बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Saturday, 5 May 2018

इंतजार में शबरी मइया

इंतजार में शबरी मइया
उमरिया अपनी घटाए रही हैं
चख कर एक एक बेर को मइया
भक्ति का स्वाद बढ़ाए रही हैं
इंतजार में शबरी मइया उमरिया अपनी घटाए रही हैं
राह निहारत सिकुड़ी अँखीया
कब आयेंगे प्रभु बुढ़िया की कुटिया
चुनकर काँटे फूल सजाए
स्वागत में हरी के पथ को सजाए
बस रामा रामा के गुण गाए
भजत राम सब दिन को बिताए
चढ़ भक्ति की नइया को
मइया जीवन को पार लगाए
मान गुरु की  आज्ञा शबरी
प्रभु पद पंकज को ध्यान लगाए
देख के भीलनी की भक्ति
भगवन भी आगे शीश झुकाए
राम लखन भाई की जोड़ी
कदम बढ़ाए शबरी की ओरी
जागे भाग लो शबरी के
जो जूठन खाए हरी एक भीलनी के
है अनुपम लीला प्रभु भक्ति की
जो प्रभु भी गाते है गुण शबरी के
ऐसी ही भक्ति निज मन भी समाए
इंतजार में हरी के जीवन कट जाए
जैसे पार लगी शबरी
ऐसे ही अपनी भी पार लग जाए
परम भक्तों की सूची में मइया भी
अपना नाम लिखवाए रही हैं
इंतजार में शबरी मइया
उमरिया अपनी घटाए रही हैं
चख कर एक एक बेर को मइया
भक्ति का स्वाद बढ़ाए रही हैं
इंतजार में शबरी मइया उमरिया अपनी घटाए रही हैं
                                             #आँचल

2 comments:

  1. अथक भक्ति से सराबोर रचना, समर्पित भावों का पूनीत संगम ।
    बहुत सुंदर।

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  2. वाह !!!बहुत खूबसूरत रचना।

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