कुछ इठलाती,कुछ बलखाती,
गगरी अमृत की छलकाती
वह विश्वमोहिनी, विश्वसुंदरी
रूप से अपने भरमाती
तब विश्वगुरु भी बहक - बहक
सुध - बुध अपनी सब बिसराते
और गरल - सुधा का भेद भूल
जब गरल सुधा - सम पी जाते,
तब इठलाती कुछ बलखाती
वह विश्वमोहिनी विश्वगुरु को
छलकर शोक में मुसकाती।
#आँचल
वाह! मधुरिम मोहक अभिव्यक्ति!!!
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
Delete