फूलों से पूछा,कलियों से पूछा,
धरती,गगन और त्रिभुवन से पूछा,
जब पूछा तो सारे जग से ही पूछा
किंतु किसी को कोई हल ही न सूझा!
तब जाकर सीधे परब्रह्म से पूछा -
"क्या है कोई जग में आप से ऊँचा?"
प्रभु सुनकर फिर हँसकर बोले, सुनो!
है ज्ञात जो जग को वह रहस्य सुनो!
मुझसे भी ऊँचा है जग में कोई दूजा
चरणों में जिनके मैं भी हूँ झुकता,
मुझसे भी पहले जो सुनते तुम्हारी,
मुझसे भी पहले जो गुनते तुम्हारी,
उनसे ही तुमने इस जग को है जाना,
उनसे ही तुमने मुझको भी पहचाना,
जब सोचोगी,समझोगी तभी यह पहेली,
बूझोगी तब तुम इसको अकेली।
यूँ कहकर प्रभु फिर मौन हुए,
परब्रह्म के बोल पर मन में रहे,
खूब,सोचा-विचारा पर हल जब न पाया
तब माया ने भ्रम का जाल हटाया
और ज्ञात-रहस्य से पर्दा उठाया,
फिर देखा जो!देखा बड़े अचरज से मैंने,
परब्रह्म से ऊँचा पद जिनका था पाया
उन मात-पिता को फिर शीश नवाया।
#आँचल