बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Friday 26 January 2018

ये कैसा गणतंत्र है

ये कैसा गणतंत्र है

ये कैसा गणतंत्र है
जहाँ बस कपटों का तंत्र है

जिस देश की भूमि तिलक लगाती
चंदन सम लहू बलिदानों की
उसी देश में छीन जाती थाली
माटी के वीर किसानों की

जहाँ पूजी जाती है नारी
नदियों और पाषाणों में
वही तौल दी जाती है वो
 रसमो के बाज़ारों में

जिस देश का आज पहुँच गया
दुनिया के सभी ठिकानों पर
उस देश का कल भटक रहा
दो रोटी को चौराहों पर

ये कैसा गणतंत्र है
जहाँ बस कपटों का तंत्र है

माना भारत है देश महान
पर कमियों से ना रहो अंजान
जो बसती हो अगर भारत में जान
तो दे दो भारत को नयी पहचान

वरना फ़िर सवाल उठ जायेंगे
जो मन को ठेस पहुँचायेंगे
की.....

ये कैसा गणतंत्र है
जहाँ बस कपटों का तंत्र है

                            #आँचल 

5 comments:

  1. Bahot accha likha h aur sahi bho

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  2. कटुसत्य साफ दिखता है पर देखना कोई नही चाहता आज पूर्ण शब्दों से प्रहार करती सटीक रचना।
    यद्यपि दीन दुखी गारत है पर भारत के सम भारत है...
    क्योंकि वो हमारा देश है हमारी जिम्मेदारी है। हम सब की प्रतिबद्धता है।
    नमन अतिसुन्दर रचना।

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    1. जी बिल्कुल सही कह रही है आप ये देश हमारा है इसलिए ज़िम्मेदारी भी हमारी है
      माना भारत की महानता के आगे कोई नही खड़ा हो सकता पर फ़िर भी अभी बहुत सी कमिया है भारत में जिसे सुधारना हमारा कर्तव्य है ताकी किसी और को मौका ना मिले हमारे देश की कमी निकालने का

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    2. अपनी प्रतिक्रिया के द्वारा हमारे भावों को सराहने के लिए हम आभारी है आपके
      धन्यवाद शुभ संध्या 🙏🙏😊

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