बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Thursday, 4 August 2022

विश्वमोहिनी की अमृत - गगरी


कुछ इठलाती,कुछ बलखाती,

गगरी अमृत की छलकाती 

वह विश्वमोहिनी, विश्वसुंदरी  

रूप से अपने भरमाती 

तब विश्वगुरु भी बहक - बहक 

सुध - बुध अपनी सब बिसराते 

और गरल - सुधा का भेद भूल 

जब गरल सुधा - सम पी जाते,

तब इठलाती कुछ बलखाती 

वह विश्वमोहिनी विश्वगुरु को 

छलकर शोक में मुसकाती।


#आँचल 

2 comments:

  1. वाह! मधुरिम मोहक अभिव्यक्ति!!!

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    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏

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