शब्द सम कोई रिपु ना दूजा
शब्द सम ना मीत
तू चाहे तो तेरा दास बने
तू चाहे तो तेरा ईश
भाव है इसकी संगिनी
बिन भाव ना इसकी रीत
जैसे इसके भाव हो
वैसे इसकी नीत
तोल मोल कर जो बोले
हो उसकी जय जयकार
बिन तोले जो बोले
उसके बिगड़े सारे काज
दुर्भावों में जिसके शब्द रमे
ना पाता वो सत्कार
जिसके शब्द शब्द में प्रेम घुले
वो करता जग पर राज
पर शब्द भाव के फेर में
तब होता महाकल्याण
जब हर शब्द 'हरी' नाम हो
संग भाव भक्ति का अपरम्पार
और स्वंय जगदीश अकुला उठे
मिलने को तुझसे एक बार
तेरी शब्द शक्ति पर बैकुंठ तजे
और आ पहुँचें तेरे द्वार
#आँचल