आत्म रंजन

बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Monday, 8 December 2025

यामिनी की गोद में



 रवि के अहम-ताप से 

झुलसे मनु के मन का 

मृगांक की श्वेत-प्रभा संग 

अठखेलियाँ करना 

ही तो उपचार है 

फिर यामिनी के कृष्ण रंग को 

क्यों कोसता यह संसार है?

देखो! इसी की गोद में 

प्रेम का होता सुंदर विस्तार है।


#आँचल

( चित्र का श्रेय मेरी प्यारी भाभी श्रीमती पूर्णिमा मिश्रा को )


Wednesday, 29 October 2025

सुनो दुष्यंत

 

सुनो दुष्यंत!

मैंने तो बड़ी ख़ामोशी से 

तुम्हारी ग़ज़लों में धधकती

क्रांति की आग को बस 

एक बार चखना चाहा था 

पर तुमने तो इन्हें 

शांत रहना सिखाया ही नहीं!

और तुम्हारे ये शब्द 

मेरे भीतर प्रवेश करते ही 

कोसने लगे

कायरता के क्षणों में चुने

गए मेरे मौन को 

और मैं हतप्रभ-सी 

जब इसे शांत न कर सकी 

तो झुलस गई पूरी की पूरी 

अपने खोखले मौन के साथ।

#आँचल

Tuesday, 14 October 2025

यशोधरा हूँ मैं

  



कहो सखी 

तुम क्यों न गई 

देहरी के उस पार?

बुद्ध गए हैं जहाँ 

त्याग के यह संसार 

मुक्ति की चाह में!


नहीं सखी!

अभी समय है मेरे जाने में।

अभी तो चूल्हा जलाना है,

पकाना है साग,

प्रेम और ममता का 

अभी कैसे करुँ मैं त्याग?

देखो सन गए हैं राहुल के 

धूल में हाथ,

और ये बिखरे बाल!

अभी तो करना है मुझे 

इसके भविष्य का विन्यास।

यशोधरा हूँ मैं!

मुझे ढोना है अभी 

बुद्ध के छोड़े हुए कर्तव्यों का भार 

और मुझे ही बुहारना है 

देहरी के दोनों पार का संसार।


#आँचल 

 

Wednesday, 24 September 2025

आज की स्त्री



आज की स्त्री 

ऑफ़िस जाती है,

प्लेन उड़ाती है,

दौड़ लगाती है,

सीमा पर लड़ती है,

आती है घर 

भोजन पकाती है,

बर्तन माँजती है,

पालना झुलाती है,

सँवारती थी जो कल तक घर 

आज वो घर सँभालती है,

आज की स्त्री 

दोहरा जीवन जीती है,

दुगुनी आँच को सहती है,

नाप ले चाहे पूरा अंबर 

पिंजरे में ही रह जाती है।


#आँचल 



Sunday, 27 July 2025

झूठ की ख़रीद

 

दिखाई और सुनाई देने वाला सत्य 

सदा एक आश्चर्य-सा लगता है

क्योंकि झूठ 

अब बहुत आम हो चुका है 

फिर भी हम ख़रीदने तो 

झूठ ही जाते हैं।

#आँचल 

Friday, 25 July 2025

भूख



इंसान की भूख बहुत बड़ी है।
इतनी बड़ी कि वह 
पहले अपने हक़ का खाता है 
फिर दूसरों के हक़ का 
फिर भी भूख नहीं मिटती तो 
इंसान इंसान को खाता है 
फिर इस संसार को खाता है 
और खाते-खाते 
एक दिन वह 
ख़ुद को भी खा जाता है 
और भूख समाप्त हो जाती है।
#आँचल 

Saturday, 19 July 2025

रात

'सुबह जल्दी उठना है।'
इस चिंता को ओढ़कर 
सो जाने वाली रात 
काश!रागों में डूबते,
कविताओं में गोता लगाते,
और कहानियों के पृष्ठों को 
पलटते हुए बीत जाती।
#आँचल