बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Friday 11 May 2018

बदलती रिवायतों में इश्क के

बदलती रिवायतों में इश्क के
धड़कता है दिल बस चाहत में जिस्म के
अब गुलाबों से कहाँ होता है कोई इश्क इकरार
बस महँगे तोहफ़ों से होता है इश्क का इज़हार
इस भागती ज़िंदगी में अब कहाँ इश्क का नशा होता है
इसीलिए तो वैलेंटाइन डे जैसे बहानों का इंतजार इतना होता है
इश्क में वफाई तो जैसे कोई ख्वाब हुई
आज बेवफा सी इश्क की हर शाम हुई
बदली है सोच बदला है ज़माना
सरेआम नाचती ये इश्क आज बदनाम हुई
इसी बदनाम को पाने की कोशिशें तमाम हुई
बदलती रिवायतों में इश्क के सच्चे दिल की जान गयी
सच्चे इश्क की कहानीयाँ जाने कहाँ गुमनाम हुई

                                        #आँचल 

5 comments:

  1. वाह !!!मन को छू गई आप की रचना। लाजवाब !!!

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  2. वाह क्या बात सच्चा फलसफा बयां किया बहन आंचल बहुत उम्दा।

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  3. अति प्रभावशाली... वर्तमान प्रेम की वास्तविकता दर्शाती रचना..

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  4. बातों को यूं शब्‍द देना आपकी कलम ही कर सकती है ..आभार ।

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