तप रहा है देश मेरा
सूर्य के क्या ताप से?
या जल रहा है यह प्रचंड
नफ़रतों के आग से?
हैं कौन सी ये आँधियाँ?
है काम इनका क्या यहाँ?
क्या यह प्रजा का रोष है?
या स्वाँग कोई रच रहा?
कैसा उजाला है यहाँ?
कोई छलावा है यहाँ!
इस रोशनी के गर्भ में
षड्यंत्र कोई पल रहा।
क्या सो रहे हैं देश के
बुद्धिजीवी लोग सब?
या जागता है वीर कोई
ज्ञान-चक्षु खोलकर?
है धन्य-धन्य भारती की
बंद क्यों अब आरती?
क्यों किसी कोनें में बैठी
माँ मेरी चीत्कारती?
हे देश के तुम क्रांतिवीरों
मौन अब साधो नही,
साधु का तुम वेश धर के
शस्त्र अब त्यागो नही।
जान लो शकुनि के पासे
चाल कैसी चल रहे,
कौन से उस लाक्षागृह में
पांडव फिर से जल रहे,
जागो नगर के लोग सब
यह खेल तुम भी देख लो,
लाज को फिर द्रौपदी की
तार -तार होने न दो।
है कौन सी वह ' सोच '
तुम दास जिसके बन गए?
शोषण में क्या आनंद
जो संघर्ष करना भूलते?
ए वतन के सरफरोश
देखो झुलसता देश तेरा,
सौहाद्र-प्रेम-आदर्श संग
भस्म होता देश मेरा,
कोई यहाँ पर लड़ रहा,
कोई वहाँ पर डर रहा,
कोई यहाँ पर बँट रहा,
कोई वहाँ पर कट रहा,
त्राहिमाम-त्राहिमाम
यह देश मेरा कर रहा,
ए भारती के लाड़लों
क्या कोई माँ की सुन रहा?
#आँचल
Bhut sundar kavita didi
ReplyDeleteवाह जबरदस्त रचना 👌👌
ReplyDeleteसोते शेरों को आह्वान करता ओजमय सृजन।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव ,आज की जरूरत है।
अप्रतिम सृजन,प्रिय आँचल।
लाजवाब ......
ReplyDeleteजल रहा है
देश मेरा
षड्यंत्रों की
चाल से ,
ग़फ़लत में हैं
आज भी हम
सहिष्णुता की
भांग से ।
बुद्धिजीवी लोग कौन होने वाले हुए वैसे कहां पाए जाते है कोई दिखे तो बताएगा , लाज़वाब सृजन
ReplyDeleteहै धन्य-धन्य भारती की
ReplyDeleteबंद क्यों अब आरती?
क्यों किसी कोनें में बैठी
माँ मेरी चीत्कारती?
हे देश के तुम क्रांतिवीरों
मौन अब साधो नही,
साधु का तुम वेश धर के
शस्त्र अब त्यागो नही।
वाह!!!
बहुत ही प्रेरक...
उत्कृष्ट सृजन।
प्रिय आँचल, देश की वर्तमान परिस्थिति से हर संवेदनशील मन दुःखी है। मानो एक बारूद का ढेर इकट्ठा हो रहा है, ना जाने कब फट जाएगा और देश की एकता अखंडता के चिथड़े उड़ जाएँगे।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना... बहुत बहुत साधुवाद 🙏
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteअत्यंत मार्मिक और सार्थक रचना।
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