आत्म रंजन

बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Thursday, 17 October 2024

ओ शरद के चाँद

ओ शरद के चाँद 
तुमसे रौशन हैं आज 
उम्मीदों के वो मकान 
जो समय के साथ बढ़ते 
इस स्याह अँधेरे में 
गुम हो गए थे,
भूल गए थे कर्तव्य अपना 
और अपनी पहचान
कि उम्मीदों के दीप 
बार-बार जलाते रहना ही 
है उनका काम।
#आँचल 

Monday, 14 October 2024

बुझा दो क्रांति की ये मशालें

बुझा दो क्रांति की ये मशालें 
इन रातों को अँधेरे प्यारे हैं 
झूठ के नशे में धुत है जनता,
इन्हें खर्राटे प्यारे हैं!
क्या कहा? नया कल लाना है!
हा! हा! हा! क्यों ये भ्रम पाला है?
उठते जनाज़े नहीं देखे लगता है 
आदर्शों और उसूलों के 
तभी क्रांति सूझ रही है 
जो बिकती है अब ठेलों पे।
अरे जाओ-जाओ कहीं और टेको 
यह सत्याग्रह की लाठी 
यहाँ रुके तो बन जाओगे 
नोटों वाले गांधी।
और किससे आस लगा बैठे
जो ख़ुद कल के फ़रियादी हैं!
जो अपनी कुटिया आप जला के 
चुपड़ी रोटी खाते हैं!
अरे चिता सजा लो आस की अपनी 
क्योंकि कुछ न होने वाला है,
तुम अनशन कर मर जाओगे,
चौराहों पर सज जाओगे 
पर राजा तो काना है 
कुछ भी न सुनने वाला है।

#आँचल 

Friday, 20 September 2024

गप्प-क्रांति

 


 हो रही तलाश 

अस्त हो चुके सूर्य को ढूँढ़ लाने की 

या चल रही कोई साज़िश 

रश्मियाँ बटोर नया सूर्य बनाने की,

झूठी ही सही, एक पहचान पाने की।

अरे! ये रात के अँधेरे में दिन का उजाला है!

सपना है मीठा या किसी ने भ्रम पाला है?

चलो छोड़ो,जाने भी दो,

व्यर्थ ही माथे पर बल डाला है।

कौन,क्या,क्यों,कब,कहाँ और कैसे?

इन प्रश्नों में उलझे तो सब ऐसे 

जैसे अभी मिल-जुलकर 

कमाल दिखाएँगे,

बदलेंगे सब कुछ! बेहतर 'कल' लाएँगे।

अरे! कुछ नही बस गप्प लड़ाएँगे।


#आँचल 

Friday, 16 February 2024

मूल ' मैं ' की तलाश में

एक मैं हूँ 
और मेरे कितने सारे 'मैं'
जो मुझमें हर क्षण बनते और बिगड़ते हैं 
और रोज़ मुझ ही से लड़ते हैं 
कुछ बिल्कुल मुझसे लगते हैं 
और कुछ मुझसे अलग 
जिनको मैं पहचान ही नही पाती 
इन अनेक 'मैं' में से 
मैं कौन हूँ यह कभी जान नही पाती
पर झूझती हूँ रोज़ इतने सारे 'मैं ' के साथ 
मूल 'मैं' की तलाश में।

#आँचल 

Thursday, 15 February 2024

संसारों के सृजन में गुम होता इंसान

इस एक संसार में रहकर 
अनेक संसारों को जानने की कोशिश
और उन अनेक संसारों के प्रतिसंसार को देखने की कोशिश में रत इंसान 
रच देता है फिर एक संसार 
और उस संसार में फिर अनेक संसारों की रचना में लग जाते हैं कई और इंसान 
और फिर यूँ ही एक संसार में रहकर अनेक संसार को जानने की कोशिश अनवरत चलती ही रहती है 
पर नाकाम हो जाती है कहीं ख़ुद के संसार तक पहुँचने की कोशिश 
और गुम हो जाता है कहीं वह इंसान संसारों की भीड़ में रचते हुए फिर एक नया संसार।
#आँचल 

Sunday, 1 October 2023

पिता की भूमिका में एक भाई

एक पुरुष अपने सर्वोत्तम रूप में होता है 
जब वह एक पिता की भूमिका में होता है,
भूख,प्यास,थकान से कुछ ऊपर होता है,
अपनी संतान के जीवन में सुख के हर रंग भरने को 
विपरीत परिस्थितियों में भी तत्पर रहता है।
कल देखा है मैंने एक ऐसे ही पुरुष को 
जिसके माथे पर ढुलकी गंग-स्वेद बिंदु 
दमकती चिंताओं का अभिषेक कर रहीं थी
और बता रही थी सबको कि
वात्सल्य का भाव जगत में सबसे सुंदर होता है,
पिता की भूमिका में एक भाई 
पिता से बढ़कर होता है।

#आँचल