Wednesday, 19 October 2022
मौन का ढोंग!
नमस्कार मैं 'आवाज़',
करती हूँ उन मौन आवाज़ों का सम्मान,
जो देश अथवा समाज में घटित घटनाओं पर साध कर मौन
करते हैं मात्र कल्पित जगत का ध्यान।
क्या तीज-त्योहार,व्रत-उपवास तक ही सीमित है उनका सामाजिक ज्ञान?
अरे नहीं!इन्हें तो ज्ञात है सारा गणित-विज्ञान,
फिर मौन रहकर क्यों बनते हैं विषयों से अंजान?
शायद दिखावे में नहीं करते हैं विश्वास।
तभी तो बड़ी-बड़ी गोष्ठियों में जो शिरकत करते हैं,
दो-दो,तीन-तीन महीनों में अपनी किताबें छपवाते हैं,
राजा साहब की नीतियों से लेकर जूतियों तक का
मजबूरन गुणगान कर
किसी तरह दो जून की रोटी के जुगाड़ में
मोटी-मोटी गड्डियों से अपनी जेबें भरते हैं,
मंचों तथा ब्लॉग मंचों पर इतिहास के पृष्ठों को बदलते हैं,
धर्म के रक्षक बनते हैं,
वो ज्ञानवान,शूरवान साहित्यिक सिपाही
भाषा,साहित्य तथा समाज
के उचित उत्थान में
अपना उचित योगदान देने की
हार्दिक इच्छा रखते हुए भी
बलात्कारियों के सम्मान पर
मौन रह जाते हैं,
ज़ात-धर्म के नाम पर
बढ़ रही नफ़रत पर
मौन रह जाते हैं,
बढ़ती महँगाई पर
मौन को और बढ़ाते हैं,
निर्दोषों को मिल रहे दंड पर तो
बोलते-बोलते रह जाते हैं,
कुपोषित बच्चों तथा शोषित जनता
की आह! से लेकर हाहाकार तक
इन्हें विचलित करती है
पर क्या करें बेचारे!
मजबूर हैं
बनने को अंधे,गूँगे और बहरे।
#आँचल
Thursday, 13 October 2022
माई तेरी काजल-सी ढिबरी को राखुँ
ओ माई तेरी काजल-सी ढिबरी को राखुँ,
जाग-जाग रतियाँ में सुबह सजाऊँ ।
ओ माई तेरी.....
ओ मैली ये चदरिया! कैसे छुड़ाऊँ?
छींट पड़े नफ़रत के कैसे मिटाऊँ?
हाय रामा! हारी,हारी,मैं हारी,
धो-धो चदरिया दागी मोरी साड़ी।
माई दागी साड़ी को कैसे छुपाऊँ?
जाग-जाग रतियाँ में .....
ओ लाँघी जो देहरी तो घर कैसे जाऊँ?
अटक-अटक भटकी,डग कैसे पाऊँ?
हाय रामा! हारी,हारी,मैं हारी,
ढो-ढो धरम,करम गठरी से हारी।
माई करम गठरी अब कैसे उठाऊँ?
जाग-जाग रतियाँ में .....
ओ फूटी रे हाँडी,कैसे-क्या पकाऊँ?
भीगी रे लकड़ियाँ,ताप कैसे पाऊँ?
हाय रामा! हारी,हारी मैं,हारी,
जेब पड़ी ठंडी,आग पेट में लागी।
माई ऐसी सर्दी में जी कैसे पाऊँ?
जाग-जाग रतियाँ में.....
ओ माई तेरी काजल-सी ढिबरी को राखुँ,
जाग-जाग रतियाँ में सुबह सजाऊँ।
ओ माई तेरी.....
#आँचल
Friday, 7 October 2022
मड़ई के राम
"हे राम! हे राम! राम! राम! हे राम!"
अपनी मड़ई के बाहर डेहरी पर किवाड़ से सर टिकाए अचेत-सी बैठी ननकी फुआ जाने कौन से राम को रह-रह कर पुकार रही थी।
"फुआ!ओ फुआ!भीतर चल।सवेरे से यहीं बैठी प्राण सुखा रही है।"
पड़ोस की सुखिया की बहु ननकी को झकझोरते हुए पुनः सचेत अवस्था में लाने का प्रयास करने लगी।
"सुखिया की बहु राम लौटा?"
"नहीं फुआ,लौट आएंगे।"
"नहीं,नहीं लौटेगा राम।वो राक्षस... प्रधान का बेटा... वो कल मेरी बेटी को खा गया,आज मेरे बेटे को भी खा जाएगा।"
"नहीं फुआ,कुछ नहीं होगा,तुम उलटा क्यों सोचती हो? ये गए हैं न ढूँढ़ने,अभी देखना तुम्हारे बेटे के साथ ही लौटेंगे।"
सुखिया की बहु ननकी फुआ को समझाने का प्रयास करती है पर गाँव के बाहर हो रही रामलीला से आती आवाज़ें(रावण का अट्टहास और जय श्री राम का जयघोष)उसे फिर भयभीत कर देती हैं।
"कल भी ऐसे ही 'जय श्री राम' के नारे लग रहे थे।इसी आवाज़ के पीछे नौहरा(फुआ की बेटी )की चीखें दब गई,कोई नहीं आया सुखिया की बहु,कोई नहीं आया।
वो राक्षस... वो रावण.. वो प्रधान का बेटा उसे मेले में से उठा ले गया और किसी ने नहीं सुना?"
"हम छोटे लोगों की चीखें कौन सुनता है फुआ?"
"क्या दोष था उसका सुखिया की बहु? वो रावण जो रामलीला में राम बनने का ढोंग कर रहा है,उस ढोंगी की सीता न बनी बस यही पाप हो गया उससे सुखिया की बहु।बस इसी पाप ने उसके प्राण ले लिए।"
"राम जी न्याय करेंगे फुआ। तुम भीतर चलो।"
"कोई न्याय नहीं करेंगे राम जी।"सुखिया कुछ भरे गले के साथ,कुछ क्रोध में बोलते हुए आता है।
"फुआ तुम्हारे राम जी कोई न्याय नहीं करेंगे।हम गरीबों के भाग्य में ये रावण ही लिखें हैं।"
ननकी घबराते हुए सुखिया से पूछने लगी -
"सुखिया मेरा राम कहाँ है रे?"
"फुआ प्रधान के घर के बाहर जब रामदास थाना-कचहरी की धमकी देने लगा तो प्रधान के आदमियों ने उसे बहुत पीटा।रामदास चिल्लाता रहा और उसकी आवाज़ 'जय श्री राम' की गूँज में दबा दी गई।"
ननकी बेसुध खड़ी सुन रही थी। सुखिया की बहु ने पूछा-
"तो अब कहाँ हैं? तुम्हारे साथ नहीं आए?"
"नहीं,प्रधान के आदमियों ने उसे रावण के पीछे बाँध दिया है। प्रधान ने कह दिया है कि कोई पूछे तो धर्मद्रोही बता देना। प्रधान का बेटा जब रावण दहन करेगा तब रामदास भी..."
उधर गाँव के बाहर हो रही रामलीला की आवाज़ें ननकी के कान में पड़ने लगी। रावण के "हे राम!"कहकर गिरते ही वहाँ इकट्ठा पूरा गाँव एक स्वर में 'जय श्री राम' का जयघोष करने लगा।ननकी अपने आँसू पोंछ रामलीला मैदान की ओर दौड़ने लगी। प्रधान का बेटा रावण के पुतले पर धनुष साधे खड़ा था।ननकी की दृष्टि मंच पर रखे रावण के मुकुट पर पड़ी।जैसे ही प्रधान के बेटे ने बाण छोड़ा ननकी ने प्रधान के बेटे को रावण का मुकुट पहना दिया।उधर रावण के पुतले के साथ रामदास भी जलने लगा और इधर पूरा गाँव इस जीवित रावण को देखने लगा। प्रधान के बेटे ने तमतमाते हुए पूछा-
"यह क्या किया तुमने?"
ननकी ने पागलों की तरह ठहाके लगाते हुए कहा -
"देखो गाँव वालों,कलयुग में 'राम दहन' होता है 'रावण दहन' नहीं।"
#आँचल
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