खीर न पूरी न माखन मिसरी
कछु स्वाद न मन को भावे री,
' हरि ' नाम अति मीठो लागे
छक लूँ पर मन न माने री।
सखी री कौन उपाय करूँ?
कौन सो बैद्य बुलाऊँ री?
व्याकुल मन की पीड़ा को जो
दे पुड़िया निपटावे री।
रह- रह नयन बरसात करे,
सावन देख लजावे री,
डूबी! डूबी! विरह-बाढ में
हरि बिन कौन बचावे री?
कोई कहे पागल,कोई कहे ढोंगी
जग में भई हँसाई री,
भगत परीक्षा देत न हारी
हरि के लगी थकाई री।
मेहंदी,काजर,माथे की टिकुरी
कछु न मोहे सुहावे री,
बृज की रज से शृंगार करूँ
रज ही रज में रम जाऊँ री।
न जागूँ,सोऊँ,गाऊँ,रोऊँ
बस नाम 'हरि' दोहराऊँ री,
अंत समय पिय याद करें तो
पिय के लोक को जाऊँ री।
#आँचल
अति सुन्दर ! भक्ति-भाव से परिपूर्ण रचना.
ReplyDeleteअत्यंत मनमोहक रचना है दीदी ⛳
ReplyDeleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteबहुत सुंदर!!!
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर
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