बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Friday 11 May 2018

मेरे आँगने की चिरैया

था इंतज़ार जिस राजकुमार का
धर कर वो वेष एक शिकारी आया
वो महकते गुलाबों का नशा
और इश्क में वफ़ा का देकर झाँसा
ख्वाबों का उसने जाल बिझाया
करके इज़हार झूठी मोहोब्बत का
मेरे आँगने की चिरैया को उसने फँसाया
और ठुकराकर सरेआम उसकी मोहोब्बत
करके शिकार आबरू का वो बेवफा भागा
मैं चीखती रही चिल्लाती रही
बचाने अपनी चिरैया को तमाम कोशिशें करती रही
वो तड़पती छटपटाती अचानक से सुन्न हो गयी
आँगने से मेरे उसकी चहक गुम हो गई
बददुआ है मेरी ना पाए सुकूँ कभी वो रूह
जो बिटिया को मेरी मुझसे छीन ले गया
मेरे आँगने की चहकती चिरैया की नापाक लूट ले गया
एक माँ की लाड़ली बिटिया को वो तड़पता क्यू छोड़ गया

                                          #आँचल 

6 comments:

  1. मर्मस्पर्शी रचना।

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    1. हार्दिक आभार दीदी जी
      शुभ दिवस

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  2. Replies
    1. धन्यवाद नीतू दीदी जी
      शुभ दिवस

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  3. हृदयस्पर्शी सृजन.....

    हार्दिक बधाइयाँ

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  4. शब्द ही कम पड़ गए तारीफ के लिए.. दिल को छू गई..

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