आज की स्त्री
ऑफ़िस जाती है,
प्लेन उड़ाती है,
दौड़ लगाती है,
सीमा पर लड़ती है,
आती है घर
भोजन पकाती है,
बर्तन माँजती है,
पालना झुलाती है,
सँवारती थी जो कल तक घर
आज वो घर सँभालती है,
आज की स्त्री
दोहरा जीवन जीती है,
दुगुनी आँच को सहती है,
नाप ले चाहे पूरा अंबर
पिंजरे में ही रह जाती है।
#आँचल
अजब उलझन है ।
ReplyDelete