बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Thursday, 13 October 2022

माई तेरी काजल-सी ढिबरी को राखुँ



ओ माई तेरी काजल-सी ढिबरी को राखुँ,

जाग-जाग रतियाँ में सुबह सजाऊँ ।

ओ माई तेरी.....


ओ मैली ये चदरिया! कैसे छुड़ाऊँ?

छींट पड़े नफ़रत के कैसे मिटाऊँ?

हाय रामा! हारी,हारी,मैं हारी,

धो-धो चदरिया दागी मोरी साड़ी।


माई दागी साड़ी को कैसे छुपाऊँ?

जाग-जाग रतियाँ में .....


ओ लाँघी जो देहरी तो घर कैसे जाऊँ?

अटक-अटक भटकी,डग कैसे पाऊँ?

हाय रामा! हारी,हारी,मैं हारी,

ढो-ढो धरम,करम गठरी से हारी।


माई करम गठरी अब कैसे उठाऊँ?

जाग-जाग रतियाँ में .....


ओ फूटी रे हाँडी,कैसे-क्या पकाऊँ?

भीगी रे लकड़ियाँ,ताप कैसे पाऊँ?

हाय रामा! हारी,हारी मैं,हारी,

जेब पड़ी ठंडी,आग पेट में लागी।


माई ऐसी सर्दी में जी कैसे पाऊँ?

जाग-जाग रतियाँ में.....



ओ माई तेरी काजल-सी ढिबरी को राखुँ,

जाग-जाग रतियाँ में सुबह सजाऊँ।

ओ माई तेरी.....


#आँचल 

1 comment: