कहो सखी
तुम क्यों न गई
देहरी के उस पार?
बुद्ध गए हैं जहाँ
त्याग के यह संसार
मुक्ति की चाह में!
नहीं सखी!
अभी समय है मेरे जाने में।
अभी तो चूल्हा जलाना है,
पकाना है साग,
प्रेम और ममता का
अभी कैसे करुँ मैं त्याग?
देखो सन गए हैं राहुल के
धूल में हाथ,
और ये बिखरे बाल!
अभी तो करना है मुझे
इसके भविष्य का विन्यास।
यशोधरा हूँ मैं!
मुझे ढोना है अभी
बुद्ध के छोड़े हुए कर्तव्यों का भार
और मुझे ही बुहारना है
देहरी के दोनों पार का संसार।
#आँचल
इस स्थल पर यशोधरा बुध्द से भी आगे निकल आती है और शक्तिपुँज सी उसकी आभा संपूर्ण जग को सुषमित करती प्रतीत होती है ।
ReplyDeleteइस स्थल पर यशोधरा बुध्द से भी आगे निकल आती है और शक्तिपुँज सी उसकी आभा संपूर्ण जग को सुषमित करती प्रतीत होती है ।
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