घबराए से नारद जी
जो पहुँचे राम दरबार
भरत,लक्ष्मण,शत्रुघ्न संग
मारुति करें सत्कार
अभिवादन करते राम जी
पूछें क्या हैं हाल
शिकन माथे पर लाए हो
क्या है आज समाचार
सकपकाए से मुनिवर बोले
बहुत बुरा प्रभु हाल
धर्म कर्म के नाम
आया कैसा ये भूचाल
सत्ता के अधिकारियों ने
नाप लिया मैदान
साधु संतों में फूट पड़ी
भिड़ने को सब तैयार
हे राम तेरे नाम पर
कैसा ये घमासान
कोई मंदिर के नाम बवाल करे
कोई लेता राम अवतार
पक्ष -विपक्ष में अधर्म खड़े
बने बगुला भगत महान
राजनीति के खेल में
'राम' नाम ब्रह्मास्त्र
प्रभु आप स्वयं बताइए
किसके खड़े हैं साथ
चकित राम दरबार हुआ
देख राघव की मुस्कान
तभी पवनसुत आगे बढ़े
और पूछे हास का राज़
विनम्र भाव श्री राम कहें
मैं तो धर्म का नाथ
जहाँ पक्ष-विपक्ष अधर्म खड़ा
वहाँ मेरा क्या काम
जहाँ राग हो प्रेम का
वहीं राम निवास
जहाँ परचम विवादों का
वहाँ राम निकास
धरम-परम के नाम
बने संसद दो या लाख
राजनीति की नीव पर
सबका मक़सद स्वार्थ
बिन स्वार्थ राम का नाम जपे
वो हृदय राम का द्वार
हर मर्यादा का जो मान करे
वही राम अवतार
सब नेता खेल दिखाने लगे
खुद की चतुराई पर नाज़ इतना
जनता को उल्लू बनाने लगे
कभी साइकिल पर हाथी सवार
कभी बहन भाई की अगुआई करे
कभी कमल रहा कीचड़ उछाल
जाने क्या क्या स्वाँग रचे
मंदिर - मस्जिद, राफेल,आरक्षण
सब मुद्दे ऐसे उठा रहे
हितैषी बने जनता के जो
जनता को ही ठगने लगे
झूठे वादे परोसकर
झोली वोट से भरने चले
पर भूल गये की जनता भी
शातिरों की सरताज है
खेल तुम्हारे खूब समझती
बैठी अभी चुपचाप है
आने को है वक़्त उसका
जब देगी तुम्हें जवाब वो
तब डमरू नही बजेगा डंका
क्योंकि गणतंत्र का यहाँ राज है
ए रात तुझे मैं क्या लिखूँ
अंत लिखूँ या आग़ाज़
आज लिखूँ या कल लिखूँ
या लिखूँ दोनों का परवान
तुझे द्योतक अंधकार का लिखूँ
या लिखूँ नवल प्रभात का दूत
तुझे जोगन का जाप लिखूँ
या लिखूँ प्रेम गीत विभूत
करें रतजगा उनका तुझे मीत लिखूँ
या लिखूँ अवसादों का विश्राम
सोम को तेरा सरताज लिखूँ
या लिखूँ तारों को तेरा शृंगार
तम को तेरा गर्व लिखूँ
या लिखूँ दिवा का तुझसे अभिमान
शुभ लिखूँ या अशुभ
या लिखूँ दोनों की तुझे पहचान
कवि मन सदा मेरा सोचता
ए रात तुझे मैं क्या लिखूँ
अंत लिखूँ या आग़ाज़
या लिखूँ तुझे बस "रात"