तुमसे ये किसने कहा
कि मैंने लिखना छोड़ दिया?
प्रयास करने का ढिंढोरा पीट कर प्रयास करना छोड़ दिया!
अरे! ये अफ़वाह किसने उड़ाई
कि मैंने लिखना छोड़ दिया?
अब ये जज़्बात यूँ ही कहीं आवारो
कि भाँति फिरा थोड़ी किया करते हैं,
ये तो समय के साथी हैं
बदलते स्वरूप के साथ
आया-जाया करते हैं।
.... और मैं भी कोई अमीनाबाद की
तंग दुकानो पर गर्मी और भीड़ से झुंझलाई दुकानदार तो नही
जो कुछ भी लिखूँ और बेच डालूँ।
अब मेरा नही तो क्या?
मेरी लेखनी का कुछ तो स्वाभिमान है,
इसकी स्याही में दौड़ता ईमान है।
झूठ है कि इससे लिखा नही जाता
और सच दुनिया से सुना नही जाता।
बस इसी के मद्देनज़र,
मौका-ए-दस्तूर के इंतज़ार में
कुछ वक्त के लिए लेखनी को रोका है,
लिखना नही छोड़ा है,
लिखना नही छोड़ा है।
#आँचल
बहुत सुंदर!!!
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
Deleteवाह
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (8-5-22) को "पोषित करती मां संस्कार"(चर्चा अंक-4423) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
सुंदर! स्वाभिमान और ईमानदारी कि थाति संभाल के रखिये।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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