बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Saturday, 3 February 2018

इंद्रधनुष काया

इंद्रधनुष-सी है तेरी काया
जहाँ सतरंगी चक्र समाया,
तू कर जाग्रत इन चक्रों को
फिर क्या तेरे आगे माया? 
चक्र लाल है ' मूलाधार '
क्षणभंगुर तन का ये आधार ,
कुंडलिनी यहाँ है विराजमान
अरोग्य,रचनात्मकता का है यहीं संचार।
दूजा नारंग में ' स्वाधीष्ठान '
भक्ति-प्रभुत्व का यहाँ बढ़ता मान।
अब आगे है ' मनिपुर ' का पीला
मानस-बल संग है यहाँ जीवन लीला।
हरा रंग ' अनाहत ' का है
दिव्य ज्ञान की चाहत का है ।
पंचम नील चक्र ' विशुद्ध ' है
ज़रा- मृत्यु के पाश से मुक्त है।
सुनो ओमकार का दिव्य नाद
अब जामुनी ' आज्ञा ' पर हुआ ध्यान ,
ये त्रिवेणी तीर्थ है त्रिदेव स्थान
जहाँ आत्म दर्शन का होता है ज्ञान।
संसार से परे है बैंगनी ' सहस्रार '
जहाँ परम शक्ति का मिलता है सार ,
अब नष्ट हुआ अज्ञानी अंधकार
और परब्रम्ह से हुआ है साक्षात्कार।
जब जाग्रत हुए सत रंग तुम्हारे
सौ सूर्य ऊर्जा तब तुझमें विराजे
इंद्रधनुषी आनंद तन पाए
आकर्षण से तेरे जग-मन हर्षाए
                                #आँचल