बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Thursday, 1 December 2022

सावधान!

मशालें बुझने लगी हैं,
अँधेरे की ताक़त बढ़ने लगी है,
और कर्तव्य-पथ से भटके हुए 
ढ़ीठ,आलसी,लापरवाह लोग सो रहे हैं।
सावधान!
जनता के महल को लूटा जाने वाला है।
सभ्य डाकुओं की टुकड़ी 
आगे बढ़ रही है,
जनता सो रही है और जगाने वालों का मुँह सिल दिया गया है।

#आँचल 

10 comments:

  1. बेहद उम्दा पंक्तियां हैं। बहुत ही उम्दा कटाक्ष किया है आपने लोकतंत्र के परिपेक्ष में।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना बुधवार १४ दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  3. बहुत ख़ूब आंचल ! लेकिन लूट-मार की सभ्यता का प्रसार करने के लिए सतत प्रतिबद्ध सभ्य डाकुओं की पावन गतिविधियों का तो आँख मूँद कर स्वागत किया जाना चाहिए और हम यह पिछले सैकड़ों साल से करते भी आ रहे हैं.

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  4. वाह! प्रिय आंचल ,बहुत खूब 👍

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  5. बहुत सुंदर और सटीक सृजन

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  6. आज के समय का यथार्थ चित्रण करती हुई उत्तम रचना।

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  7. लोकतंत्र का कटु यतार्थ प्रस्तुत किया है आपने, आँचल दी।

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  8. जनता को तो न जाने कब से अफीम खिला कर नाकारा कर दिया गया है । जागना स्वयं ही होगा ।

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  9. इस तरह की विसंगतियों को एक प्रखर कवि दृष्टि ही देख सकती है।सार्थक रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं प्रिय आँचल ♥️

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