बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Thursday, 31 January 2019

राजनीति के खेल में 'राम' नाम ब्रह्मास्त्र



घबराए से नारद जी
जो पहुँचे राम दरबार
भरत,लक्ष्मण,शत्रुघ्न संग
मारुति करें सत्कार
अभिवादन करते राम जी
पूछें क्या हैं हाल
शिकन माथे पर लाए हो
क्या है आज समाचार
सकपकाए से मुनिवर बोले
बहुत बुरा प्रभु हाल
धर्म कर्म के नाम
आया कैसा ये भूचाल
सत्ता के अधिकारियों ने
नाप लिया मैदान
साधु संतों में फूट पड़ी
भिड़ने को सब तैयार
हे राम तेरे नाम पर
कैसा ये घमासान
कोई मंदिर के नाम बवाल करे
कोई लेता राम अवतार
पक्ष -विपक्ष में अधर्म खड़े
बने बगुला भगत महान
राजनीति के खेल में
'राम' नाम ब्रह्मास्त्र
प्रभु आप स्वयं बताइए
किसके खड़े हैं साथ
चकित राम दरबार हुआ
देख राघव की मुस्कान
तभी पवनसुत आगे बढ़े
और पूछे हास का राज़
विनम्र भाव श्री राम कहें
मैं तो धर्म का नाथ
जहाँ पक्ष-विपक्ष अधर्म खड़ा
वहाँ मेरा क्या काम
जहाँ राग हो प्रेम का
वहीं राम निवास
जहाँ परचम विवादों का
वहाँ राम निकास
धरम-परम के नाम
बने संसद दो या लाख
राजनीति की नीव पर
सबका मक़सद स्वार्थ
बिन स्वार्थ राम का नाम जपे
वो हृदय राम का द्वार
हर मर्यादा का जो मान करे
वही राम अवतार

सियापति रामचंद्र की जय

#आँचल 

Friday, 25 January 2019

जो बजा डमरू इलेक्शन का



जो बजा डमरू इलेक्शन का 
सब नेता खेल दिखाने लगे
खुद की चतुराई पर नाज़ इतना
जनता को उल्लू बनाने लगे
कभी  साइकिल पर हाथी सवार
कभी बहन भाई की अगुआई करे
कभी कमल रहा कीचड़ उछाल
जाने क्या क्या स्वाँग रचे
मंदिर - मस्जिद, राफेल,आरक्षण 
सब मुद्दे ऐसे उठा रहे
हितैषी बने जनता के जो
जनता को ही ठगने लगे
झूठे वादे परोसकर
झोली वोट से भरने चले
पर भूल गये की जनता भी
शातिरों की सरताज है
खेल तुम्हारे खूब समझती
बैठी अभी चुपचाप है
आने को है वक़्त उसका
जब देगी तुम्हें जवाब वो
तब डमरू नही बजेगा डंका
क्योंकि गणतंत्र का यहाँ राज है
#आँचल
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

Thursday, 24 January 2019

ए रात तुझे मैं क्या लिखूँ



ए रात तुझे मैं क्या लिखूँ
अंत लिखूँ या आग़ाज़
आज लिखूँ या कल लिखूँ
या लिखूँ दोनों का परवान
तुझे द्योतक अंधकार का लिखूँ
या लिखूँ नवल प्रभात का दूत
तुझे जोगन का जाप लिखूँ
या लिखूँ प्रेम गीत विभूत
करें रतजगा उनका तुझे मीत लिखूँ
या लिखूँ अवसादों का विश्राम
सोम को तेरा सरताज लिखूँ
या लिखूँ तारों को तेरा शृंगार
तम को तेरा गर्व लिखूँ
या लिखूँ दिवा का तुझसे अभिमान
शुभ लिखूँ या अशुभ
या लिखूँ दोनों की तुझे पहचान
कवि मन सदा मेरा सोचता
ए रात तुझे मैं क्या लिखूँ
अंत लिखूँ या आग़ाज़
या लिखूँ तुझे बस "रात"
#आँचल

Thursday, 17 January 2019

जोगी भेष शिव शंकर पुकारे


मात यशोदा द्वार पधारे
जोगी भेष शिव शंकर पुकारे
पलने में हैं  तेरे नाथ हमारे
दिखा दे मुख, तेरे भरे भंडारे

शीश जटा,चंद्र भाल पर सोहे
रवि सम कांति मुखमंडल शोभे
बाल रूप दरस मन आतुर होए
शिंगी नाद संग प्रभु को जोहें

लिए भिक्षा माँ यशोदा आयें
संग मोती माणिक दक्षिणा लायें
सब ठुकरावे जोगी,दोगुना थमाए
ये पत्थर ना मइया हमे लुभाए

हम आए दूर कैलाश पर्वत से
लिए लालसा प्रभु दर्शन के
दुर्लभ दर्शन हरी बाल रूप के
होता है योग कई युगों बीत के

घबराई यशोदा,भय मन में व्यापे
जोगी भेष धरे मायावी लागे
करे प्रर्थना,हे भोले विपदा को टालें
भोली मइया भोले को ना पहिचाने

रची लीला लीलाधारी ने
प्रकटी माया श्री बनवारी से
दुर्बल काया,लठ साथ निभाए
बन बुढ़िया माया लड़खाती आए

यशोदा रानी तेरे भाग हैं जागे
दर तेरे भगवान पधारे
है भीम रूप,शम्भू भय हरते
ब्र्म्ह,हरी,शक्ति नित पूजे

लगी माया तब महिमा गाने
शंकर के सुंदर गुण-भेद बताने
तब दौड़ी मइया आनंद को लाने
शिव -मोहन की अद्भुत भेट कराने

सब देव धरा पर आने लगे
शंख,ढोल,मंजीरा बजाने लगे
जब हरी - हर नैन मिलाने लगे
सब उनपर पुष्प बरसाने लगे

कमल नयन के लोचन कजरारे
छटा धरा पे अधरों से आए
मुखमंडल तेज पे सूर्य लजाए
मनहारी श्याम भोले मन भाए

मगन भए नटराजन ऐसे
सुन मेघों को मयूरा झूमे जैसे
भरा भाव हृदय में वैरागी के ऐसे
साहिल को तड़पे उर्मि जैसे

सब देव अचरज में देखन लागे
माता आगे विधाता हारे
दो क्षण को गोद दे नाथ हमारे
बन याचक दाता भी माँगन लागे

भय,मोह व्याधा मन ऐसे साधे
प्रभु ओर पग बढ़त ना आगे
याचिका जोगी की यशोदा टाले
हरी आलिंगन रस भोले ना पावे

जो गंग उतरे तेरे चरणों से
नित जटा में मेरे वास करे
हे मोहन उन पद पंकज रज से
वंचित क्यू तेरा दास रहे

जो भोले के सुंदर भाव सुने
नारायण हीय भर आए
तुरत माया को संकेत दिए
लाला मंद मंद मुसकाए

प्रभु ठहरे हम भगत तुम्हारे
नित तेरे चरणों को ध्याए
मिला सुअवसर खाली ना जाए
बिन चरणारज सेवा को दास ना आए

कौन प्रभु कौन सेवक ना जाने
दोनों दूजे को बड़ माने
लगी माया दोनों को शीश नवाने
मायापति की आज्ञा चली निभाने

चरणधाम चली बुढीया लडखाए
जोगी की पदरज किर्ती सुनाए
देव ऋषि जिसे माथ सजाए
वो रज नीर्मल सब दोष मिटाए

ले रज कुंदन शिव चरण से
नंदलाला के ललाट सजाए
भाग्यविधाता के ऐसे भाग जगे
प्रफुल्लित कंज सम  कान्हा हर्षाए

अब क्षण भर मुकुन्द से रहा ना जाए
तुरत माय को निमित्त बनाए
लाला को बुढ़िया गोद उठाए
शिव शंकर गोद पठाए

आनंदविभोर जो आनंद हुए
चित वैरागी चितचोर पे हारे
चूम चूम पग माथे लगाए
जोगी ऐसे प्रेम लुटाए

मगन हुए नटराजन झूमे
जग सारा उत्सव मनाए
ब्रम्हा,इंद्र सब ढोल पर नाचें
स्वंय सरस्वती,नारद गायें

नंदलाल को मइया के गोद थमाए
जोगी आशीर्वचन सुनाए
कर नमन हरी से विदा लिए
कैलाशी निज धाम को जाए

अकिंचन आँचल तेरी भगत जो ठहरे
भक्ति बस कीर्ति गाए
हरी हर तेरी लीला अद्भुत ये
वर्णन कौन कर पाए

अहोभाग्य प्रभु शब्द बन आए
स्वंय ये रचना रचाए
ऋणी बनी तेरे पद पंकज पूजे
ये दासी जयकार लगाए

बम भोले,जय कृष्ण हरे
रटत ये जीवन जाए
बम भोले,जय कृष्ण हरे
रटत ये जीवन जाए

-आँचल

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