चंदा मामा को समझाया,
"अनुभव में ही ज्ञान पले"
यह भेद उन्हें बतलाया।
माना गलती से होते हैं
थोड़े-बहुत नुकसान,
पर इससे ही लेकर सीख
बनते लोग महान।
#आँचल
( प्रस्तुत चित्र का श्रेय मेरे छोटे भाई आशुतोष पाण्डेय को )
Wednesday, 8 June 2022
जल रहा है देश मेरा।
तप रहा है देश मेरा
सूर्य के क्या ताप से?
या जल रहा है यह प्रचंड
नफ़रतों के आग से?
हैं कौन सी ये आँधियाँ?
है काम इनका क्या यहाँ?
क्या यह प्रजा का रोष है?
या स्वाँग कोई रच रहा?
कैसा उजाला है यहाँ?
कोई छलावा है यहाँ!
इस रोशनी के गर्भ में
षड्यंत्र कोई पल रहा।
क्या सो रहे हैं देश के
बुद्धिजीवी लोग सब?
या जागता है वीर कोई
ज्ञान-चक्षु खोलकर?
है धन्य-धन्य भारती की
बंद क्यों अब आरती?
क्यों किसी कोनें में बैठी
माँ मेरी चीत्कारती?
हे देश के तुम क्रांतिवीरों
मौन अब साधो नही,
साधु का तुम वेश धर के
शस्त्र अब त्यागो नही।
जान लो शकुनि के पासे
चाल कैसी चल रहे,
कौन से उस लाक्षागृह में
पांडव फिर से जल रहे,
जागो नगर के लोग सब
यह खेल तुम भी देख लो,
लाज को फिर द्रौपदी की
तार -तार होने न दो।
है कौन सी वह ' सोच '
तुम दास जिसके बन गए?
शोषण में क्या आनंद
जो संघर्ष करना भूलते?
ए वतन के सरफरोश
देखो झुलसता देश तेरा,
सौहाद्र-प्रेम-आदर्श संग
भस्म होता देश मेरा,
कोई यहाँ पर लड़ रहा,
कोई वहाँ पर डर रहा,
कोई यहाँ पर बँट रहा,
कोई वहाँ पर कट रहा,
त्राहिमाम-त्राहिमाम
यह देश मेरा कर रहा,
ए भारती के लाड़लों
क्या कोई माँ की सुन रहा?
#आँचल
Sunday, 29 May 2022
दोष न डारो राजा पर
Tuesday, 10 May 2022
है अब भी कोई वीरवान?
जब समाज में मूल्यों का पतन हो जता है,मर्यादा के बंधन टूट जाते हैं ,सत्य का सूर्य निस्तेज हो जाता है,चारों ओर अँधेरे का साम्राज्य स्थापित हो जता है और धर्म अधर्म के सागर में बस डूबने को होता है तब सदा धर्म के पक्ष में खड़ी होने वाली लेखनी इस काल खंड के नायक को ढूँढ़ते हुए सभी धर्मात्माओ एवं वीरों को ललकारती है और पूछती है कि " है अब भी कोई वीरवान? " जो इस अंधकार का समूल नाश कर भटके साधकों को उचित दिशा देते हुए मनुष्य को उनका कर्तव्य स्मरण करा सके। बस इसी प्रयास में लेखनी जो कहती है वो अब इन पंक्तियों में पढ़िएगा 🙏
मूल्य हुए सब धूल,
कौन अब धूल को माथे पर धरते?
ढोंगी चंदन घिस-घिस सजते,
बचते भगत शृंगार से,
भजते राम नाम को रावण,
तुलसी डरते राम से,
राम नाम की लाज बचाते
हनुमान हैरान से,
रट-रट पोथी -पन्ने कितने!
मूरख जब ज्ञानी लगते,
ज्ञान-गुणी जब प्राण बचाकर
कंद्राओं में छुप बैठे,
ऐसे घनघोर अँधेरे में अब
वाल्मीकि भी क्या लिखते?
दंतहीन हो गए गणेश
अब व्यथा धर्म की क्या लिखते?
तब मानव ने भी करुणा त्यागी,
मर्यादा ने चौखट लाँघी,
काली घर में कैद हुई
और आँगन से तुलसी भागी,
तब शेष राष्ट्र में ' कायर ' हैं बस
या है अब भी कोई वीरवान?
जिसके एक भरोसे पर
होगा कल फिर से नव-प्रभात।
#आँचल
Friday, 6 May 2022
लिखना नही छोड़ा है।
Wednesday, 4 May 2022
ओ एकलव्य की लेखनी
Tuesday, 3 May 2022
' हरि ' नाम अति मीठो लागे।
खीर न पूरी न माखन मिसरी
कछु स्वाद न मन को भावे री,
' हरि ' नाम अति मीठो लागे
छक लूँ पर मन न माने री।
सखी री कौन उपाय करूँ?
कौन सो बैद्य बुलाऊँ री?
व्याकुल मन की पीड़ा को जो
दे पुड़िया निपटावे री।
रह- रह नयन बरसात करे,
सावन देख लजावे री,
डूबी! डूबी! विरह-बाढ में
हरि बिन कौन बचावे री?
कोई कहे पागल,कोई कहे ढोंगी
जग में भई हँसाई री,
भगत परीक्षा देत न हारी
हरि के लगी थकाई री।
मेहंदी,काजर,माथे की टिकुरी
कछु न मोहे सुहावे री,
बृज की रज से शृंगार करूँ
रज ही रज में रम जाऊँ री।
न जागूँ,सोऊँ,गाऊँ,रोऊँ
बस नाम 'हरि' दोहराऊँ री,
अंत समय पिय याद करें तो
पिय के लोक को जाऊँ री।
#आँचल
Monday, 2 May 2022
परीक्षा में नकल करने की प्रथा।
Sunday, 24 April 2022
पात्र या दर्शक?
नाटकों के पात्र हैं हम सब,
नही किसी पात्र के दर्शक,
हमारा कर्म है अभिनय,
हमारा धर्म है अभिनय,
हमारे कर्म का,सत्कर्म का,
नीयत,नीतितत्व का एक मात्र वह दर्शक,
जिसको रिझाने के लिए उसने चुना हमको,
हम भूलकर उसको
कहें हर पात्र को दर्शक!
#आँचल
Wednesday, 26 January 2022
जागो हे नवयुग के दाता।
Tuesday, 11 January 2022
आज हरि मैं दर तेरे आई
आज हरि मैं दर तेरे आई। -2
कल इस जग के काम बहुत थे,
राग बहुत,अनुराग बहुत थे
ता में तेरी सुध बिसराई,
आज हरि मैं दर तेरे आई।-2
हाय!कैसी विपदा आई?
विपदा जो आई सुध तेरी लाई,
सुध आई तब कीरति गाई,
आज हरि मैं दर तेरे आई।-2
#आँचल