होम,हवन,यज्ञ,पूजा, ये सब दरसल एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें प्रयोग आने वाली सामग्री वातावरण को स्वच्छ करती हैं,कीटाणु से लड़ती है पर इसका आध्यात्म या किसी विशेष प्रकार की शक्ति से कोई संबंध नही जो हमारी या किसी वस्तु की रक्षा कर सके।
अब ज़रा विचार कीजिए नींबू की खटास,मिर्ची का तीखापन या उसके अन्य गुण भला घर या गाड़ी की क्या रक्षा करने वाले हैं?
अफ़सोस...जो देश उस गीता के आगे नतमस्तक है जिसमें अर्जुन ने साक्षात भगवान से तर्क किया और जब तक तर्क मन में बैठ नही गया तब तक उन्होंने भगवान की बात को भी स्वीकार ना किया उसी देश में लोग तर्क हीन होकर किसी भी बात पर विश्वास कर लेते हैं और अंधविश्वास के अँधेरे में भटक जाते हैं। फिर शुरूआत नींबू मिर्चें से होती है और तांत्रिक,ओझा तक जाती है फ़िर उन बाबाओं तक जो जेल में बैठे हैं,नवरात्र में सुई चुभो कर स्वयं को पीड़ा देकर माँ से मन्नत माँगना,तालाब में लोटना,झाड़ फूँक,भूत प्रेत उफ्फ......सोच कर डर लगता है। यदि इतना विश्वास भगवान पर किया होता तो शायद प्रकट हो गए होते पर हम तो उन्हें भी रिश्वत दे आते हैं। एक लोटा नही टंकी भर भरकर दूध चढ़ाते हैं, फल,फूल, सोना, चांदी और ना जाने क्या क्या पर यही फल,दूध किसी गरीब को देने में हिचक जाते हैं। अभी परसो ही शरद पूर्णिमा थी पर पता नही खीर खाकर कितने लोग अमर हो गए? नहीं.... हम यहाँ परंपरा और संस्कृति का विरोध नही कर रहे किंतु ये जानने का प्रयास कर रहे कि ये परंपरा और संस्कृति तर्क संगत क्यू नहीं हो सकती? क्यू हम किसी बात को बिना परखे सहजता से स्वीकार ले? क्यू विवेक का इस्तेमाल ना करें? क्यू अंधविश्वास के अँधेरे की ओर बढ़े?
इन प्रश्नों के बीच एक प्रश्न और उठ रहा है कि अचानक इसका विरोध क्यू? हमारे आदरणीय रक्षा मंत्री जी ने शस्त्र पूजा के तर्ज पर जो किया उसपर विवाद क्यू?
अब ये दोहराने की आवश्यकता नही कि अंधश्रद्धा में अंधेरा निहित है और सत्ताधिकारी का धर्म राष्ट्र को उन्नति के प्रकाश की ओर ले जाना है और फिर इनके प्रत्येक आचरण का पूर्ण प्रभाव राष्ट्र पर भी पड़ता है इस हेतु प्रश्न उठना स्वाभाविक है। अब यदि राफेल की रक्षा ही चिंता थी तो हाथ जोड़ मन ही मन ईश्वर को नमन करना पर्याप्त था क्युन्की प्रारब्ध से अधिक तो कुछ मिल नही सकता। पर यदि इतनी समझ बाकी होती हमारे देश में तो हम आज भी विश्वगुरु ना होते। आज तो बस यही आलम है कि बच्चे को छींक आयी तो नज़र लग गयी,गाय दूध देना बंद करे तो जादू टोना और घर में अशांति तो भूत प्रेत। अब तो लगता है कि वाइरस से बचने के लिए भी मोबाइल में नींबू मिर्चें का एंटीवाइरस डाउनलोड करना होगा।
खैर.... अंधविश्वास की जड़े बहुत मजबूत है निरंतर प्रयास ही इस पर प्रहार कर सकता है। अब तो यही कामना है कि विश्वास का दीपक शीघ्र सूर्य बन उदित हो।
सादर नमन 🙏
सुप्रभात
#आँचल
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 15 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद! ,
मेरे इस लेख को इस योग्य समझने हेतु हार्दिक आभार आदरणीया दीदी जी।
ReplyDeleteसादर नमन
काबिलियत पर विश्वास की कमी और मोत का डर ही अंधविश्वास की जड़ है
ReplyDeleteबेहद विचारणीय लेख है आपका 🙏
उचित कहा आपने आदरणीय
Deleteहार्दिक आभार आपका
सादर नमन 🙏
विचारणीय लेख ,आपने सही कहा आँचल जी ,अन्धविश्वास की जड़े बहुत गहरी हैं ,जितना विश्वास इन आडबरों पर करते हैं उतना विश्वास खुद पे करे तो कुछ भी असंभव नहीं रहेगा ,ये जड़ें हमने ही लगाई हैं और हमे ही इससे काटना भी पड़ेगा ," हम सुधरेंगे ,जग सुधरेगा ",अतः हम खुद को सुधारने का प्रयास तो कर ही सकते हैं,सराहनीये लेख ,सादर नमन
ReplyDeleteउचित कहा आपने आदरणीया मैम
Deleteउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आपका
सादर नमन 🙏
सार्थक रचना आंचल बधाई, संवेदनशील विषयों पर आपकी कलम खूब चलती है ।
ReplyDeleteसदा यथार्थ पर दृष्टि रख कर सुंदर सृजन करते रहो ।
नेह आशीष युक्त सुंदर वचनों से उत्साह बढ़ाने हेतु हार्दिक आभार आदरणीया दीदी जी
Deleteसादर नमन 🙏