मशालें बुझने लगी हैं,
अँधेरे की ताक़त बढ़ने लगी है,
और कर्तव्य-पथ से भटके हुए
ढ़ीठ,आलसी,लापरवाह लोग सो रहे हैं।
सावधान!
जनता के महल को लूटा जाने वाला है।
सभ्य डाकुओं की टुकड़ी
आगे बढ़ रही है,
जनता सो रही है और जगाने वालों का मुँह सिल दिया गया है।
#आँचल
बेहद उम्दा पंक्तियां हैं। बहुत ही उम्दा कटाक्ष किया है आपने लोकतंत्र के परिपेक्ष में।
ReplyDeleteसटीक
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना बुधवार १४ दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत ख़ूब आंचल ! लेकिन लूट-मार की सभ्यता का प्रसार करने के लिए सतत प्रतिबद्ध सभ्य डाकुओं की पावन गतिविधियों का तो आँख मूँद कर स्वागत किया जाना चाहिए और हम यह पिछले सैकड़ों साल से करते भी आ रहे हैं.
ReplyDeleteवाह! प्रिय आंचल ,बहुत खूब 👍
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सटीक सृजन
ReplyDeleteआज के समय का यथार्थ चित्रण करती हुई उत्तम रचना।
ReplyDeleteलोकतंत्र का कटु यतार्थ प्रस्तुत किया है आपने, आँचल दी।
ReplyDeleteजनता को तो न जाने कब से अफीम खिला कर नाकारा कर दिया गया है । जागना स्वयं ही होगा ।
ReplyDeleteइस तरह की विसंगतियों को एक प्रखर कवि दृष्टि ही देख सकती है।सार्थक रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं प्रिय आँचल ♥️
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