बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Sunday, 29 May 2022

दोष न डारो राजा पर

नाचे-गावे सब नर-नारी,
ढोल-मंजीरा बजावे भारी,
प्रभु किरपा  से 
घटत-बढ़त सब 
तब राजा को 
जनता क्यों देवे गारी?
हरि इच्छा होइहे 
त जनता होई जइहे सहज भिखारी।
दोष न डारो राजा पर,
राजा त भैया प्रजा  हितकारी।
राजा से बनत देवघर,
भले तोड़े राजा कितने ही घर!
है राजा तो जनता है निडर,
गली-गली आतंक, राजा बेख़बर!
राजा से राज्य में हो बसंत 
सब रावण राज्य में हुए संत!
राजा पर दोष का करो अंत 
देखो सुंदर महके मकरंद,
कष्ट! कहाँ?
प्रजा में आनंद अनंत।
#आँचल

6 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 30 मई 2022 को 'देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के' चर्चा अंक 4446 पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    ReplyDelete
  2. अंधेर नगरी, चौपट्ट राजा !

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर और सटीक सृजन

    ReplyDelete
  4. कैसा दोष?कैसी गारी?
    जब परजा चुने है,बराम बारी !!

    ReplyDelete