बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Monday, 14 May 2018

जन्नत सी माँ की गोद

मुक़द्दर भी उसे ठुकराता है
जो माँ को अपनी सताता है
सारे ज़माने की खुशी वो पाता है
जो माँ के गमों को रुलाता है
बरकते ज़िंदगी में उसी को नसीब है
माँ की दुआएँ जिनके रहती करीब है
ये माँ की वजह से ज़िंदगी भी शरीफ़ है
वरना बिन माँ के तो रईसी भी गरीब है
उस खुदा ने भी की है खूबसूरत कारस्तानी
जो ममता को सौपी है जहाँ की बागवानी
ये अश्क नही,है ममता की निशानी
फिक्र में बहता है माँ की आँखों से पानी
यूँ ही नही,माँ तो तक़दीर से मिलती है
नसीबवालों को जन्नत सी माँ की गोद मिलती है
रे बंदे तेरे आगे तो वो खुदा भी बदनसीब है
जन्नत में रह कर भी ना उसे एसी जन्नत मिलती है
जन्नत में रह कर भी ना उसे एसी जन्नत मिलती है

                                             #आँचल

6 comments:

  1. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय
      सादर नमन 🙇

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  2. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय रश्मि जी शुभ संध्या 🙇

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  3. यादों से उमड़े शब्द और भाव ...बहुत कुछ याद दिला गए ... अच्छी प्रस्तुति

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