सफ़र-ए-ज़िंदगी
तू क्या-क्या सिखाती है
कभी हँसना कभी रोना
कभी रोते रोते हँसना सिखाती है
उड़ जाऊँ ऊँचा और नापूँ इस नभ को
ऐसे ख्वाबों को सजाना सिखाती है
तू ही उड़ाती है तू ही गिराती है
गिरकर फिर उड़ना भी तू ही सिखाती है
सफ़र-ए-ज़िंदगी
तू क्या-क्या सिखाती है
कुछ खोकर कुछ पाना
मुरझाकर खिल जाना सिखाती है
कभी टूटना,बिखरना
बिखर कर खो जाना सिखाती है
खोकर भी चमकना
और सबको चमकाना सिखाती है
सफ़र -ए-ज़िंदगी
तू क्या-क्या सिखाती है
कभी चलना कभी रुकना
पर हार कर ना झुकना सिखाती है
जीना कभी मरना
कभी मर कर भी अपनो के लिए जीना सिखाती है
पथरीले राहों पर डगमगाना
और सँभलना सिखाती है
संग काँटों के भी
गुलाब सा महकना सिखाती है
सफ़र-ए-ज़िंदगी
तू क्या-क्या सिखाती है
शायद इसीलिए तू संघर्ष कहलाती है
और इन्हीं संघर्षों में
लाखों खुशियाँ दे जाती है
सफ़र-ए-ज़िंदगी
तू क्या-क्या सिखाती है
#आँचल
ज़िन्दगी के संघर्ष को विस्तृत विवरण के साथ पेश करती सुन्दर अभिव्यक्ति। ज़िन्दगी के सफ़र में अनेक उतार-चढ़ाव आते रहते हैं जो तालमेल बैठाकर जीने का अंदाज़ आत्मसात कर लेता है उसे ज़िन्दगी सबरंग अनुभव के साथ ख़ूबसूरत लगती है।
ReplyDeleteआँचल जी रचना तो बेहतरीन है लेकिन आपको एक सलाह देना चाहता हूँ कि शब्दों की पुनरावृत्ति और रचना की अनावश्यक लंबाई से बचा जा सकता है। न्यूनतम शब्दों में अधिकतम भावात्मक घनत्व रचना का वज़्न और भाषा-सौंदर्य बढ़ाता है।
बहरहाल यह सलाह आपके रचनाकर्म में अधिक निखार के लिये है न कि हतोत्साहित करने के लिये।
बधाई एवं शुभकामनाएँ। लिखते रहिए।
Ravindra Singh Yadav आदरणीय सर कविता का सार प्रस्तुत करती आपकी सुंदर प्रतिक्रिया ने मेरी पंक्तियों की शोभा बढ़ा दी इस हेतु आपका हार्दिक आभार।
Deleteआदरणीय सर आपकी सलाह बहुमूल्य है। हमने अपनी पंक्तियों पर पुनः नज़र दौड़ाई
आपने उचित ही कहा हम अगर थोड़ा और ध्यान देते तो रचना और सुंदर लगती। आपकी सलाह को गाँठ बाँधती हूँ और भविष्य में कम शब्दों में भावों को प्रस्तुत करने का पूर्ण प्रयास करूँगी।
हतोत्साहित होने का तो प्रश्न ही नही उठता सर आपकी लाभकारी सीख पर अमल करते हुए फिर कुछ लिखने का उत्साह ही बढ़ा है सदा।
आप लोगों की संगत में रहकर आप सब से सीखते सीखते ही तो आज थोड़ा बहुत हम भी लिख लेते हैं।
आपकी सलाह के लिए हम आभारी हैं। भविष्य में फिर मेरे योग्य कोई सलाह या सीख हो तो हमे अवश्य दीजिएगा।
बहुत बहुत धन्यवाद सादर नमन शुभ संध्या
जी लो जी भर माना ख़तरे की डगर है ज़िंदगी।
ReplyDeleteये क़िस्सा ए ज़िंदगी है
कभी लाख तो कभी ख़ाक
बस ऐसे ही लहरों का उतार चढ़ाव है ज़िंदगी।
बहुत सुंदर फलसफा बयां किया है जिंदगी का आपने प्रिय आंचल हर नज़र से देखा और परखा हो जैसे ।
बहुत बहुत सुंदर।
वाह आदरणीया दीदी जी क्या खूब पढ़ी आपने ज़िंदगी पर ये पंक्तियाँ,रचना में निहित भावों को विस्तार देती हुई,बहुत सुंदर
Deleteऔर आपकी सुंदर शब्द आशीष भरी प्रतिक्रिया ने मेरा खूब उत्साह बढ़ा दिया
हृदयतल से हार्दिक आभार आपका
सादर नमन
जिंदगी के सफर को दिखाती उत्तम रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीया
Deleteसादर नमन
हार्दिक आभार आदरणीय सर सादर नमन
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया मैम
ReplyDeleteसादर नमन सुप्रभात