बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Tuesday 9 August 2022

गरजते मेघ


"अरी ओ कमली!थरिया परस जल्दी, भूख से प्राण जाने को हैं। दुई निवाले मुँह म जाएँ त पेट की आग कछु शांत हो। जल्दी कर तब तक हम पैर-हाथ धोई के आवत हई।"
भरमदास डिस्टेम्पर की काई लगी बाल्टी में भरे पानी से पैर-हाथ धोते हुए पत्नी कमला देवी से बोले।

कमला देवी ने अपनी बड़ी बिटिया को चिल्लाते हुए पुकारा-
"अरी ओ रनिया कहाँ मर गई री! देख,बादल गरजत हैं; जा, बाँस पर से कपड़े उतार ला, सूख ग होई।"

भरमदास ने भोजन के लिए लकड़ी के पटरे पर बैठते हुए कमला देवी से कुछ गंभीर स्वर में कहा- 
"अरी कमली!ई गरजते मेघ न बरसेंगे। चुनाव म कितना गरजे रहे सब, बरसे भला? अब भोजन परस जल्दी।" 

कमला देवी ने रोटी सेंकते हुए फिर अपनी बड़ी बेटी को पुकारा-
"रनिया हो, बहरे से लछमी, गोलू और गुड्डु को भी बुला ला।"
 
रानी अपने छोटे भाई-बहन के साथ भीतर आई तो हाथ में बेलन लिए हुए कमला देवी ने अपनी दोनों बेटियों को निर्देश देते हुए कहा- "रनिया तू भोजन परस, लछमी मेटा में से पानी निकाल कर रखेगी सबके आगे।"

रानी थाली में गुड़, नमक और चार रोटियाँ सजाकर अपने बाबा के आगे रख आई।भरमदास ने थाली देख कुछ निराश स्वर में कमला देवी से पूछा- "दाल-सब्ज़ी नाही रही का?" 

कमला देवी ने कुछ झुँझलाते हुए जवाब दिया- "इतना महँगाई म तोहार सौ-दुई सौ क मजूरी रोज़ का रोज़ ख़रच होई जाए त ई घर कईसे चले भला? मकान-मलकिन आए रहिन, चार महीना का किराया बाक़ी बा।
अब त पहिले कमरा क किराया जुटे तब दाल-सब्ज़ी  बने।" 

निराशा और कमला देवी के ताने से भरमदास का पेट भर गया। भरमदास ने रानी को दो रोटियाँ वापस करते हुए कमला देवी के ताने का जवाब देते हुए कहा- "पेट त भरी ग।"

इसपर कमला देवी ने कहा- "अब तोहे सूखी रोटी परसत हमार जी नाही जलत का? हमहू का करी? महँगाई क हिसाब से तोहार मजूरी कछु ठीक-ठाक मिले त दाल-सब्ज़ी  का हम अमृत परस देब।"

महँगाई को कठघरे में खड़ा करते हुए अपनी सफ़ाई में दिए गए कमला देवी के इस बयान पर व्यंग्य मुस्कान भरते हुए भरमदास बोल पड़े- "तू का परस्बू? पंद्रह अगस्त तक त ख़ुदै अमृत बरसत बा।" 
"ए गोलुआ!काल एक ठे तिरंगा ख़रीद के दूआरे फहरा दे। प्रभु की लीला होई त हमरो घर अमृत बरसे। ई सूखी रोटी नाही तब त मालपुआ  खाब हम। " 
गोलू को यह आदेश देने के बाद भरमदास सूखी रोटी चबाते हुए मालपुआ के मीठे स्वप्न में खो गए।

#आँचल

9 comments:

  1. भूखे भजन न होय गोपाला !

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  2. अति सुंदर व्यंग...

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  3. बहुत ही बढियक व्यंग,आँचल दी। तिरंगा फहराने से दाल सब्जी नही मिलेगी।

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  4. बहुत ही बढिया व्यंग,आँचल दी। तिरंगा फहराने से दाल सब्जी नही मिलेगी।

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 11 अगस्त 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  6. नेतवन के बुझा जाइत त केतना निमन होइत
    राजा के राज बढ़ल जाअत बाटे अउरी केहू के पेट भरे लायक जुड़ाग नइखे

    उम्दा लेखन

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  7. बेहतरीन ।
    फिर भी आज़ादी का अमृत महोत्सव तो मनाना ही चाहिए । बस गरीबों को नज़रंदाज़ न किया जाय ।

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  8. सारगर्भित एवं संदेशात्मक कहानी।

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